सभोपदेशक; या, उपदेशक
अध्याय 1
सांसारिक चीजों का घमंड।
1 यरूशलेम के राजा दाऊद के पुत्र उपदेशक के वचन।
2 उपदेशक की यह वाणी है, व्यर्थ व्यर्थता का व्यर्थता; सब घमंड है।
3 मनुष्य को अपनी सारी मेहनत से जो वह सूर्य के नीचे लेता है, उसका क्या लाभ?
4 एक पीढ़ी जाती रहती है, और दूसरी पीढ़ी आती है; परन्तु पृथ्वी सदा बनी रहती है।
5 सूर्य भी उदय होता है, और सूर्य अस्त हो जाता है, और अपने स्थान को जहां वह उठा था, फुर्ती करता है।
6 हवा दक्खिन की ओर जाती है, और उत्तर की ओर मुड़ जाती है; वह निरन्तर घूमता रहता है, और वायु उसके चक्करों के अनुसार फिर लौट जाती है।
7 सब नदियां समुद्र में मिल जाती हैं; फिर भी समुद्र भरा नहीं है; जिस स्थान से नदियाँ आती हैं, वहीं पर फिर जाती हैं।
8 सब कुछ परिश्रम से भरा है; मनुष्य इसे बोल नहीं सकता; न तो आंख देखने से तृप्त होती है, न कान सुनने से तृप्त होता है।
9 जो कुछ हो गया, वह वह है जो होगा; और जो किया जाता है वह वह है जो किया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई नई चीज नहीं है।
10 क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में कहा जाए, कि देख, यह तो नई है? यह पहले से ही पुराना है, जो हमारे सामने था।
11 पहिली बातें स्मरण नहीं रहती; और न उन बातों का कुछ स्मरण रहेगा, जो उसके बाद आनेवाली हैं।
12 मैं उपदेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा था।
13 और मैं ने अपना मन लगा दिया, कि जो कुछ स्वर्ग के नीचे किया जाता है, उसके विषय में बुद्धि से ढूंढ़ और ढूंढूं; परमेश्वर ने मनुष्य के पुत्रों को इसके साथ अभ्यास करने के लिए यह कष्टदायी पीड़ा दी है।
14 मैं ने उन सब कामों को देखा है जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; और, निहारना, सब कुछ व्यर्थ है और आत्मा की नाराजगी है।
15 जो टेढ़ी है, वह सीधी नहीं हो सकती; और जो चाह रहा है उसे गिना नहीं जा सकता।
16 मैं ने अपके मन से यह कहकर बात की, कि सुन, मैं बड़े बड़े पद पर आया हूं, और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में रहते थे, उन से मुझे अधिक बुद्धि मिली है; हां, मेरे हृदय को ज्ञान और ज्ञान का बहुत अच्छा अनुभव था ।
17 और मैं ने बुद्धि को जानने, और विक्षिप्तता और मूर्खता को जानने के लिथे अपना मन लगा दिया; मैं समझ गया कि यह भी आत्मा की नाराजगी है।
18 क्योंकि बहुत ज्ञान में बहुत शोक होता है; और जो ज्ञान बढ़ाता है वह दु:ख को बढ़ाता है।
अध्याय 2
सांसारिक सुख और मानव श्रम का घमंड।
1 मैं ने मन ही मन कहा, अब जा, मैं तुझ पर प्रसन्नता से परख करूंगा; इसलिए आनंद का आनंद लें; और देखो, यह भी व्यर्थ है।
2 मैं ने हंसी के विषय कहा, यह तो पागल है; और आनन्द की, यह क्या करता है?
3 मैं ने अपने मन में यह चाहा कि मैं दाखमधु पिलाऊं, तौभी अपने मन को बुद्धि से पहिचानूं; और मूढ़ता को थामे रहे, जब तक कि मैं यह न देख लूं कि मनुष्योंके लिथे क्या भला है, जो वे जीवन भर स्वर्ग के नीचे करते रहें।
4 मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैंने अपने लिए घर बनाए; मैं ने मुझे दाख की बारियां लगाईं;
5 मैं ने अपके लिये बाटिकाएं और बाटिकाएं बनाईं, और उन में सब प्रकार के फलदार वृक्ष लगाए;
6 मैं ने अपके लिये जल के कुण्ड बना दिए, जिस से उस लकड़ी से सींचा जाए जिस से वृझ उत्पन्न होते हैं;
7 मैं ने अपके दास और दासियां ब्याह लीं, और अपके घर में दास उत्पन्न हुए; और जो कुछ यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन से बढ़कर मेरे पास छोटे बड़े बड़े बड़े बड़े धन थे;
8 मैं ने सोना चान्दी, और राजाओं और प्रान्तोंका निज धन भी अपके लिथे बटोर लिया; मैं ने गवैये और स्त्रियां गायिकाएं, और पुरूषोंके लिथे वादन, वरन सब प्रकार की रमणीय वस्तुएं इकट्ठी की हैं।
9 सो मैं महान हुआ, और उन सभोंसे जो यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, बढ़ गया; मेरी बुद्धि भी मेरे पास बनी रही।
10 और जो कुछ अपक्की आंखों ने चाहा उन से न टाला, और न अपके मन को आनन्द से टाला; क्योंकि मेरा मन अपके सब परिश्र्मोंके कारण आनन्दित हुआ; और यह मेरी सारी मेहनत का हिस्सा था।
11 तब मैं ने उन सब कामोंको जो अपके हाथ से किए थे, और जो परिश्रम मैं ने किया या, उन पर दृष्टि की; और देखो, सब कुछ व्यर्थ और आत्मा का कोप था, और सूर्य के नीचे कोई लाभ नहीं था।
12 और मैं ने फिरकर बुद्धि, और पागलपन, और मूढ़ता को देखा; क्योंकि जो पुरूष राजा के बाद आएगा वह क्या करेगा? यहां तक कि जो पहले ही किया जा चुका है।
13 तब मैं ने देखा कि वह ज्ञान मूढ़ता से बढ़कर है, यहां तक कि उजियाला भी अन्धकार से बढ़कर है।
14 बुद्धिमान की आंखें उसके सिर पर लगी रहती हैं; परन्तु मूर्ख अन्धकार में चलता है; और मैं ने आप भी जान लिया, कि उन सब के साथ एक ही घटना घटती है।
15 तब मैं ने मन ही मन कहा, जैसा मूढ़ के साथ वैसा ही मेरे साथ भी होता है; और फिर मैं अधिक बुद्धिमान क्यों था? तब मैं ने मन ही मन कहा, कि यह भी व्यर्थ है।
16 क्योंकि मूढ़ से बढ़कर ज्ञानी का स्मरण सदा के लिये नहीं रहता; जो अब आने वाले दिनों में है, उसे देखकर सब भूल जाएंगे। और बुद्धिमान व्यक्ति की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के रूप में।
17 इस कारण मैं ने जीवन से बैर रखा; क्योंकि जो काम सूर्य के नीचे किया जाता है, वह मेरे लिये कठिन है; क्योंकि सब कुछ व्यर्थ और आत्मा का कोप है।
18 हां, मैं ने अपके सब परिश्र्मोंसे जो मैं ने सूर्य के नीचे ले लिया था, बैर रखा, क्योंकि मैं उसे उस मनुष्य पर छोड़ दूंगा जो मेरे पीछे होगा ।
19 और कौन जानता है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख? तौभी मेरे सब परिश्र्मों पर, जिन में मैं ने परिश्रम किया है, और जिन में मैं ने अपने आप को सूर्य के नीचे बुद्धिमान दिखाया है, प्रभुता करेगा। यह भी अजूबा है।
20 इसलिथे मैं उस सब परिश्रम से जो मैं ने सूर्य के नीचे लिया या, अपके मन को निराश करने के लिथे चला गया।
21 क्योंकि एक मनुष्य है, जिसका परिश्रम बुद्धि, और ज्ञान, और समता में है; तौभी जिस मनुष्य ने उस में परिश्रम न किया हो, वह उसे उसके भाग के लिथे छोड़ दे। यह भी घमंड और बड़ी बुराई है।
22 क्योंकि मनुष्य को अपके सब परिश्रम का, और अपके मन की चिन्ता का क्या कारण, जिस में उस ने सूर्य के नीचे परिश्र्म किया है?
23 क्योंकि उसके सब दिन दु:ख और दु:ख ही हैं; हाँ, उसका हृदय रात को चैन नहीं लेता। यह भी अजूबा है।
24 मनुष्य के लिये इससे अच्छा और कुछ नहीं कि वह खाए-पीए, और परिश्रम करते हुए अपने प्राण का आनन्द उठाए। यह भी मैं ने देखा, कि यह परमेश्वर के हाथ से है।
25 क्योंकि मुझ से बढ़कर कौन खा सकता है, वा कौन फुर्ती कर सकता है?
26 क्योंकि परमेश्वर मनुष्य को जो उसकी दृष्टि में भला है, बुद्धि, और ज्ञान, और आनन्द देता है; परन्तु वह पापी को दुख देता है, कि वह इकट्ठा और ढेर करे, कि जो परमेश्वर के साम्हने भला है उसे दे। यह भी घमंड और आत्मा की नाराजगी है।
अध्याय 3
समय का आवश्यक परिवर्तन — परमेश्वर के कार्यों में महामहिम।
1 हर एक बात का एक समय होता है, और हर एक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय होता है;
2 जन्म लेने का समय, और मरने का भी समय; रोपने का समय, और जो बोया गया है उसे तोड़ने का भी समय;
3 मारने का समय, और चंगा करने का भी समय; टूटने का समय, और निर्माण करने का भी समय;
4 रोने का समय, और हंसने का भी समय; शोक करने का समय, और नाचने का समय;
5 पत्यर फेंकने का समय, और पत्यर इकट्ठे करने का भी समय; गले लगाने का समय, और गले लगाने से परहेज करने का समय;
6 पाने का समय, और खोने का भी समय; रखने का समय, और त्यागने का भी समय;
7 फाड़ने का, और सिलने का भी समय; चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय;
8 प्रेम करने का समय, और बैर करने का भी समय; युद्ध का समय, और शांति का समय।
9 जो काम करता है उस में उसे क्या लाभ?
10 मैं ने उस दु:ख को देखा है, जो परमेश्वर ने मनुष्योंको उस में करने के लिथे दिया है।
11 उस ने अपने समय में सब कुछ सुन्दर किया है; और उस ने जगत को उनके मन में बसा दिया है, कि जो काम परमेश्वर करता है, वह आदि से अन्त तक कोई मनुष्य न ढूंढ़ सके।
12 मैं जानता हूं, कि उन में कुछ भलाई नहीं, केवल मनुष्य के आनन्द करने और अपने जीवन में भलाई करने के लिथे है।
13 और यह भी कि हर एक मनुष्य खाए-पीए, और अपके सब परिश्रम का फल भोगे, यह परमेश्वर का दान है।
14 मैं जानता हूं, कि जो कुछ परमेश्वर करेगा, वह सदा बना रहेगा; उस में न कुछ डाला जा सकता है, और न उसमें से कुछ लिया जा सकता है; और परमेश्वर ऐसा करता है, कि लोग उसके साम्हने डरें।
15 जो था वह अब है; और जो होना है वह पहले ही हो चुका है, और परमेश्वर चाहता है कि जो बीत चुका है।
16 और फिर मैं ने सूर्य के नीचे न्याय का स्थान देखा, कि वहां दुष्टता है; और धर्म का स्थान, वह अधर्म वहां था।
17 मैं ने मन ही मन कहा, परमेश्वर धर्मी और दुष्ट का न्याय करेगा; क्योंकि वहाँ हर एक काम और हर काम के लिए एक समय होता है।
18 मैं ने अपके मन में मनुष्योंकी सम्पत्ति के विषय में कहा, कि परमेश्वर उन्हें प्रगट करे, और वे देखें, कि वे आप ही पशु हैं।
19 क्योंकि जो मनुष्य की सन्तान पर पड़ता है, वह पशुओं पर पड़ता है; एक बात उन पर पड़ी; जैसे एक मरता है, वैसे ही दूसरा मरता है; हाँ, उनके पास एक ही सांस है; ताकि मनुष्य का पशु से बड़ा कोई महत्व न हो; क्योंकि सब व्यर्थ है।
20 सब एक स्थान को जाते हैं; सब मिट्टी के हैं, और सब फिर मिट्टी में मिल जाएंगे।
21 मनुष्य के आत्मा को जो ऊपर की ओर जाता है, और उस पशु का जो नीचे भूमि पर जाता है, कौन जानता है?
22 सो मैं समझता हूं, कि मनुष्य अपके ही कामोंमें मगन होने से बढ़कर और कुछ नहीं; क्योंकि उसका भाग वही है; क्योंकि कौन उसे ले आएगा, कि उसके पीछे क्या होगा?
अध्याय 4
जुल्म, ईर्ष्या, आलस्य, लोभ, एकांत और स्वेच्छाचारिता से घमंड बढ़ता है।
1 सो मैं लौट आया, और उन सब अन्धेर जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं उन पर विचार किया; और जहां अन्धेर करते हैं, उन के आंसू देखो, और उनका कोई दिलासा देने वाला न था; और उन पर अन्धेर करनेवालों की ओर बल था; लेकिन उनके पास कोई दिलासा देने वाला नहीं था।
2 इस कारण मैं ने उन मरे हुओं की स्तुति की जो पहले ही मर चुके हैं, जो जीवितों से अधिक हैं, जो अब तक जीवित हैं।
3 वरन वह उन दोनोंसे जो अब तक नहीं हुए, और जिन्होंने उस बुरे काम को जो सूर्य के नीचे किया है, नहीं देखा, उन से अच्छा है।
4 फिर मैं ने सब संकटों, और सब प्रकार के भले कामों पर विचार किया, कि इसी कारण मनुष्य अपके पड़ोसी से डाह करता है। यह भी घमंड और आत्मा की नाराजगी है।
5 मूर्ख हाथ जोड़कर अपके ही मांस को खाता है।
6 मुठ्ठी भर खामोश रहने से अच्छा है, कि दोनों हाथ दुख से भरे हों, और मन को ठेस पहुंचे।
7 तब मैं लौट आया, और मैं ने सूर्य के नीचे व्यर्थता देखी।
8 एक अकेला है, और कोई दूसरा नहीं है; हां, उसके न तो कोई संतान है और न भाई; तौभी उसके सब परिश्रम का अन्त नहीं; न तो उसकी आंख धन से तृप्त होती है; और न वह कहता है, मैं किसके लिये परिश्रम करता हूं, और अपके मन का भला करता हूं? यह भी घमंड है, हाँ, यह दुखदायी पीड़ा है।
9 एक से दो उत्तम हैं; क्योंकि उन्हें उनके परिश्रम का अच्छा प्रतिफल मिलता है।
10 क्योंकि यदि वे गिरें, तो वह अपके संगी को उठाएगा; परन्तु उस पर धिक्कार है जो अकेला है, जब वह गिरेगा; क्योंकि उसके पास उसकी सहायता करने वाला कोई दूसरा नहीं है।
11 फिर यदि दो एक संग लेटे हों, तो उन में ताप होता है; लेकिन कोई अकेला गर्म कैसे हो सकता है?
12 और यदि कोई उस पर प्रबल हो, तो दो उसका सामना करेंगे; और तिगुनी डोरी जल्दी नहीं टूटती।
13 एक बूढ़े और मूर्ख राजा की तुलना में एक गरीब और बुद्धिमान बच्चा बेहतर है, जिसे फिर कभी चेतावनी नहीं दी जाएगी।
14 क्योंकि वह बन्दीगृह से छूटकर राज्य करने को आया है; जबकि वह भी जो उसके राज्य में पैदा होता है वह गरीब हो जाता है।
15 मैं ने सूर्य के नीचे चलनेवाले सब जीवितोंको, और उसके स्थान पर दूसरा बच्चा भी खड़ा किया, पर विचार किया।
16 सब लोगों का, वरन उन सभों का भी अन्त नहीं है जो उन से पहिले थे; वे भी उसके पीछे आनेवाले उसके कारण आनन्दित न होंगे। निस्सन्देह यह भी अहंकार और आत्मा का क्लेश है।
अध्याय 5
दैवीय सेवा में व्यर्थता - बड़बड़ाहट और धन।
1 जब तू परमेश्वर के भवन को जाए, तब अपके पांव की चौकसी करना, और मूढ़ोंके बलि चढ़ाने से बढ़कर सुनने के लिथे तैयार रहना; क्योंकि वे नहीं समझते कि वे बुरा करते हैं।
2 अपके मुंह से उतावली न करना, और न अपके मन में परमेश्वर के साम्हने कुछ उतावली करना; क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में है, और तू पृथ्वी पर; इसलिथे तेरे वचन थोड़े हों।
3 क्योंकि बहुत काम के कारण एक स्वप्न आता है; और मूढ़ का शब्द बहुत शब्दों से पहचाना जाता है।
4 जब तू परमेश्वर की मन्नत माने, तब उसे पूरा न करना; क्योंकि वह मूर्खों से प्रसन्न नहीं होता; जो तू ने मन्नत मानी है उसे पूरा कर।
5 अच्छा यह है कि मन्नत न मानना, और मन्नत न मानना।
6 अपके मुंह से अपके शरीर को पाप का कारण न बनने दे; न तो तू स्वर्गदूत के साम्हने यह कहना, कि यह भूल थी; परमेश्वर तेरे शब्द से क्रुद्ध होकर तेरे हाथों के कामों को नाश करे?
7 क्योंकि स्वप्नों और बहुत बातों की भीड़ में भी नाना प्रकार के व्यर्थ हैं; परन्तु परमेश्वर से डरो।
8 यदि तू किसी प्रान्त में कंगालों पर अन्धेर, और न्याय और न्याय को बलपूर्वक बिगाड़ता हुआ देखे, तो उस पर आश्चर्य न करना; क्योंकि जो ऊंचे से ऊंचा है, वह मानता है; और उनसे ऊंचा हो।
9 और पृय्वी की कमाई सब के लिथे है; राजा स्वयं मैदान से सेवा करता है।
10 जो चान्दी से प्रीति रखता है, वह चान्दी से तृप्त न होगा; न वह जो बहुतायत से प्रीति रखता है, यह भी व्यर्थता है।
11 जब माल बढ़ता है, तो खाने वाले भी बढ़ते हैं; और उसके स्वामियों को क्या भला, कि उन को उनकी आंखों से देखने के सिवा?
12 परिश्रमी की नींद मीठी होती है, चाहे वह थोड़ा खाए या अधिक; परन्तु धनवानों की बहुतायत उसे सोने न देगी।
13 एक घोर विपत्ति है, जिसे मैं ने सूर्य के नीचे देखा है, अर्थात वह धन जो उसके स्वामियोंके लिथे उनकी हानि के लिथे रखा है।
14 परन्तु वे धन बुरे क्लेश से नष्ट हो जाते हैं; और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसके हाथ में कुछ भी नहीं।
15 जैसे वह अपक्की माता के पेट से निकला, वैसे ही नंगा भी लौट जाए, और अपके परिश्र्म में से जिसे वह अपके हाथ से ले जाए, कुछ न ले।
16 और यह भी घोर विपत्ति है, कि जब वह आया, तो वह वैसा ही जाए; और जिस ने वायु के लिये परिश्रम किया है उसे क्या लाभ?
17 वह जीवन भर अन्धकार में खाता है, और वह अपके रोग के कारण बहुत दु:ख और कोप का भोगता है।
18 देखो, जो मैं ने देखा है; यह अच्छा और सुहावना है कि कोई खाए और पीए, और अपने उस सब परिश्रम से जो वह परमेश्वर के दिए हुए जीवन के सारे दिन धूप में भोगता रहे; क्योंकि यह उसका भाग है।
19 हर एक मनुष्य को भी, जिसे परमेश्वर ने धन और धन दिया है, और उसे खाने, और उसका भाग लेने, और उसके परिश्रम में आनन्दित होने का अधिकार दिया है; यह भगवान का उपहार है।
20 क्योंकि वह अपके जीवन के दिनोंको अधिक स्मरण न रखेगा; क्योंकि परमेश्वर ने उसके मन के आनन्द में उसका उत्तर दिया है।
अध्याय 6
दौलत का घमंड - घमंड का निष्कर्ष।
1 एक ऐसी विपत्ति है जो मैं ने सूर्य के नीचे देखी है, और वह मनुष्योंमें पाई जाती है;
2 जिस मनुष्य को परमेश्वर ने धन, धन, और आदर दिया है, कि जो कुछ वह चाहता है उस में से उसे कुछ न मिले, तौभी परमेश्वर उसे खाने की शक्ति नहीं देता, परन्तु कोई परदेशी उसे खाता है; यह घमंड है, और यह एक बुरी बीमारी है।
3 यदि कोई सौ सन्तान उत्पन्न करे, और बहुत वर्ष जीवित रहे, कि उसके वर्ष बहुत हों, और उसका प्राण उत्तम से न भरा रहे, और उसे मिट्टी न दी जाए; मैं कहता हूं, कि असमय जन्म उससे अच्छा है।
4 क्योंकि वह व्यर्थ के साथ भीतर आता है, और अन्धकार में चला जाता है, और उसका नाम अन्धकार से ढका होगा।
5 फिर उस ने न तो सूर्य को देखा, और न कुछ जाना; इसमें दूसरे की तुलना में अधिक आराम है।
6 वरन वह एक हजार वर्ष जीवित रहे, तौभी उस ने भलाई नहीं देखी; सब एक जगह नहीं जाते?
7 मनुष्य का सारा परिश्रम उसके मुंह के लिथे होता है, तौभी उसका पेट नहीं भरता।
8 क्योंकि बुद्धिमान के पास मूढ़ से बढ़कर क्या है? दीन के पास क्या है, जो जीवितों के आगे चलना जानता है?
9 आँखों की दृष्टि अभिलाषा के भटकने से उत्तम है; यह भी घमंड और आत्मा की नाराजगी है।
10 जो ठहराया गया है उसका नाम पहिले ही रखा गया है, और यह जाना जाता है कि वह मनुष्य है; और जो उस से बलवन्त है, वह उस से न लड़ सकेगा।
11 यह देखकर कि बहुत सी बातें हैं जो व्यर्थता को बढ़ाती हैं, मनुष्य से उत्तम क्या है?
12 क्योंकि कौन जानता है कि इस जीवन में मनुष्य के लिए क्या अच्छा है, अपने व्यर्थ जीवन के सभी दिन जो वह छाया के रूप में व्यतीत करता है? क्योंकि मनुष्य को कौन बता सकता है कि सूर्य के नीचे उसके पीछे क्या होगा?
अध्याय 7
घमंड के खिलाफ उपाय-बुद्धि प्राप्त करने में कठिनाई।
1 बहुमूल्य मलहम से अच्छा नाम उत्तम है; और मृत्यु का दिन अपने जन्म के दिन से अधिक है।
2 जेवनार के घर जाने से शोक के घर जाना भला है; क्योंकि सब मनुष्यों का अन्त उसी से होगा; और जीवते उसे अपने मन में लगाएंगे।
3 हँसी से शोक उत्तम है; क्योंकि मुख की उदासी से मन अच्छा हो जाता है।
4 बुद्धिमान का मन शोक के घर में लगा रहता है; परन्तु मूर्खों का मन आनन्द के घर में लगा रहता है।
5 बुद्धिमानों की ताड़ना सुनने से यह भला है, कि मनुष्य मूर्खों का गीत सुनता है;
6 क्योंकि जैसे घड़े के नीचे कांटों का चटकारना होता है, वैसे ही मूढ़ की हंसी भी होती है; यह भी घमंड है।
7 निश्चय अन्धेर बुद्धिमान को पागल कर देता है; और एक उपहार दिल को नष्ट कर देता है।
8 किसी बात का अंत उसके आरम्भ से उत्तम है; और रोगी आत्मा में घमण्डियों से उत्तम है।
9 क्रोध करने के लिये उतावली न करना; क्योंकि क्रोध मूर्खों के पेट में रहता है।
10 तू न कहना, क्या कारण है कि पहिले दिन इन से उत्तम थे? क्योंकि तू इस के विषय में बुद्धिमानी से नहीं पूछता।
11 निज भाग समेत बुद्धि उत्तम होती है; और उस से उनको लाभ होता है जो सूर्य को देखते हैं।
12 क्योंकि बुद्धि बचाव है, और धन बचाव है; परन्तु ज्ञान की महिमा यह है, कि बुद्धि उसके पास वालों को जीवन देती है।
13 परमेश्वर के काम पर ध्यान दो; क्योंकि जो उस ने टेढ़ी बनाई है, उसे कौन सीधा कर सकता है?
14 समृद्धि के दिन आनन्द करना, परन्तु विपत्ति के दिन ध्यान रखना; परमेश्वर ने भी एक को दूसरे के विरुद्ध खड़ा किया है, कि मनुष्य उसके पीछे कुछ न पाए।
15 मैं ने अपक्की व्यर्थता के दिनोंमें सब कुछ देखा है; एक धर्मी मनुष्य है जो अपने धर्म के कारण नाश होता है, और एक दुष्ट है जो अपनी दुष्टता में अपनी आयु बढ़ाता है।
16 न अधिक धर्मी बनो, और न अपने आप को अतिबुद्धिमान बनाओ; तू क्यों अपना नाश कर ले?
17 अति दुष्ट न हो, न मूर्ख हो; तू अपने समय से पहले क्यों मरना चाहिए?
18 अच्छा ही है, कि तू इस को पकड ले; वरन इस से भी हाथ न हटाना; क्योंकि जो परमेश्वर का भय मानता है, वह उन सब में से निकलेगा।
19 बुद्धि से ज्ञानियों को नगर के दस शूरवीरों से अधिक बल मिलता है।
20 क्योंकि पृथ्वी पर कोई धर्मी मनुष्य नहीं, जो भलाई करे और पाप न करे।
21 और जो बातें कही जाती हैं उन पर ध्यान न देना; कहीं ऐसा न हो कि तू अपके दास को अपके शाप की सुने;
22 क्योंकि बार बार तेरा मन भी जानता है, कि तू ने भी औरोंको भी शाप दिया है।
23 यह सब मैं ने बुद्धि से सिद्ध किया है; मैं ने कहा, मैं बुद्धिमान होऊंगा; लेकिन यह मुझसे बहुत दूर था।
24 जो दूर है, और अथाह है, उसे कौन खोजेगा?
25 मैं ने जानने, और खोजने, और बुद्धि और बातोंका कारण जानने, और मूढ़ता की दुष्टता को जानने के लिथे मूढ़ता और पागलपन का भी मन लगाया;
26 और मैं उस स्त्री को मृत्यु से भी अधिक कड़वा पाता हूं, जिसका मन फन्दे और जाल और उसके हाथ बन्धन के समान हैं; जो परमेश्वर को प्रसन्न करे वह उस से बच निकले; परन्तु पापी उसके द्वारा ले लिया जाएगा।
27 देखो, मैं ने यह पाया है, कि उपदेशक कहता है, कि मैं एक एक करके गिनता हूं, कि हिसाब का पता लगाऊं;
28 जिसे मेरा प्राण अब तक ढूंढ़ता है, परन्तु नहीं पाता; मैं ने हजार में से एक पुरूष को पाया है; परन्तु उन सब में एक स्त्री मुझे नहीं मिली।
29 सुन, मैं ने केवल यह पाया है, कि परमेश्वर ने मनुष्य को सीधा किया है; लेकिन उन्होंने कई आविष्कार मांगे हैं।
अध्याय 8
राजाओं का सम्मान किया जाना चाहिए - दिव्य विधान का पालन किया जाना चाहिए।
1 बुद्धिमान के समान कौन है? और किसी चीज़ की व्याख्या कौन जानता है? मनुष्य की बुद्धि से उसका मुख चमक उठता है, और उसके मुख का हियाव बदल जाता है।
2 मैं तुझे सम्मति देता हूं, कि राजा की आज्ञा का पालन करना, और परमेश्वर की शपथ के विषय में।
3 उसकी दृष्टि से ओझल न हो; किसी बुरी बात में न खड़ा होना; क्योंकि वह वही करता है जो उसे अच्छा लगता है।
4 जहां राजा का वचन होता है, वहां शक्ति होती है; और उस से कौन कहेगा, कि तू क्या करता है?
5 जो कोई आज्ञा का पालन करे, वह किसी बुरी बात का अनुभव न करे; और बुद्धिमान का मन समय और न्याय दोनों को समझ लेता है।
6 क्योंकि हर काम के लिये समय और न्याय होता है, इसलिथे मनुष्य की विपत्ति उस पर भारी पड़ती है।
7 क्योंकि वह नहीं जानता कि क्या होगा; उसे कौन बता सकता है कि वह कब होगा?
8 ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसे आत्मा पर अधिकार हो कि वह आत्मा को बनाए रखे; मृत्यु के दिन उसका अधिकार नहीं है; और उस युद्ध में कोई मुक्ति नहीं है; न तो दुष्टता उसका उद्धार करेगी, जो उसे दी गई है।
9 यह सब मैं ने देखा है, और जो काम सूर्य के नीचे किया जाता है उस पर मैं ने अपना मन लगाया है; एक समय ऐसा आता है जब एक मनुष्य अपने ही नुक्सान के लिए दूसरे पर शासन करता है।
10 और मैं ने दुष्टोंको मिट्टी दी हुई देखी, जो पवित्र के स्थान से आए और चले गए, और जिस नगर में उन्होंने ऐसा किया या, उस में वे भूल गए; यह भी व्यर्थता है।
11 क्योंकि बुरे काम का दण्ड शीघ्र नहीं होता, इस कारण मनुष्योंका मन उन में बुराई करने के लिथे लगा रहता है।
12 चाहे पापी सौ बार बुराई करे, और उसकी आयु लम्बी हो, तौभी मैं निश्चय जानता हूं, कि जो परमेश्वर का भय मानते हैं, जो उसके साम्हने डरते हैं, उनका भला ही होगा;
13 परन्तु दुष्ट का भला न होगा, और न उसकी आयु लम्बी होगी, जो छाया के समान है; क्योंकि वह परमेश्वर के साम्हने नहीं डरता।
14 पृय्वी पर एक व्यर्थ काम हुआ है; कि धर्मी मनुष्य हों, जिन पर दुष्टों के काम के अनुसार ऐसा होता है; फिर से दुष्ट लोग होते हैं, जिन पर धर्मियों के काम के अनुसार ऐसा होता है; मैंने कहा कि यह भी घमंड है।
15 तब मैं ने आनन्द की प्रशंसा की, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के पास खाने, पीने और आनन्द करने के सिवाय और कोई उत्तम वस्तु नहीं है; क्योंकि जो उसके जीवन के दिन जो परमेश्वर ने उसे सूर्य के नीचे दिए हैं, वह उसके परिश्रम में से उसके साथ बना रहेगा।
16 जब मैं ने बुद्धि जानने, और पृथ्वी पर के काम को देखने के लिथे अपना मन लगाया; (क्योंकि यह भी है कि न तो दिन और न रात उसकी आंखों से सोते हैं;)
17 तब मैं ने परमेश्वर के सब कामों को देखा, कि जो काम सूर्य के नीचे किया जाता है, वह मनुष्य नहीं जान सकता; क्योंकि चाहे मनुष्य उसे खोजने का परिश्रम करे, तौभी वह न पाएगा; हाँ आगे; चाहे बुद्धिमान व्यक्ति इसे जानने की सोचे, तौभी वह उसे न पा सकेगा।
अध्याय 9
जैसे चीजें सभी के साथ होती हैं - भगवान की भविष्यवाणी सभी पर शासन करती है - ज्ञान शक्ति से बेहतर है।
1 क्योंकि मैं ने अपने मन में इन सब बातोंका प्रचार करने का विचार किया, कि धर्मी, और बुद्धिमान, और उनके काम परमेश्वर के हाथ में हैं; जो कुछ उनके साम्हने है, उन से कोई मनुष्य प्रेम या बैर नहीं जानता।
2 सब वस्तुएँ सब पर एक समान आती हैं; धर्मियों और दुष्टों के लिए एक ही घटना होती है; भले और शुद्ध को, और अशुद्ध को; उसके लिए जो बलिदान करता है, और उसे जो बलिदान नहीं करता है; जैसा अच्छा है, वैसा ही पापी है; और जो शपय खाता है, वह शपय के डरवैयोंके नाईं है।
3 जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उन सब में यह बुराई है, कि सब पर एक ही घटना घटी है; हां, मनुष्यों का मन भी बुराई से भरा होता है, और जब तक वे जीवित रहते हैं उनके मन में पागलपन भरा रहता है, और उसके बाद वे मरे हुओं के पास जाते हैं ।
4 क्योंकि जो सब जीवतोंसे मिला है उसके लिथे आशा है; क्योंकि जीवित कुत्ता मरे हुए सिंह से उत्तम है।
5 क्योंकि जीवते जानते हैं कि वे मरेंगे; परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उन्हें फिर कोई प्रतिफल मिलता है; क्योंकि उनकी याद भुला दी जाती है।
6 उनका प्रेम, और उनका बैर, और उनकी डाह अब नाश हो गई है; और जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उस में उनका भाग सदा के लिये न रहेगा।
7 अपक्की चाल चल, अपक्की रोटी आनन्द से खा, और अपक्की दाखमधु मजे से पी; क्योंकि अब परमेश्वर तेरे कामों को स्वीकार करता है।
8 तेरे वस्त्र सदा उजले रहें; और तेरे सिर में मरहम की घटी न हो।
9 जिस पत्नी से तू प्रेम रखता है, उस अपक्की व्यर्थता के जीवन के सारे दिन जो उस ने तुझे सूर्य के नीचे दी है, और अपके अकारण जीवन भर आनन्द से रहे; क्योंकि इस जीवन में और जो परिश्रम तू ने सूर्य के नीचे किया है, उस में तेरा भाग वही है।
10 जो कुछ तेरा हाथ करे, उसे अपक्की शक्ति से करना; क्योंकि कब्र में जहां तू जाता है वहां न काम, न युक्ति, न ज्ञान, न बुद्धि है।
11 फिर मैं ने लौटकर सूर्य के नीचे देखा, कि न तो दौड़ में फुर्ती, और न बलवन्तोंका युद्ध, और न बुद्धिमानोंको रोटी, और न समझदारोंका धन, और न कुशल मनुष्योंपर अनुग्रह होता है; लेकिन समय और मौका उन सभी के साथ होता है।
12 क्योंकि मनुष्य भी अपके समय को नहीं जानता; उन मछलियों की नाईं जो बुरे जाल में फंस जाती हैं, और उन पक्षियों की नाईं जो फन्दे में फंस जाते हैं; उसी प्रकार मनुष्य के पुत्र उस बुरे समय में फन्दे में फंस जाते हैं, जब वह अचानक उन पर आ पड़ता है।
13 यह बुद्धि मैं ने सूर्य के नीचे भी देखी है, और यह मुझे बड़ी प्रतीत हुई;
14 एक छोटा सा नगर था, और उसके भीतर थोड़े ही पुरूष थे; और एक बड़े राजा ने उस पर चढ़ाई करके उसे घेर लिया, और उसके साम्हने बड़े बड़े गढ़ बनाए।
15 उस में एक कंगाल बुद्धिमान पाया गया, और उस ने अपक्की बुद्धि से नगर को छुड़ाया; तौभी किसी मनुष्य को वह बेचारा स्मरण न आया।
16 तब मैं ने कहा, बल से बुद्धि उत्तम है; तौभी कंगाल की बुद्धि तुच्छ जानी जाती है, और उसकी बातें नहीं सुनी जातीं।
17 बुद्धिमानों की बातें मूढ़ों के बीच प्रभुता करने वाले की दोहाई से अधिक चुपचाप सुनी जाती हैं।
18 युद्ध के हथियारों से बुद्धि उत्तम है; परन्तु एक पापी बहुत भलाई का नाश करता है।
अध्याय 10
बुद्धि और मूर्खता का।
1 मरी हुई मक्खियां औषधालय के सुगन्ध को सुगन्धित करती हैं; सो जो बुद्धि और आदर के लिथे प्रसिद्ध है, वह थोडी सी मूर्खता करता है।
2 बुद्धिमान का मन उसकी दहिनी ओर रहता है; लेकिन उसके बाईं ओर एक मूर्ख का दिल।
3 वरन जब मूढ़ मार्ग पर चलता है, तब उसकी बुद्धि निष्फल हो जाती है, और वह सब से कहता है, कि मैं मूढ़ हूं।
4 यदि हाकिम का आत्मा तुझ पर चढ़ाई करे, तो अपना स्थान न छोड़ना; महान अपराधों को शांत करने के लिए।
5 एक ऐसी विपत्ति है, जिसे मैं ने सूर्य के नीचे देखा है, वह ऐसी भूल है, जो हाकिम की ओर से होती है;
6 मूढ़ता बड़ी प्रतिष्ठा में होती है, और धनवान नीच स्थान पर बैठा रहता है।
7 मैं ने दासों को घोड़ों पर, और हाकिमों को पृय्वी पर दासों की नाईं टहलते देखा है।
8 जो गड़हा खोदे, वह उस में गिरेगा; और जो बाड़े को तोड़ता है, उसे सर्प डसेगा।
9 जो कोई पत्यर निकालेगा, वह उस से हानि उठाएगा; और जो लकडी काटा करता है, उस से संकट में पड़ जाएगा।
10 यदि लोहा कुंद हो, और वह किनारे पर न लगे, तो उसे और बल देना चाहिए; लेकिन ज्ञान निर्देशित करने के लिए लाभदायक है।
11 निश्चय ही सर्प बिना जादू के डसेगा; और एक बब्बलर बेहतर नहीं है।
12 बुद्धिमान के मुंह की बातें अनुग्रहकारी होती हैं; परन्तु मूर्ख के होंठ अपने आप ही निगल जाएंगे।
13 उसके मुंह की बातों का आरम्भ मूढ़ता ही है; और उसकी बात का अंत शरारती पागलपन है।
14 मूर्ख भी वचनों से भरा होता है; एक आदमी नहीं बता सकता कि क्या होगा; और उसके पीछे क्या होगा, उसे कौन बता सकता है?
15 मूर्खों का परिश्रम उन में से हर एक को थका देता है, क्योंकि वह नहीं जानता कि नगर को कैसे जाना है।
16 धिक्कार है देश पर, जब तेरा राजा बालक है, और तेरे हाकिम भोर को भोजन करते हैं!
17 धन्य है तू, हे भूमि, जब तेरा राजा रईसों का पुत्र है, और तेरे हाकिम नियत समय में बल के लिए खाते हैं, न कि पियक्कड़पन के लिए!
18 बहुत आलस्य से भवन सड़ जाता है; और हाथ के आलस्य से घर गिर जाता है।
19 हंसने के लिथे जेवनार की जाती है, और दाखमधु से आनन्द होता है; परन्तु पैसा सब बातों का उत्तर देता है।
20 राजा को श्राप न देना, और न अपक्की सोच में; और धनवानों को अपक्की कोठरी में शाप न देना; क्योंकि आकाश का पंछी शब्द ढोएगा, और जिसके पंख होंगे वह बात कहेगा।
अध्याय 11
दान - मृत्यु - न्याय का दिन।
1 अपक्की रोटी जल के ऊपर डाल दे; क्योंकि तुम बहुत दिनों के बाद उसे पाओगे।
2 सात को एक भाग दो, और आठ को भी; क्योंकि तू नहीं जानता कि पृथ्वी पर क्या विपत्ति होगी।
3 यदि बादल वर्षा से भरे हुए हों, तो वे पृय्वी पर अपने आप को खाली कर लेते हैं; और यदि वृक्ष दक्खिन की ओर वा उत्तर की ओर गिरे, तो वह वहीं रहे।
4 जो वायु को देखता है वह बोना न पाएगा; और जो बादलों की सुधि लेगा, वह कटनी न पाएगा।
5 जैसा तुम नहीं जानते कि आत्मा का मार्ग क्या है, और न उसके गर्भ में हडि्डयां कैसे बढ़ती हैं, जो गर्भ में है; तौभी तू परमेश्वर के कामों को नहीं जानता जो सब कुछ बनाता है।
6 भोर को अपना बीज बो, और सांझ को अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता, कि यह या वह, वा दोनों एक जैसे भले होंगे या नहीं।
7 रौशनी तो मीठी है, और आंखों से सूर्य को देखना मनोहर है;
8 परन्तु यदि कोई बहुत वर्ष जीवित रहे, और उन सब के कारण आनन्दित रहे; तौभी वह अन्धकार के दिनों को स्मरण करे; क्योंकि वे बहुत होंगे। वह सब आता है जो व्यर्थ है।
9 हे जवानो, अपनी जवानी में आनन्द करो; और जवानी के दिनों में तेरा मन जयजयकार करे, और अपके मन और अपके अपके मन की सी चाल चले; परन्तु तू यह जान ले, कि इन सब बातों के कारण परमेश्वर तुझे दण्ड देगा।
10 इस कारण अपके मन से दु:ख दूर कर, और अपके शरीर में से बुराई को दूर कर; बचपन और यौवन के लिए व्यर्थ है।
अध्याय 12
याद किया जाने वाला निर्माता - घमंड का मुख्य मारक ईश्वर का भय।
1 अब अपके सृष्टिकर्ता को अपनी जवानी के दिनोंमें स्मरण रखना, जब कि न तो बुरे दिन आएंगे, और न वे वर्ष निकट आएंगे, जब तू कहेगा, कि मैं उन से प्रसन्न नहीं हूं;
2 जबकि सूर्य, या प्रकाश, या चंद्रमा, या तारे, अन्धकारमय न हों, और न बादल बरसने के बाद लौटते हैं;
3 जिस दिन घर के रखवाले थरथराएंगे, और बलवान दण्डवत् करेंगे, और पीसनेवाले बन्द हो जाएंगे, क्योंकि वे थोड़े हैं, और जो खिड़कियों से बाहर देखते हैं वे अन्धेरे हो जाएंगे।
4 और जब पीसने का शब्द कम हो, तब द्वार चौकोंमें बन्द किए जाएं, और वह चिड़िया का शब्द सुनकर उठ खड़ा हो, और सब गानेवाली बेटियां नीची की जाएं;
5 और जब वे ऊंचे से डरेंगे, और मार्ग में भय उत्पन्न होगा, और बादाम का पेड़ फूलेगा, और टिड्डा बोझ होगा, और अभिलाषा निष्फल होगी; क्योंकि मनुष्य अपके लम्बे घर को जाता है, और विलाप करनेवाले सड़कोंपर घूमते रहते हैं;
6 वा चान्दी की डोरी कभी खोली जाए, वा सोने का कटोरा टूट जाए, वा घड़ा सोते के पास टूट जाए, वा पहिए गड़हे पर टूट जाए।
7 तब मिट्टी वैसी ही मिट्टी में मिल जाएगी जैसी वह थी; और आत्मा उसके देनेवाले की ओर फिर जाएगी।
8 उपदेशक की यह वाणी है, व्यर्थ की व्यर्थता; सब घमंड है।
9 और इसके अलावा, क्योंकि उपदेशक बुद्धिमान था, वह अब भी लोगों को ज्ञान की शिक्षा देता था; हां, उसने बहुत ध्यान दिया, और ढूंढ़ा, और बहुत सी कहावतें गढ़ी ।
10 उपदेशक ने स्वीकार्य शब्दों को खोजने की कोशिश की; और जो लिखा गया था वह सीधा था, यहां तक कि सत्य के वचन भी थे।
11 बुद्धिमानों की बातें बक्सों के समान होती हैं, और कीलों की नाईं जो मण्डली के हाकिमों के द्वारा बन्धन की जाती हैं, जो एक ही चरवाहे की ओर से दी जाती हैं।
12 और फिर, हे मेरे पुत्र, इनके द्वारा चिताया जाना; बहुत सारी किताबें बनाने का कोई अंत नहीं है; और बहुत अध्ययन शरीर की थकान है।
13 आओ हम सारे विषय का अन्त सुन लें; परमेश्वर का भय मान, और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; इसके लिए मनुष्य का संपूर्ण कर्तव्य है।
14 क्योंकि परमेश्वर सब कामों का, और सब गुप्त बातों का, चाहे वह भला हो, वा बुरा, न्याय करेगा।
[इंस्पायर्ड वर्शन की पांडुलिपि कहती है कि "सुलैमान के गीत प्रेरित लेखन नहीं हैं।"]
शास्त्र पुस्तकालय: बाइबिल का प्रेरित संस्करण
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