मुसायाह की किताब
अध्याय 1
1 और अब जराहेमला के सारे प्रदेश में, अर्थात् राजा बिन्यामीन के सब लोगों के बीच फिर कोई वाद-विवाद नहीं हुआ, और राजा बिन्यामीन अपने शेष दिनोंमें शांति बनाए रखता था।
2 और ऐसा हुआ कि उसके तीन बेटे हुए; और उस ने उनके नाम मुसायाह, और हेलोरुम, और हिलामन रखे।
3 और उस ने यह ठहराया, कि वे उसके पुरखाओं की सब भाषा में सिखाई जाएं, जिस से वे समझदार बनें; और वे भविष्यद्वाणियां जो उनके पुरखाओं के मुंह से कही गई या, जो यहोवा के हाथ से उन्हें दी गई थीं, उनके विषय में जानें।
4 और उस ने उन्हें उन अभिलेखोंके विषय में भी सिखाया जो पीतल की पट्टियोंपर खुदे हुए थे, और कहा, हे मेरे पुत्रों, मैं चाहता हूं कि तुम स्मरण रखो, कि यदि इन पट्टियोंमें ये अभिलेख और ये आज्ञाएं नहीं होतीं, तो हमें दुख उठाना पड़ता अज्ञानता में, इस समय भी, ईश्वर के रहस्यों को न जानकर:
5 क्योंकि यह संभव नहीं था कि हमारे पिता लेही को ये सब बातें याद रहतीं, जो उन्हें अपने बच्चों को सिखाती थीं, सिवाय इन पट्टियों की मदद के:
6 क्योंकि वह मिस्रियों की भाषा में पढ़ाया जाता था, इसलिए वह इन उत्कीर्णनों को पढ़ सकता था, और अपने बच्चों को सिखा सकता था, कि वे उन्हें अपने बच्चों को सिखा सकें, और इस तरह से भगवान की आज्ञाओं को पूरा कर सकें, यहां तक कि आज तक समय।
7 हे मेरे पुत्रों, मैं तुम से कहता हूं, कि क्या इन बातोंके कारण जो परमेश्वर के हाथ से सुरक्षित और सुरक्षित रखी गई हैं, कि हम उसके भेदोंको पढ़कर समझ सकें, और उसकी आज्ञाएं सदा हमारी आंखोंके साम्हने रहें, कि हमारे पिता अविश्वास में कम हो गए होंगे,
8 और हमें अपने भाइयों, लमनाइयों के समान होना चाहिए था, जो इन बातों के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं, या यहां तक कि जब उन्हें सिखाया जाता है तो उन पर विश्वास भी नहीं करते हैं, उनके पूर्वजों की परंपराओं के कारण, जो सही नहीं हैं ।
9 हे मेरे पुत्रों, मैं चाहता हूं कि तुम स्मरण रखो कि ये बातें सच हैं; और यह भी कि ये रिकॉर्ड सही हैं।
10 और देखो, नफी की पट्टियां भी, जिनमें अभिलेख और हमारे पूर्वजों के यरूशलेम छोड़ने के समय से लेकर अब तक की बातें हैं; और वे सच हैं; और हम उनके विश्वास को जान सकते हैं, क्योंकि वे हमारी आंखों के साम्हने हैं।
11 और अब, मेरे पुत्रों, मैं चाहता हूं कि तुम उनकी खोज में लगे रहना स्मरण रखो, कि इससे तुम्हें लाभ हो;
12 और मैं चाहता हूं कि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करो, कि तुम उन प्रतिज्ञाओं के अनुसार जो यहोवा ने हमारे पूर्वजों से की थीं, तुम प्रदेश में समृद्ध हो सको ।
13 और राजा बिन्यामीन ने अपने पुत्रोंको और भी बहुत सी बातें सिखाईं, जो इस पुस्तक में नहीं लिखी गई हैं।
14 और ऐसा हुआ कि जब राजा बिन्यामीन अपने पुत्रों को शिक्षा देना समाप्त कर चुका था कि वह बूढ़ा हो गया था; और उस ने देखा, कि उसे शीघ्र ही सारी पृय्वी की चढ़ाई करनी है; इसलिए, उसने सोचा कि यह समीचीन होगा कि वह अपने एक पुत्र को राज्य प्रदान करे।
15 इसलिथे उस ने मुसायाह को अपके साम्हने बुलवाया; और जो बातें उस ने उस से कही, वे ये हैं: मेरे पुत्र, मैं चाहता हूं कि तुम इस सारे देश में, या जराहेमला के लोगों, और मुसायाह के लोगों के बीच, जो इस में रहते हैं, एक घोषणा करना चाहिए। भूमि, कि इस प्रकार वे एक साथ इकट्ठे हो सकते हैं:
16 क्योंकि कल को मैं अपक्की प्रजा से अपके मुंह से यह प्रचार करूंगा, कि तू इन प्रजा पर जिसे हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को ठहराया है, राजा और हाकिम है।
17 और इसके अतिरिक्त, मैं इन लोगोंका नाम भी रखूंगा, जिस से वे उन सब प्रजा के लोगोंमें प्रतिष्ठित हों, जिन्हें यहोवा परमेश्वर यरूशलेम के देश से निकाल ले आया है; और मैं यह इसलिये करता हूं, क्योंकि वे यहोवा की आज्ञाओं को मानने में परिश्रमी रहे हैं।
18 और मैं उनको ऐसा नाम दूंगा, जो अपराध के बिना मिटाए जाने का कभी न पाए।
19 हां, और इसके अलावा, मैं तुमसे कहता हूं, कि यदि प्रभु के ये अत्यधिक प्रिय लोग अपराध में पड़ें, और दुष्ट और व्यभिचारी लोग बन जाएं, तो प्रभु उन्हें पकड़वाएगा, जिससे वे उनके समान कमजोर हो जाएंगे, भाइयों;
20 और जैसा वह अब तक हमारे पुरखाओं की रक्षा करता आया है, वैसा ही वह अपक्की अद्वितीय और अद्भुत शक्ति के द्वारा उन्हें फिर कभी न बचाएगा।
21 क्योंकि मैं तुमसे कहता हूं, कि यदि उसने हमारे पूर्वजों की रक्षा में अपना हाथ नहीं बढ़ाया होता, तो वे अवश्य ही लमनाइयों के हाथों में पड़ जाते, और उनकी घृणा के शिकार हो जाते ।
22 और ऐसा हुआ कि जब राजा बिन्यामीन ने अपने पुत्र से इन बातों को समाप्त कर दिया, तब उसने उसे राज्य के सभी मामलों की जिम्मेदारी दी ।
23 और इसके अलावा, उसने उन अभिलेखों के विषय में भी आज्ञा दी जो पीतल की पट्टियों पर खुदे हुए थे; और साथ ही, नफी की पट्टियां;
24 और लाबान की तलवार, और वह गोला वा निदेशक भी, जो हमारे पुरखाओं को जंगल में ले गए थे, जिसे यहोवा के हाथ से तैयार किया गया था, कि उनके द्वारा उनकी अगुआई की जा सके। उसे दिया।
25 इस कारण वे विश्वासघाती थे, और न आगे बढ़े, और न आगे बढ़े, वरन पीछे हटा दिए गए, और उन पर परमेश्वर का अप्रसन्न हो गया;
26 और इसलिए, उन्हें उनके कर्तव्य के स्मरण में उभारने के लिए अकाल और भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ा ।
27 और अब, ऐसा हुआ कि मुसायाह ने जाकर अपने पिता की आज्ञा के अनुसार किया, और उन सभी लोगों को जो जराहेमला प्रदेश में थे, घोषणा की, ताकि वे मंदिर में जाने के लिए एक साथ इकट्ठा हों, उन शब्दों को सुनो जो उसके पिता को उन से कहना चाहिए।
28 और ऐसा हुआ कि जब मुसायाह ने अपने पिता की आज्ञा के अनुसार किया, और सारे प्रदेश में एक घोषणा कर दी, कि लोग सारे प्रदेश में इकट्ठे हो गए, ताकि वे मंदिर में जाकर सुन सकें। वे बातें जो राजा बिन्यामीन को उन से कहनी चाहिए।
29 और उनकी गिनती इतनी अधिक थी कि उन्होंने उन्हें गिन नहीं लिया; क्योंकि वे बहुत बढ़ गए थे, और देश में बहुत बढ़ गए थे।
30 और उन्होंने अपक्की भेड़-बकरियोंके पहिलौठोंमें से भी ले लिया, कि वे मूसा की व्यवस्या के अनुसार मेलबलि और होमबलि चढ़ाएं;
31 और यह भी, कि वे अपने परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद करें, जो उन्हें यरूशलेम के देश से निकाल लाया था, और जिन्होंने उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया था, और धर्मी लोगों को उनके शिक्षक होने के लिए नियुक्त किया था, और साथ ही, उनका राजा होने के लिए एक न्यायी व्यक्ति,
32 जिन्होंने जराहेमला के प्रदेश में शांति स्थापित की थी, और जिन्होंने उन्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना सिखाया था, ताकि वे आनन्दित हों, और परमेश्वर और सभी लोगों के प्रति प्रेम से भर जाएं।
33 और ऐसा हुआ कि जब वे मंदिर में आए, तो उन्होंने अपने-अपने परिवार के अनुसार अपने-अपने तंबू लगाए, जिसमें उनकी पत्नी, और उनके बेटे, और उनकी बेटियां, और उनके बेटे और बेटियां थीं, बड़े से लेकर छोटे तक, हर एक परिवार अलग, एक दूसरे से अलग;
34 और अपके अपके डेरे अपके अपके डेरे का द्वार भवन की ओर अपके अपके अपके अपके अपके डेरे भवन के चारोंओर अपके अपके अपके अपके अपके अपके अपके अपके अपके डेरे की ओर अपके अपके अपके अपके अपके अपके डेरे में रहने, और वे वचन सुने जो राजा बिन्यामीन उन से कहे;
35 क्योंकि भीड़ इतनी बड़ी थी कि राजा बिन्यामीन उन सब को मन्दिर की शहरपनाह के भीतर उपदेश न दे सका; इसलिथे उस ने एक गुम्मट बनवाया; ताकि उसके लोग उन बातों को सुन सकें जो उसे उन से कहनी चाहिए।
36 और ऐसा हुआ कि वह गुम्मट से अपने लोगों से बातें करने लगा; और भीड़ की विशालता के कारण वे सब उसके वचन न सुन सके;
37 इसलिथे जो बातें उस ने कही थीं, वे लिखीं और उन के बीच भेजी गईं, जो उसके शब्द के अधीन नहीं थीं, कि वे भी उसके वचन ग्रहण करें।
38 और जो बातें उस ने कही, और जो उस ने लिखीं, वे ये हैं, कि हे मेरे भाइयो, तुम सब जो इकट्ठे हुए हो, तुम जो मेरी बातें सुन सकते हो, जो मैं आज तुम से कहूंगा:
39 क्योंकि मैं ने तुझे आज्ञा नहीं दी है, कि जो बातें मैं कहूं, उन्हें यहां तुच्छ समझूं, परन्तु इसलिये कि तू मेरी सुन, और सुनने के लिथे अपके कान खोल, और अपके मन जो समझ सकें, और अपके मन कि परमेश्वर के रहस्य आपके सामने प्रकट हो सकते हैं।
40 मैं ने तुम्हें यहां आने की आज्ञा नहीं दी, कि तुम मेरा भय मानो, वा यह समझो कि मैं अपने आप से एक नश्वर मनुष्य से बढ़कर हूं;
41 परन्तु मैं तुम्हारे समान तन और मन में सब प्रकार की दुर्बलताओं के अधीन हूं;
42 तौभी, जैसा कि मैं इन प्रजा के द्वारा चुन लिया गया, और अपके पिता के द्वारा पवित्र किया गया, और यहोवा के हाथ से ऐसा दुख उठा, कि मैं इन प्रजा पर हाकिम और राजा ठहरूं; और यहोवा ने मुझे जो शक्ति, मन, और शक्ति दी है, उस सब से तेरी सेवा करने के लिथे उसकी अतुलनीय शक्ति से सुरक्षित और सुरक्षित रखा गया है;
43 मैं तुम से कहता हूं, कि जैसा मैं ने अपके दिनोंको तेरी सेवा में बिताया है, वैसे ही आज तक मैं ने न तो सोना चान्दी, और न तुझ से किसी प्रकार का धन मांगा है;
44 न तो मैं ने सहा, कि तुम कोठरियोंमें बन्दी बनो, और न एक दूसरे को दास बनाओ, वा हत्या, वा लूट, या चोरी, वा व्यभिचार करो,
45 वा मैं ने दु:ख नहीं उठाया, कि तुम किसी प्रकार की दुष्टता करो, और तुम को सिखाया है, कि जितनी जो आज्ञाएं यहोवा ने तुम्हें दी हैं उन सब में तुम को मानना;
46 और मैं ने भी अपके ही हाथोंसे परिश्रम किया है, कि तेरी उपासना करूं, और तुम पर कर न लगूं, और ऐसी कोई वस्तु न हो, जो तुम पर भारी पड़े; और ये सब बातें जो मैं ने कही हैं, तुम आज के दिन के साक्षी हो।
47 तौभी, हे मेरे भाइयो, मैं ने ये काम नहीं किए, कि मैं घमण्ड करूं, और न ये बातें कहता हूं, कि इसलिथे तुझ पर दोष लगाऊं; परन्तु मैं तुम से ये बातें इसलिये कहता हूं, कि तुम जान सको कि मैं आज के दिन परमेश्वर के साम्हने स्पष्ट विवेक का उत्तर दे सकता हूं।
48 देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने तुम से कहा था कि मैं ने अपके दिन तेरी सेवा में बिता दिए हैं, मैं घमण्ड नहीं करना चाहता, क्योंकि मैं केवल परमेश्वर की उपासना करता आया हूं ।
49 और देखो, मैं तुम से ये बातें इसलिये कहता हूं, कि तुम बुद्धि सीखो; ताकि तुम सीख सको कि जब तुम अपने संगी प्राणियों की सेवा में होते हो, तो केवल अपने परमेश्वर की सेवा करते हो ।
50 देखो, तुम ने मुझे अपना राजा कहा है; और यदि मैं, जिसे तुम अपना राजा कहते हो, तुम्हारी सेवा करने के लिथे परिश्रम करे, तो क्या तुम्हें एक दूसरे की सेवा करने के लिथे परिश्रम नहीं करना चाहिए था?
51 और देखो, यदि मैं, जिसे तुम अपना राजा कहते हो, जिस ने तेरी सेवा में अपने दिन बिताए हैं, और परमेश्वर की सेवा में रहा है, तो मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, हे तू अपने स्वर्ग का धन्यवाद क्योंकर करता राजा!
52 हे मेरे भाइयो, मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम उस परमेश्वर को, जिस ने तुम्हारी सृष्टि की, और उसकी रक्षा की, और उसकी रक्षा की, और आनन्दित होने के कारण, वह सारा धन्यवाद और स्तुति करो, जो तुम्हारे सारे प्राणों के अधिकारी करने की शक्ति रखते हैं, , और यह दिया है कि तुम एक दूसरे के साथ शांति से रहो;
53 मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम उस की उपासना करो, जिस ने तुम्हें आरम्भ से ही रचा है, और श्वास देने के द्वारा दिन-ब-दिन तुम्हारी रक्षा करते रहे, कि तुम जीवित और गतिमान रहो, और अपनी इच्छा के अनुसार करो, और यहां तक कि एक पल से दूसरे पल आपका साथ देना;
54 मैं कहता हूं, कि यदि तुम अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करो, तौभी तुम लाभहीन दास ठहरोगे।
55 और देखो, जो कुछ वह तुझ से चाहता है, वह उसकी आज्ञाओं को मानना है; और उस ने तुम से प्रतिज्ञा की है कि यदि तुम उसकी आज्ञाओं को मानोगे, तो देश में समृद्ध हो जाओगे;
56 और जो कुछ उस ने कहा है उससे वह कभी अलग नहीं होता; इसलिए, यदि आप उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, तो वह आपको आशीर्वाद देता है, और आपको समृद्ध करता है।
57 और अब, सबसे पहले, उसने तुम्हें बनाया है, और तुम्हें तुम्हारे जीवन दिए हैं, जिसके लिए तुम उसके ऋणी हो ।
58 और दूसरी बात वह यह चाहता है कि जैसा उस ने तुम्हें आज्ञा दी है वैसा ही करो, क्योंकि यदि तुम ऐसा करते हो, तो वह तुरन्त तुम्हें आशीष देता है; और इसलिए, उसने तुम्हें भुगतान किया है।
59 और तुम अब भी उसके ऋणी हो; और हमेशा-हमेशा के लिए हैं, और रहेंगे; सो तुम किस बात पर घमण्ड करना चाहते हो?
60 और अब मैं पूछता हूं, क्या तुम अपने विषय में कुछ कह सकते हो ? मैं आपको जवाब देता हूं, नहीं।
61 तुम यह नहीं कह सकते कि तुम पृय्वी की मिट्टी के तुल्य हो, तौभी तुम पृथ्वी की मिट्टी से उत्पन्न हुए हो, परन्तु देखो, वह उसी का है जिस ने तुम्हें बनाया है।
62 और मैं, यहां तक कि मैं, जिसे तुम अपना राजा कहते हो, तुम से अच्छा नहीं हूं; क्योंकि मैं भी मिट्टी का हूं।
63 और तुम देखो कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, और इस नश्वर ढांचे को उसकी धरती माता को सौंपने पर हूं;
64 सो जैसा मैं ने तुम से कहा था, कि मैं ने परमेश्वर के साम्हने निर्मल विवेक के साथ चलते हुए तुम्हारी सेवा की है, वैसे ही इस समय भी तुम लोगोंको इकट्ठा किया है, कि मैं निर्दोष ठहरूं, और तुम्हारा लोहू न ठहरे। मुझ पर आ, जब मैं उन बातों के विषय में जिन की उस ने मुझे आज्ञा दी है, परमेश्वर का न्याय करने के लिथे खड़ा हो जाऊंगा।
65 मैं तुम से कहता हूं, कि जब तुम अपक्की कब्र पर जाने को हो, तब मैं ने तुम से इसलिये कहा है, कि तुम इकट्ठे हो जाओ, कि मैं अपके वस्त्र अपके लोहू से छुड़ा लूं।
66 कि मैं कुशल से नीचे जाऊं, और मेरी अमर आत्मा धर्मी परमेश्वर की स्तुति गाते हुए ऊपर के गायक मंडलियों के साथ मिल जाए।
67 और इसके अलावा, मैं तुम से कहता हूं, कि मैं ने तुम लोगों को एक साथ इकट्ठा किया है, कि मैं तुम्हें घोषित कर सकता हूं कि मैं अब तुम्हारा शिक्षक नहीं हो सकता, न ही तुम्हारा राजा;
68 क्योंकि इस समय भी तुम से बातें करने के लिथे मेरी सारी देह कांप उठती है;
69 परन्तु यहोवा परमेश्वर मेरी सहायता करता है, और उस ने मुझे सहा है, कि मैं तुझ से बातें करूं, और मुझे आज्ञा दी है, कि आज के दिन मैं तुझ से कहूं, कि मेरा पुत्र मुसायाह, तेरा राजा और हाकिम है।
70 और अब, मेरे भाइयों, मैं चाहता हूं कि तुम वही करो जो तुम अब तक करते आए हो ।
71 जैसे तुम ने मेरी और मेरे पिता की आज्ञाओं का पालन किया, और सफल हुए, और अपके शत्रुओं के हाथ में पड़ने से बच गए,
72 तौभी यदि तुम मेरे पुत्र की आज्ञाओं, वा परमेश्वर की उन आज्ञाओं का पालन करो, जो उसके द्वारा तुम्हें दी जाएंगी, तो तुम देश में सफल हो जाओगे, और तुम्हारे शत्रुओं का तुम पर अधिकार नहीं होगा।
73 परन्तु हे मेरी प्रजा, सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम में विवाद उत्पन्न हो, और तुम उस दुष्टात्मा की बात मानो, जिसके विषय में मेरे पिता मुसायाह ने कहा था।
74 क्योंकि देखो, जो उस आत्मा की आज्ञा मानना सुनता है, उस पर हाहाकार मच गया है; क्योंकि यदि वह उसकी आज्ञा को माने, और अपने पापोंके कारण मरा रहे, तो वही अपके प्राण के लिथे धिक्कार पीता है;
75 क्योंकि वह अपने ज्ञान के विपरीत, परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करके अपनी मजदूरी का अनन्त दण्ड पाता है।
76 मैं तुम से कहता हूं, कि तुम में से कोई नहीं, सिवाय तुम्हारे बालकों को, जिन्हें इन बातों के विषय में शिक्षा नहीं दी गई है, परन्तु जो जानते हैं कि तुम अपने स्वर्गीय पिता के सदा ऋणी हो।
77 जिस समय तक हमारे पिता लेही ने यरूशलेम को छोड़ा, उस समय तक जो भविष्यद्वाणियां पवित्र भविष्यद्वक्ताओं द्वारा कही गई हैं, उन अभिलेखों के विषय में जो कुछ तेरा है, और है, और सिखाया भी गया है, उसे उसे देना; और वह सब जो हमारे पुरखाओं ने अब तक कहा है।
78 और देखो, उन्होंने वही कहा जो उन्हें यहोवा की ओर से दिया गया था; इसलिए, वे न्यायसंगत और सत्य हैं।
79 और अब, मेरे भाइयों, मैं तुम से कहता हूं, कि इन सब बातों को जान लेने और सिखाए जाने के बाद, यदि तुम उल्लंघन करना, और उस के विपरीत जाना जो कहा गया है, कि तुम अपने आप को आत्मा से अलग कर लेते हो हे प्रभु, कि ज्ञान के मार्ग में आपका मार्गदर्शन करने के लिए आपके पास कोई स्थान नहीं हो सकता है, कि आप धन्य, समृद्ध और संरक्षित हो सकते हैं।
80 मैं तुम से कहता हूं, कि जो पुरूष ऐसा करता है, वही परमेश्वर के विरुद्ध बगावत करने को निकलता है;
81 इसलिथे वह सुनता है, कि वह दुष्टात्मा की आज्ञा मानेगा, और सब धर्म का बैरी ठहरेगा;
82 इस कारण यहोवा का उस में कोई स्थान नहीं, क्योंकि वह अपवित्र मन्दिरोंमें नहीं रहता।
83 इसलिए, यदि वह व्यक्ति पश्चाताप नहीं करता है, और परमेश्वर का शत्रु बना रहता है और मर जाता है, तो ईश्वरीय न्याय की मांग उसकी अमर आत्मा को अपने स्वयं के अपराध की जीवंत भावना के लिए जागृत करती है,
84 जो उसे यहोवा के साम्हने से हटने का कारण बना देता है, और उसकी छाती को दोष, और पीड़ा, और पीड़ा से भर देता है, जो उस आग के समान है, जो कभी न बुझने वाली है, और उसकी लपटें युगानुयुग ऊपर उठती रहती हैं।
85 और अब मैं तुम से कहता हूं, कि उस मनुष्य पर दया की कोई बात नहीं; इसलिए, उसका अंतिम कयामत कभी न खत्म होने वाली पीड़ा को सहना है।
86 हे सब बूढ़ों, और जवानों, और बालको, जो मेरी बातें समझ सकते हैं, (क्योंकि मैं ने तुम से सीधी बात इसलिए कही है, कि तुम समझो।)
87 मैं प्रार्थना करता हूं कि तुम उन लोगों की भयानक स्थिति की याद में जागते रहो जो अपराध में पड़ गए हैं;
88 और इसके अलावा, मैं चाहता हूं कि तुम उन लोगों की धन्य और सुखी स्थिति पर विचार करो जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते हैं ।
89 क्योंकि देखो, वे लौकिक और आत्मिक दोनों बातोंमें आशीष पाते हैं;
90 और यदि वे अन्त तक विश्वासयोग्य बने रहें, तो वे स्वर्ग में ग्रहण किए जाते हैं, कि इस रीति से वे अनन्त सुख की दशा में परमेश्वर के साथ वास करें।
91 हे स्मरण रखना, कि ये बातें सच हैं; क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने यह कहा है।
92 और फिर, मेरे भाइयों, मैं तुम्हारा ध्यान आकर्षित करूंगा, क्योंकि मुझे तुमसे कुछ और कहना है:
93 क्योंकि देखो, जो आनेवाले हैं उसके विषय में मुझे तुम से कुछ बातें कहनी हैं; और जो बातें मैं तुम से कहूं, वे परमेश्वर के दूत के द्वारा मुझ पर प्रगट की गई हैं।
94 उस ने मुझ से कहा, जागो; और मैं उठा, और क्या देखा, वह मेरे साम्हने खड़ा हुआ है।
95 और उस ने मुझ से कहा, जाग, और जो बातें मैं तुझ से कहूं, उन्हें सुन; क्योंकि देख, मैं तुझे बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाने आया हूं।
96 क्योंकि यहोवा ने तेरी प्रार्थना सुनी है, और तेरे धर्म का न्याय किया है, और मुझे तेरे पास यह कहने के लिथे भेजा है कि तू आनन्द करे; और इसलिथे कि तू अपक्की प्रजा के साम्हने यह समाचार दे, कि वे भी आनन्द से भर जाएं।
97 क्योंकि देखो, वह समय आता है, और दूर नहीं है, कि शक्ति के साथ, सर्वशक्तिमान प्रभु, जो राज्य करता है, और अनंत काल से अनंत काल तक है, मनुष्यों के बीच स्वर्ग से उतरेगा, और करेगा मिट्टी के एक तम्बू में रहना,
98 और मनुष्यों के बीच में निकलेंगे, जो बड़े चमत्कार करते हैं, जैसे बीमारों को चंगा करना, मरे हुओं को जिलाना, लंगड़ों को चलना, अंधों को उनकी दृष्टि, और बहरे को सुनना, और सब प्रकार के रोगों को ठीक करना;
99 और वह दुष्टात्माओं, वा दुष्टात्माओं को जो मनुष्यों के मन में बसती हैं, निकाल देगा।
100 और देखो, वह परीक्षाएं, और शरीर की पीड़ा, भूख, प्यास, और थकान सहेगा, जब तक कि मनुष्य मृत्यु तक न सह सके;
101 क्योंकि देखो, लोहू सब रोमछिद्रोंसे निकलता है, उसकी प्रजा की दुष्टता और घिनौने कामोंके कारण उसका कोप इतना बड़ा होगा।
102 और वह आरम्भ से ही यीशु मसीह, परमेश्वर का पुत्र, स्वर्ग और पृथ्वी का पिता, और सब वस्तुओं का सृष्टिकर्ता कहलाएगा; और उसकी माता मरियम कहलाएगी।
103 और देखो, वह अपके पास आता है, कि उसके नाम पर विश्वास के द्वारा मनुष्योंका उद्धार हो;
104 और इस सब के बाद भी वे उसको मनुष्य समझकर कहें, कि उस में दुष्टात्मा है, और कोड़े, और क्रूस पर चढ़ाएंगे।
105 और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा; और देखो, वह जगत का न्याय करने को खड़ा है।
106 और देखो, ये सब काम इसलिथे किए गए हैं, कि मानव संतान पर धर्म का न्याय आए।
107 क्योंकि देखो, और उसका लहू भी उनके पापों का प्रायश्चित करता है, जो आदम के अपराध के कारण मारे गए हैं, और उनके विषय में परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानते, या जिन्होंने अनजाने में पाप किया है।
108 परन्तु हाय, उस पर जो यह जानता है कि वह परमेश्वर से बलवा करता है; क्योंकि ऐसे किसी को भी उद्धार नहीं मिलता, केवल मन फिराव और प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से होता है।
109 और यहोवा परमेश्वर ने सब मनुष्योंके बीच अपके पवित्र भविष्यद्वक्ताओंको भेजा, कि वे सब जाति, और जाति, और भाषा में इन बातोंका प्रचार करें, कि इस से जो कोई विश्वास करे कि मसीह आएगा, वह अपके पापोंकी क्षमा पाए, और मगन हो। बड़े हर्ष के साथ, मानो वह उनके बीच पहले ही आ चुका हो।
110 तौभी यहोवा परमेश्वर ने देखा, कि उसकी प्रजा हठीली प्रजा है, और उस ने उसके लिथे मूसा की व्यवस्था अर्थात व्यवस्था ठहराया।
111 और उस ने अपके आने के विषय में बहुत से चिन्ह, और चमत्कार, और प्रकार, और छाया उन को दिखाईं:
112 और पवित्र भविष्यद्वक्ताओं ने भी उसके आने के विषय में उन से बातें कीं;
113 तौभी उन्होंने अपने मन कठोर किए, और न समझे, कि मूसा की व्यवस्था का कोई काम नहीं, केवल उसके लोहू के प्रायश्चित के द्वारा;
114 और यदि छोटे बालकोंके पाप करना भी हो सकता था, तौभी उनका उद्धार न हुआ; परन्तु मैं तुम से कहता हूं, वे धन्य हैं;
115 क्योंकि देखो, जैसे आदम में या स्वभाव से गिरते हैं, वैसे ही मसीह का लोहू उनके पापों का प्रायश्चित करता है।
116 और इसके अलावा, मैं तुम से कहता हूं, कि कोई दूसरा नाम नहीं दिया जाएगा, न ही कोई अन्य तरीका और न ही कोई साधन होगा जिससे मनुष्यों के बच्चों को मुक्ति मिल सकती है, केवल मसीह में और उसके नाम के माध्यम से, सर्वशक्तिमान प्रभु।
117 क्योंकि देखो, वह न्याय करता है, और उसका न्याय धर्मी होता है, और जो बच्चा बाल्यावस्था में ही मर जाता है, वह नाश नहीं होता;
118 परन्तु मनुष्य अपके ही प्राणोंके लिथे धिक्कार पीते हैं, जब तक कि वे अपने आप को दीन करके नन्हे बालकोंके समान न हो जाएं, और विश्वास करें कि उद्धार सर्वशक्तिमान प्रभु, मसीह के प्रायश्चित लहू में और उसके द्वारा आया है, और है, और आने वाला है:
119 क्योंकि स्वाभाविक मनुष्य परमेश्वर का शत्रु है, और आदम के पतन से ही रहा है, और युगानुयुग रहेगा;
120 परन्तु यदि वह पवित्र आत्मा के मोह के आगे झुक जाए, और स्वाभाविक मनुष्य को त्यागकर प्रभु मसीह के प्रायश्चित के द्वारा संत हो जाए, और बालक के समान आज्ञाकारी, नम्र, दीन, सब्र से परिपूर्ण हो जाए प्यार, उन सभी चीजों के अधीन होने को तैयार है जो भगवान उसे देना उचित समझते हैं, जैसे कि एक बच्चा अपने पिता के अधीन होता है।
121 और इसके अलावा, मैं तुम से कहता हूं, कि वह समय आएगा, जब एक उद्धारकर्ता का ज्ञान हर जाति, जाति, भाषा और लोगों में फैल जाएगा।
122 और देखो, जब वह समय आएगा, तो परमेश्वर के साम्हने निर्दोष न पाया जाएगा, सिवाय छोटे बालकों के, केवल पश्चाताप और सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर के नाम पर विश्वास के द्वारा;
123 और इस समय भी, जब तू अपक्की प्रजा को जो बातें अपके परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है उन्हें सिखाएगा, तब भी वे परमेश्वर की दृष्टि में फिर निर्दोष न ठहरेंगे, केवल उन बातोंके अनुसार जो मैं ने तुझ से कही हैं। .
124 और अब मैं ने वे बातें कह दी हैं जिनकी आज्ञा यहोवा परमेश्वर ने मुझे दी है।
125 और यहोवा योंकहता है, कि वे न्याय के दिन इन लोगोंके साम्हने तेज साक्षी ठहरेंगे;
126 इसलिथे सब मनुष्योंके कामोंके अनुसार उनका न्याय किया जाएगा, चाहे वे भले हों, वा बुरे;
127 और यदि वे दुष्ट हैं, तो उन्हें उनके स्वयं के अपराध और घृणित कार्यों के बारे में एक भयानक दृश्य के लिए भेजा जाता है, जो उन्हें प्रभु की उपस्थिति से, दुख और अंतहीन पीड़ा की स्थिति में सिकुड़ने का कारण बनता है, जहां से वे और नहीं लौट सकते। : इसलिए, उन्होंने अपनी ही आत्मा को धिक्कार दिया है।
128 इसलिए, उन्होंने परमेश्वर के क्रोध के प्याले में से नशे में पी लिया है, जिसे न्याय उन्हें अस्वीकार नहीं कर सकता था, क्योंकि यह मना कर सकता था कि आदम को मना किया गया था, क्योंकि वह मना किया गया था; इसलिए, दया उन पर हमेशा के लिए दावा नहीं कर सकती थी।
129 और उनकी पीड़ा आग और गन्धक की झील के समान है, जिसकी लपटें न बुझनेवाली हैं, और जिसका धुआँ युगानुयुग ऊपर उठता रहता है।
130 यहोवा ने मुझे इस प्रकार आज्ञा दी है। तथास्तु।
मुसायाह, अध्याय 2
1 और अब, ऐसा हुआ कि जब राजा बिन्यामीन ने उन बातों को बोलना समाप्त कर दिया जो उसे प्रभु के दूत द्वारा दी गई थीं, तब उसने भीड़ पर अपनी दृष्टि डाली, और देखो पृय्वी, क्योंकि यहोवा का भय उन पर छा गया या;
2 और उन्होंने अपने आप को अपनी शारीरिक स्थिति में देखा था, यहां तक कि पृथ्वी की धूल से भी कम।
3 और वे सब एक स्वर से चिल्ला उठे, कि हे दया कर, और मसीह का प्रायश्चित लहू लागू कर, कि हम अपके पापोंकी क्षमा पाएं, और हमारा मन शुद्ध हो जाए।
4 क्योंकि हम परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं, जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और सब कुछ बनाया, जो मनुष्यों के बीच में आएगा।
5 और ऐसा हुआ कि इन बातों को कहने के बाद, प्रभु की आत्मा उन पर उतरी, और वे आनन्द से भर गए,
6 जो बातें राजा बिन्यामीन ने उन से कही थीं, उन के अनुसार यीशु मसीह पर जो आने वाला था, उस पर उनका अत्याधिक विश्वास था, इसलिए उनके पापों की क्षमा और विवेक की शांति पाई गई।
7 तब राजा बिन्यामीन ने फिर अपना मुंह खोला, और उन से कहने लगा, हे मेरे मित्रों, और मेरे भाइयों, मेरे कुटुम्ब, और मेरी प्रजा, मैं फिर तेरी ओर ध्यान दूंगा, कि तुम मेरी शेष बातोंको जो मैं सुनता और समझता हूं। तुमसे बात करेगा;
8 क्योंकि देखो, यदि इस समय परमेश्वर की भलाई के ज्ञान ने तुम्हें अपनी शून्यता, और तुम्हारी निकम्मी और पतित अवस्था का बोध करा दिया है;
9 मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम परमेश्वर की भलाई, और उसकी अतुलनीय शक्ति, और उसकी बुद्धि, और उसके सब्र, और उसके मनुष्योंके प्रति उसके दीर्घकालीन कष्ट को जान गए हो,
10 और यह भी, कि प्रायश्चित जो जगत की उत्पत्ति से तैयार किया गया है, कि उसके द्वारा उद्धार पानेवाले के पास उद्धार आए, जो उस पर भरोसा रखता है
हे प्रभु, और उसकी आज्ञाओं का पालन करने में परिश्रमी होना चाहिए, और अपने जीवन के अंत तक विश्वास में बने रहना चाहिए; मेरा मतलब है नश्वर शरीर का जीवन;
11 मैं कहता हूं, कि यह वही मनुष्य है, जो उस प्रायश्चित्त के द्वारा जो जगत की उत्पत्ति के समय से तैयार किया गया था, उद्धार पाने वाला है, क्योंकि आदम के पतन के समय से जो कभी थे, या जो हैं या जो होंगे, उन सब के लिथे। दुनिया के अंत तक भी; और यही वह साधन है जिससे मोक्ष प्राप्त होता है।
12 और जिस के विषय में कहा गया है, उसके सिवा और कोई उद्धार नहीं; और न ही ऐसी कोई शर्त है जिससे मनुष्य को बचाया जा सके, सिवाय उन शर्तों के जो मैं ने तुम से कही है।
13 परमेश्वर पर विश्वास रखो; विश्वास करो कि वह है, और उसने स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में सब कुछ बनाया;
14 विश्वास करो कि उसके पास स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में सारी बुद्धि और सारी शक्ति है; 15 विश्वास कर, कि जो कुछ यहोवा समझ सकता है, वह मनुष्य नहीं समझता।
16 और फिर: विश्वास करो कि तुम्हें अपने पापों से पश्चाताप करना चाहिए और उन्हें त्याग देना चाहिए, और परमेश्वर के सामने अपने आप को दीन करना चाहिए; और सच्चे मन से मांगो कि वह तुम्हें क्षमा करे:
17 और अब, यदि तुम इन सब बातोंकी प्रतीति करते हो, तो उन पर करना देखो।
18 और जैसा मैं ने पहिले कहा, वैसा ही मैं तुम से फिर कहता हूं, कि जैसे तुम परमेश्वर की महिमा को जान गए हो,
19 या यदि तुम ने उसकी भलाई के विषय में जान लिया हो, और उसके प्रेम का स्वाद चखा हो, और अपने पापों की क्षमा पा ली हो, जिसके कारण तुम्हारे मन में ऐसा बड़ा आनन्द होता है,
20 वैसे ही मैं चाहता हूं कि तुम स्मरण रखो, और परमेश्वर की महानता, और अपनी शून्यता, और उसकी भलाई, और अपक्की अपक्की अपक्की अपक्की अपक्की दु:ख को सदा स्मरण करते रहो,
21 और दीनता की गहराइयों में भी अपने आप को दीन किया करो, और प्रतिदिन यहोवा का नाम लो, और उस विश्वास में जो आनेवाली है, जो स्वर्गदूत के मुख से कहा गया है, दृढ़ रहे;
22 और देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम ऐसा करो, तो तुम सर्वदा आनन्दित रहोगे, और परमेश्वर के प्रेम से परिपूर्ण रहोगे, और अपने पापों की क्षमा हमेशा बनाए रखोगे;
23 और तुम उस की महिमा के ज्ञान में बढ़ते जाओ जिस ने तुम्हें बनाया है, या उसके ज्ञान में जो धर्मी और सत्य है।
24 और तुम में यह मन न होगा कि तुम एक दूसरे को ठेस पहुंचाओ, परन्तु मेल से जीवन बिताओ, और एक एक मनुष्य को उसके हक़ के अनुसार बदला दो।
25 और तुम अपके बालकोंको ऐसा न दु:ख न देना, कि वे भूखे वा नंगे रहें;
26 न तो तुम दु:ख पाओगे, कि वे परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करें, और आपस में लड़ें, और आपस में झगड़ें, और उस दुष्टात्मा की सेवा करें, जो पाप का स्वामी है, वा वह दुष्टात्मा है जिसके विषय में हमारे पूर्वजों ने कहा है; वह सब धार्मिकता का शत्रु होने के कारण;
27 परन्तु तुम उन्हें सच्चाई और संयम के मार्ग पर चलना सिखाओगे; तुम उन्हें एक दूसरे से प्रेम करना, और एक दूसरे की सेवा करना सिखाओगे;
28 और जिन लोगों को तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है, उनकी भी तुम स्वयं सहायता करोगे; तुम अपके धन में से जो दरिद्र खड़ा हो, उसको देना;
29 और तुम न सहोगे, कि भिखारी तुम से बिनती करे, और वह नाश हो जाए।
30 कदाचित तू यह कहना, कि मनुष्य ने अपक्की विपत्ति अपने ऊपर ले ली है; इसलिथे मैं अपके हाथ पर लगा रहूंगा, और अपके भोजन में से उसको न दूंगा, और न उसे अपना धन कुछ दूंगा, कि वह दुख न उठाए, क्योंकि उसका दण्ड धर्मी है।
31 परन्तु मैं तुम से कहता हूं, हे मनुष्य, जो कोई ऐसा करता है, उसके मन फिराने का बड़ा कारण है; और जब तक वह अपने किए का पश्चाताप न करे, वह सदा के लिए नाश हो जाता है, और परमेश्वर के राज्य में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
32 क्योंकि देखो, क्या हम सब भिखारी नहीं हैं? हमारे पास जो कुछ भी है, क्या उसके लिए हम सब एक ही सत्ता पर, यहाँ तक कि परमेश्वर पर भी निर्भर नहीं हैं; अन्न, वस्त्र, सोना, चान्दी, और सब धन जो हमारे पास सब प्रकार का है?
33 और देखो, तुम इस समय भी उसका नाम लेते रहे, और अपने पापों की क्षमा के लिए भीख मांगते रहे ।
34 और क्या उस ने दुख उठाया है कि तुम व्यर्थ भीख मांगते हो?
35 नहीं; उस ने तुम पर अपना आत्मा उण्डेल दिया है, और तुम्हारे हृदयों को आनन्द से भर दिया है, और तुम्हारे मुंह को बंद कर दिया है, कि तुम वचन को न पा सके, इसलिए तुम्हारा आनंद बहुत अधिक था।
36 और अब, यदि परमेश्वर, जिसने तुम्हें बनाया है, जिस पर तुम अपने जीवन के लिए निर्भर हो, और जो कुछ तुम्हारे पास है और जो कुछ भी है, वह तुम्हें वह प्रदान करता है जो तुम सही मांगते हो, विश्वास के साथ, यह विश्वास करते हुए कि तुम प्राप्त करोगे, हे तो, जो पदार्थ तुम्हारे पास है, उसे एक दूसरे को कैसे बांटना चाहिए था?
37 और यदि तुम उस मनुष्य का न्याय करो, जो तुम्हारे धन के लिये तुझ से बिनती करता है, कि वह नाश न हो, और उसे दोषी ठहराए, तो तेरा दण्ड कितना अधिक न्यायसंगत होगा, क्योंकि तू अपनी संपत्ति को रोककर रखता है, जो तेरा नहीं है, परन्तु परमेश्वर, तेरा जीवन भी उसी का है;
38 और तौभी तुम ने बिनती नहीं की, और जो काम तू ने किया है उसके लिये मन फिरा नहीं।
39 मैं तुम से कहता हूं, उस मनुष्य पर हाय, क्योंकि उसका धन उसके साथ नाश हो जाएगा; और अब मैं धनवानों से इस संसार की वस्तुओं के विषय में ये बातें कहता हूं।
40 और फिर मैं कंगालों से कहता हूं, तुम्हारे पास जिनके पास अब तक नहीं है, कि तुम दिन प्रतिदिन बने रहो; मेरा मतलब उन सभी से है जो भिखारी से इनकार करते हैं, क्योंकि तुमने नहीं किया है; मैं चाहता हूं कि तुम अपने मन में कहो, कि मैं नहीं देता, क्योंकि मेरे पास नहीं है; लेकिन अगर मेरे पास होता, तो मैं देता।
41 और अब, यदि तुम अपने मन में यह कहते हो, तो निर्दोष ठहरते हो, नहीं तो तुम दोषी ठहरोगे, और तुम्हारा दण्ड धर्मी होगा; क्योंकि तुम उस का लालच करते हो जो तुम को नहीं मिला।
42 और अब, इन बातों के कारण जो मैं ने तुम से कही हैं; अर्थात् दिन-ब-दिन अपने पापों की क्षमा पाने के निमित्त, कि तुम परमेश्वर के साम्हने निर्दोष होकर चलते रहो,
43 मैं चाहता हूं कि जो कुछ उसके पास है, उसके अनुसार तुम कंगालों को अपनी संपत्ति बांटो, जैसे भूखे को खाना खिलाना, नग्नों को कपड़े पहनाना, बीमारों की सुधि लेना, और उनके अनुसार आध्यात्मिक और अस्थायी रूप से राहत देना। उनकी चाहत,
44 और देख, कि ये सब काम बुद्धि और नियम से किए जाते हैं, क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि मनुष्य बल से तेज दौड़े।
45 और फिर: यह समीचीन है कि वह मेहनती हो, जिससे वह पुरस्कार जीत सके: इसलिए, सब कुछ क्रम में किया जाना चाहिए ।
46 और मैं चाहता हूं, कि तुम स्मरण रखो, कि तुम में से जो कोई अपके पड़ोसी से उधार लेता है, वह अपनी सहमति के अनुसार जो कुछ वह उधार लेता है, उसे लौटा दे।
47 नहीं तो तू पाप करेगा, और शायद अपके पड़ोसी से भी पाप करवाएगा।
48 और अन्त में, मैं तुम से वे सब बातें नहीं बता सकता जिनके द्वारा तुम पाप कर सकते हो; क्योंकि मार्ग और साधन इतने हैं कि मैं उन्हें गिन नहीं सकता।
49 परन्तु मैं तुम से इतना ही कह सकता हूं, कि यदि तुम अपके मन, और अपके विचार, और अपनी बातें, और अपने कामोंकी चौकसी न करके परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने में लगे रहो, और उस पर विश्वास करते रहो, जो तुम ने उसके विषय में सुना है। हमारे प्रभु के आने पर, अपने जीवन के अंत तक, तुम नाश हो जाओगे।
50 और अब, हे मनुष्य, स्मरण कर, और नाश न हो।
मुसायाह, अध्याय 3
1 और अब, ऐसा हुआ कि जब राजा बिन्यामीन ने अपने लोगों से इस प्रकार बात की, तो उसने उनके बीच यह जानने के लिए उनके लोगों को भेजा, कि क्या वे उन बातों पर विश्वास करते हैं जो उसने उनसे कही थीं ।
2 और वे सब एक स्वर से चिल्ला उठे, कि हां, जो बातें तू ने हम से कही हैं उन सभोंकी हम प्रतीति करते हैं;
3 और साथ ही, हम सर्वशक्तिमान प्रभु की आत्मा के कारण उनकी निश्चितता और सच्चाई के बारे में जानते हैं, जिसने हम में, या हमारे दिलों में एक शक्तिशाली परिवर्तन लाया है, कि अब हमारे पास बुराई करने का कोई और स्वभाव नहीं है, बल्कि लगातार अच्छा करने के लिए है .
4 और हम स्वयं भी, परमेश्वर की अनंत भलाई, और उसके आत्मा के प्रगटीकरणों के द्वारा, जो आने वाला है, उसके बारे में महान विचार रखते हैं; और यदि यह समीचीन होता, तो हम सब बातों की भविष्यवाणी कर सकते थे।
5 और जो बातें हमारे राजा ने हम से कही हैं, उन पर हमारा विश्वास यह है, और इस महान ज्ञान में हम को लाया है, जिसके द्वारा हम इतने बड़े आनन्द से आनन्दित होते हैं;
6 और हम अपके परमेश्वर से वाचा बान्धने को, उसकी इच्छा पूरी करने के लिथे, और हमारे बचे हुए दिनोंमें सब बातोंमें जो वह हमें आज्ञा देता है, मानने के लिए तैयार हैं, ऐसा न हो कि हम अपके ऊपर एक ले आएं। अनन्त पीड़ा, जैसा कि स्वर्गदूत ने कहा है, कि हम परमेश्वर के क्रोध के प्याले में से न पीएं।
7 और अब, जो बातें राजा बिन्यामीन ने उन से चाहा वे ये हैं; और इसलिथे उस ने उन से कहा, जो बातें मैं ने चाहा वे तुम ने कह दी हैं; और जो वाचा तुम ने बान्धी है, वह धर्म की वाचा है।
8 और अब, जो वाचा तुम ने बान्धी है, उसके कारण तुम मसीह की सन्तान, और उसके बेटे और बेटियां कहलाएंगे:
9 क्योंकि देखो, उस ने आज ही के दिन तुम को आत्मिक रूप से उत्पन्न किया है; क्योंकि तुम कहते हो कि उसके नाम पर विश्वास करने से तुम्हारा मन बदल गया है; इस कारण तुम उससे उत्पन्न हुए, और उसके बेटे-बेटियां हुए।
10 और इसी के अधीन तुम स्वतंत्र किए गए हो; और कोई दूसरा सिर नहीं है जिससे तुम स्वतंत्र हो सको।
11 और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा उद्धार होता है, इसलिए, मैं चाहता हूं कि तुम मसीह का नाम अपने ऊपर ले लो, जो तुम लोगों ने परमेश्वर के साथ वाचा में प्रवेश किया है, कि तुम अपने जीवन के अंत तक आज्ञाकारी बने रहो।
12 और ऐसा होगा कि जो कोई ऐसा करेगा, वह परमेश्वर के दाहिने हाथ मिलेगा, क्योंकि वह उस नाम को जानेगा जिसके द्वारा उसे बुलाया जाता है; क्योंकि वह मसीह के नाम से पुकारा जाएगा।
13 और अब, ऐसा होगा कि जो कोई अपने ऊपर मसीह का नाम नहीं लेगा, उसे किसी अन्य नाम से पुकारा जाना चाहिए; इसलिए, वह खुद को भगवान के बाएं हाथ में पाता है।
14 और मैं चाहता हूं कि तुम यह भी स्मरण रखो, कि जो नाम मैं ने कहा था, वह यह है, कि मैं तुम्हें दूंगा, कि वह कभी भी मिटाया न जाए, केवल अपराध के कारण;
15 इस कारण सावधान रहना, कि अपराध न करना, ऐसा न हो कि नाम तुम्हारे मन से मिटा दिया जाए।
16 मैं तुम से कहता हूं, कि मैं चाहता हूं, कि जो नाम तुम्हारे मन में लिखा हुआ है, उसे तुम सदा स्मरण रखना, कि तुम परमेश्वर की बाईं ओर नहीं पाए जाते, परन्तु यह कि तुम उस शब्द को सुनते और जानते हो जिसके द्वारा तुम बुलाए जाने वाले हो, और और जिस नाम से वह तुझे पुकारेगा;
17 क्योंकि जिस स्वामी की उस ने उपासना नहीं की, और जो उसका परदेशी है, और जो अपने मन की सोच और युक्तियों से दूर रहता है, वह मनुष्य कैसे जाने? 18 और फिर: क्या कोई अपने पड़ोसी की गदही लेकर उसकी रखवाली करता है?
19 मैं तुम से कहता हूं, नहीं; वह दु:ख भी न उठाएगा, कि अपक्की भेड़-बकरियोंके बीच चराएगा, वरन उसे दूर भगाएगा, और निकाल देगा।
20 मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम उस नाम को नहीं जानते जिससे तुम पुकारे जाते हो, तो तुम्हारे बीच भी ऐसा ही होगा।
21 इसलिए, मैं चाहता हूं कि तुम दृढ़ और अचल रहो, हमेशा अच्छे कामों में बढ़ते रहो, कि मसीह, सर्वशक्तिमान भगवान, तुम पर मुहर लगाए, कि तुम स्वर्ग में लाए जाओ, कि तुम्हें अनन्त उद्धार और अनन्त जीवन प्राप्त हो, उस की बुद्धि, और सामर्थ, और न्याय, और दया के द्वारा, जिस ने स्वर्ग में और पृथ्वी पर सब कुछ बनाया, जो सब से ऊपर परमेश्वर है। तथास्तु।
मुसायाह, अध्याय 4
1 और अब, राजा बिन्यामीन ने लोगों से बातें करने के बाद यह उचित समझा, कि वह उन सभों के नाम लें, जिन्होंने उसकी आज्ञाओं को मानने के लिए परमेश्वर के साथ वाचा बान्धी थी ।
2 और ऐसा हुआ कि छोटे बच्चों को छोड़कर एक भी प्राणी नहीं था, परन्तु जो वाचा में शामिल हुआ था, और जिसने उन पर मसीह का नाम धारण कर लिया था ।
3 और फिर: ऐसा हुआ कि जब राजा बिन्यामीन ने इन सब बातों को समाप्त कर दिया, और अपने पुत्र मुसायाह को अपनी प्रजा पर एक शासक और एक राजा होने के लिए पवित्र कर दिया, और उसे राज्य से संबंधित सभी प्रभार दिए थे,
4 और लोगों को उपदेश देने के लिथे याजकों को भी ठहराया, कि वे सुनकर परमेश्वर की आज्ञाओं को जानें, और उस शपय के स्मरण से जो उन्होंने की थी, उभारा, उस ने भीड़ को विदा किया, और वे सब अपने अपने अनुसार लौट गए। उनके परिवारों को, उनके अपने घरों को।
5 और मुसायाह अपने पिता के स्थान पर राज्य करने लगा।
6 और लेही के यरूशलेम से निकलने के समय से लगभग चार सौ छिहत्तर वर्ष होते हुए, वह अपनी आयु के तीसवें वर्ष में राज्य करने लगा।
7 और राजा बिन्यामीन तीन वर्ष जीवित रहा, और वह मर गया।
8 और ऐसा हुआ कि राजा मुसायाह प्रभु के मार्गों पर चला, और उसके नियमों, और विधियों का पालन किया, और जो कुछ भी उसने उसे आज्ञा दी, उन सब बातों में उसकी आज्ञाओं का पालन किया ।
9 और राजा मुसायाह ने अपनी प्रजा को पृय्वी पर जोतने का काम किया।
10 और उसने आप ही पृय्वी पर ऐसा किया, कि इस रीति से वह अपक्की प्रजा पर भारी न पड़ जाए, और जैसा उसके पिता ने किया या, उसके अनुसार सब कुछ करे।
11 और उसकी सारी प्रजा के बीच तीन वर्ष तक कोई विवाद न हुआ।
मुसायाह, अध्याय 5
1 और अब, ऐसा हुआ कि राजा मुसायाह के तीन वर्ष के अंतराल में लगातार शांति रहने के बाद, वह उन लोगों के बारे में जानना चाहता था जो लेही-नफी के प्रदेश में, या शहर में रहने के लिए गए थे। लेही-नेफी:
2 क्योंकि जब से वे जराहेमला प्रदेश से निकले, तब से उसकी प्रजा ने उन से कुछ न सुना; इसलिए, उन्होंने उसे अपने चिढ़ाने के साथ पहना।
3 और ऐसा हुआ कि राजा मुसायाह ने अनुमति दी कि उनके सोलह बलवान अपने भाइयों के बारे में पूछताछ करने के लिए लेही-नफी के प्रदेश जा सकें ।
4 और ऐसा हुआ कि अगले दिन, उनके साथ एक अम्मोन था, जो एक मजबूत और पराक्रमी व्यक्ति था, और जराहेमला का वंशज था; और वह उनका नेता भी था।
5 और अब, वे नहीं जानते थे कि लेही-नफी के प्रदेश में जाने के लिए उन्हें निर्जन प्रदेश में किस मार्ग की यात्रा करनी चाहिए; इस कारण वे बहुत दिन तक जंगल में भटकते रहे, और चालीस दिन तक भटकते रहे।
6 और जब वे चालीस दिन तक फिरते रहे, तब वे एक पहाड़ी पर पहुंचे, जो शीलोम देश के उत्तर में है, और वहां उन्होंने अपके डेरे खड़े किए।
7 और अम्मोन ने अपने तीन भाइयों को लिया, और उनके नाम अमालेकी, हेलेम और हेम थे, और वे नफी के प्रदेश में गए;
8 और देखो, वे लोगों के राजा से मिले, जो नफी के प्रदेश में, और शिलोम के प्रदेश में था;
9 और वे राजा के पहरेदारों से घिरे हुए, और पकड़े गए, और बन्धे हुए, और बन्दीगृह में डाले गए।
10 और ऐसा हुआ कि जब वे दो दिन बंदीगृह में रहे, तब उन्हें फिर राजा के साम्हने लाया गया, और उनके बन्धन खोल दिए गए;
11 और वे राजा के साम्हने खड़े हुए, और उन्हें आज्ञा दी गई, कि जो प्रश्न वह उन से पूछे, वे उनका उत्तर दें।
12 और उस ने उन से कहा, देखो, मैं नूह का पुत्र लिमही हूं, जो जेनिफ का पुत्र था, जो जराहेमला प्रदेश से इस प्रदेश का अधिकारी होने के लिए आया था, जो उनके पूर्वजों का देश था, जिसे बनाया गया था। लोगों की आवाज से राजा।
13 और अब, मैं जानना चाहता हूं कि जिस कारण से तुम इतने निडर थे कि नगर की शहरपनाह के निकट आ गए, जब मैं स्वयं अपके रक्षकोंके साथ फाटक के बाहर था ?
14 और अब, इस कारण से मैं ने सहा है कि तुम सुरक्षित रहो, कि मैं तुम से पूछूं, या नहीं तो मैं अपने पहरेदारों को मार डालता । आपको बोलने की अनुमति है।
15 और अब, जब अम्मोन ने देखा कि उसे बोलने की अनुमति दी गई है, तो वह आगे बढ़कर राजा के सामने झुक गया; और फिर उठकर कहा, हे राजा, मैं आज के दिन परमेश्वर के साम्हने बहुत धन्यवादी हूं, कि मैं अब तक जीवित हूं, और मुझे बोलने का अधिकार है;
16 और मैं हियाव से बोलने का यत्न करूंगा; क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं, कि यदि तुम मुझे जानते होते, तो तुम को यह दुख न होता कि मैं इन पट्टियों को धारण करता।
17 क्योंकि मैं अम्मोन हूं, और जराहेमला का वंशज हूं, और जराहेमला प्रदेश से अपने भाइयों के विषय में पूछने आया हूं, जिन्हें जेनिफ उस देश से निकाल लाया था।
18 और अब, ऐसा हुआ कि जब लिमही ने अम्मोन की बातें सुनीं, तो वह बहुत प्रसन्न हुआ, और कहा, अब, मैं निश्चित रूप से जानता हूं कि मेरे भाई जो जराहेमला प्रदेश में थे, अब तक जीवित हैं ।
19 और अब मैं आनन्दित रहूंगा; और कल को मैं अपनी प्रजा के भी आनन्दित होने का कारण बनूंगा।
20 क्योंकि देखो, हम लमनाइयों के बंधन में हैं, और उस पर एक कर लगाया जाता है जिसे वहन करना कठिन होता है ।
21 और अब, देखो, हमारे भाई हमें हमारी दासता से, या लमनाइयों के हाथों से छुड़ाएंगे, और हम उनके दास होंगे:
22 क्योंकि लमनाइयों के राजा को कर देने से अच्छा है कि हम नफाइयों के दास बनें ।
23 और अब, राजा लिमही ने अपने रक्षकों को आज्ञा दी कि वे अम्मोन और न ही उसके भाइयों को फिर न बांधें, बल्कि उस पहाड़ी पर जाएं जो शीलोम के उत्तर में है, और अपने भाइयों को नगर में ले जाएं, ताकि वे खा सकें, और पीओ, और उनकी यात्रा के परिश्रम से विश्राम करो;
24 क्योंकि उन्होंने बहुत दुख उठाए थे; उन्हें भूख, प्यास और थकान का सामना करना पड़ा था।
25 और अब, ऐसा हुआ कि अगले दिन, राजा लिमही ने अपने सभी लोगों के बीच एक उद्घोषणा भेजी, ताकि वे मंदिर में इकट्ठा हो सकें, ताकि वे उन बातों को सुन सकें जो वह उनसे कहेगा ।
26 और ऐसा हुआ कि जब वे इकट्ठे हो गए, तो उसने उनसे इस प्रकार कहा,
27 हे मेरी प्रजा, अपके सिर उठा कर शान्ति पाओ; क्योंकि देखो, वह समय निकट है, या दूर नहीं, जब हम अपने शत्रुओं के आधीन न रहेंगे, भले ही हम अपने बहुत से संघर्षों में रहे हों, व्यर्थ; फिर भी मुझे विश्वास है कि एक प्रभावी संघर्ष करना बाकी है।
28 इस कारण सिर उठाकर आनन्दित हो, और उस परमेश्वर पर भरोसा रख, जो इब्राहीम का परमेश्वर था, और इसहाक और याकूब;
29 और यह भी, कि परमेश्वर जो इस्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल ले आया, और लाल समुद्र के बीच सूखी भूमि पर चलने के लिए प्रेरित किया, और उन्हें मन्ना खिलाया, कि वे जंगल में नष्ट न हों; और उस ने उनके लिये और भी बहुत कुछ किया।
30 और फिर वही परमेश्वर हमारे पुरखाओं को यरूशलेम से निकाल ले आया, और अब तक अपक्की प्रजा की रक्षा करता और उसकी रक्षा करता है।
31 और देखो, यह हमारे अधर्म और घिनौने कामों के कारण है, जिसने हमें दासता में डाल दिया है ।
32 और तुम सब आज के दिन इस बात के साक्षी हैं, कि ज़ेनिफ, जो इन लोगोंका राजा हुआ, और अपके पुरखाओं के देश का अधिकारी होने के लिथे अति उत्साही था,
33 इसलिए राजा लमान की चालाकी और धूर्तता से धोखा खाकर, जिसने राजा जेनिफ के साथ एक संधि की थी, और प्रदेश के एक हिस्से, या लेही-नफी के शहर की संपत्ति को उसके हाथों में सौंप दिया था, और शिलोम शहर; और चारों ओर की भूमि;
34 और यह सब उसने इन लोगों को वश में करने, या दासत्व में लाने के एकमात्र उद्देश्य से किया।
35 और देखो, हम इस समय लमनाइयों के राजा को अपने आधे अनाज, और अपने जौ, और यहां तक कि हमारे सभी प्रकार के अनाज, और अपने भेड़-बकरियों की वृद्धि का आधा कर देते हैं। , और हमारे झुंड;
36 और हमारे पास जो कुछ है या उसका आधा भी है, लमनाइयों का राजा हम पर, या हमारे जीवन का अधिकार देता है ।
37 और अब, क्या यह सहन करना कठिन नहीं है?
38 और क्या यह हमारा दु:ख बड़ा नहीं है?
39 अब देखो, हमारे पास शोक करने का क्या ही बड़ा कारण है?
40 हां, मैं तुम से कहता हूं, शोक करने के बड़े कारण हैं: क्योंकि देखो, हमारे कितने भाई मारे गए हैं, और उनका लोहू व्यर्थ बहाया गया है, और सब अधर्म के कारण ।
41 क्योंकि यदि ये लोग अपराध में न पड़ते, तो यहोवा उन पर यह बड़ी विपत्ति न आने देता।
42 परन्तु देखो, उन्होंने उसकी बात नहीं मानी; परन्तु उन में इतना वाद-विवाद हुआ, कि वे आपस में लहू बहाने लगे।
43 और उन्होंने यहोवा के एक भविष्यद्वक्ता को घात किया है; हां, परमेश्वर का एक चुना हुआ व्यक्ति, जिसने उन्हें उनकी दुष्टता और घृणित कार्यों के बारे में बताया, और आने वाली बहुत सी चीजों के बारे में भविष्यवाणी की, हां, यहां तक कि मसीह के आने की भी ।
44 और क्योंकि उसने उनसे कहा, कि मसीह सब वस्तुओं का पिता परमेश्वर है, और कहा कि वह अपने ऊपर मनुष्य का स्वरूप धारण करे, और यह वह स्वरूप हो जिसके बाद मनुष्य की सृष्टि की गई;
45 या दूसरे शब्दों में, उसने कहा कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप के अनुसार बनाया गया था, और परमेश्वर मनुष्यों के बीच उतरकर उस पर मांस और लोहू लेकर पृथ्वी पर फैल जाए;
46 और अब क्योंकि उसने यह कहा था, उन्होंने उसे मार डाला; और उन्होंने और भी बहुत कुछ किया, जिस से उन पर परमेश्वर का कोप भड़क उठा।
47 सो कौन सोचता है, कि वे बन्धन में हैं, और उन पर घोर क्लेश पड़े हैं?
48 क्योंकि देखो, यहोवा ने कहा है, कि मैं अपक्की प्रजा के अपराध के दिन उनकी सहायता न करूंगा; परन्तु मैं उनके मार्ग को ऐसा गढ़ूंगा, कि वे सुफल न हों; और उनके काम उनके साम्हने ठोकर के समान ठहरेंगे।
49 और वह फिर कहता है, कि यदि मेरी प्रजा गन्दगी बोए, तो उसकी भूसी बवण्डर में काटेंगे; और उसका प्रभाव विष है।
50 और वह फिर कहता है, कि यदि मेरी प्रजा अशुद्धता बोए, तो वे पुरवाई की कटनी काटेंगे, जो तुरन्त विनाश की ओर ले आती है।
51 और अब देखो, यहोवा की प्रतिज्ञा पूरी हुई है; और तुम मारे गए, और पीड़ित हो।
52 परन्तु यदि तुम पूरे मन से यहोवा की ओर फिरो, और उस पर भरोसा रखो, और पूरे मन से उसकी उपासना करो; यदि तुम ऐसा करोगे, तो वह अपनी इच्छा और इच्छा के अनुसार तुम्हें दासता से छुड़ाएगा।
53 और ऐसा हुआ कि जब राजा लिमही ने अपने लोगों से बात करना समाप्त कर दिया, क्योंकि उसने उनसे बहुत सी बातें कीं, और उनमें से कुछ को ही मैंने इस पुस्तक में लिखा है, तो उसने अपने लोगों को उनके बारे में सारी बातें बताईं। जराहेमला के प्रदेश में रहने वाले भाई;
54 और उसने अम्मोन को भीड़ के साम्हने खड़ा किया, और उन सभी को उन सब का पूर्वाभ्यास कराया जो उनके भाइयों के साथ हुए थे, जब तक कि जेनिफ प्रदेश से बाहर चला गया, यहां तक कि जब तक वह स्वयं प्रदेश से बाहर नहीं आया। .
55 और उसने उन्हें वे अन्तिम बातें भी सुनाईं जो राजा बिन्यामीन ने उन्हें सिखाई थीं, और उन्हें राजा लिमही के लोगों को समझाया, ताकि वे उसकी सारी बातें समझ सकें।
56 और ऐसा हुआ कि यह सब करने के बाद, राजा लिमही ने भीड़ को विदा किया, और प्रत्येक को अपने-अपने घर लौटने को कहा ।
57 और ऐसा हुआ कि उसने उन पट्टियों को अम्मोन के सामने लाया, जिसमें उनके लोगों के जराहेमला प्रदेश से निकलने के समय से उनके लोगों के अभिलेख थे, ताकि वह उन्हें पढ़ सके ।
58 अब, जैसे ही अम्मोन ने अभिलेख पढ़ा, राजा ने उससे पूछा कि क्या वह भाषाओं की व्याख्या कर सकता है ।
59 और अम्मोन ने उससे कहा कि वह नहीं कर सकता।
60 और राजा ने उस से कहा, अपक्की प्रजा के क्लेशोंके कारण उदास होकर मैं ने अपक्की प्रजा में से तैंतालीस लोगोंको जंगल में ले चलने को कहा, जिस से वे जराहेमला का प्रदेश पा सकें; कि हम अपके भाइयोंसे बिनती करें, कि हम को दासत्व से छुड़ा लें;
61 और वे बहुत दिन तक जंगल में खो गए, तौभी वे परिश्रमी थे, और जराहेमला का प्रदेश न पाकर, बहुत जल के बीच में यात्रा करके इस देश को लौट गए;
62 उस देश की खोज की जो मनुष्यों, और पशुओं, आदि की हड्डियों से ढँका हुआ था, और हर तरह के भवनों के खंडहरों से भी ढका हुआ था:
63 एक ऐसे देश की खोज करके जो इस्राएल की सेना के समान असंख्य लोगों से भरा हुआ था।
64 और इस बात की गवाही के लिये कि जो बातें उन्होंने कही हैं वे सच हैं, वे चौबीस पट्टियां लाए हैं, जो खुदी हुई हैं; और वे चोखे सोने के हैं।
65 और देखो, वे बड़े बड़े चपरास भी लाए हैं; और वे पीतल और तांबे के बने हुए हैं, और उत्तम हैं।
66 और वे फिर से तलवारें लाए हैं, और उनकी मूठें नाश हो गई हैं, और उनकी पट्टियां ज़ंग से लदी हुई हैं;
67 और उस देश में ऐसा कोई नहीं, जो उस भाषा या पट्टों पर की गई खुदी हुई बातों का अर्थ निकाल सके।
68 इस कारण मैं ने तुझ से कहा, क्या तू अनुवाद कर सकता है?
69 और मैं तुझ से फिर कहता हूं, क्या तू किसी ऐसे के विषय में जानता है जो अनुवाद कर सके? क्योंकि मैं चाहता हूं कि इन अभिलेखों का हमारी भाषा में अनुवाद किया जाए।
70 क्योंकि वे हमें उन बचे हुओं के विषय में जानकारी दें, जो नाश किए गए हैं, जहां से ये अभिलेख आए हैं;
71 वा शायद वे हमें इन्हीं लोगों के विषय में जो नाश किए गए हैं, ज्ञान दें; और मैं उनके विनाश का कारण जानना चाहता हूं।
72 अब अम्मोन ने उस से कहा, हे राजा, मैं तुझे निश्चय बता सकता हूं, कि उस मनुष्य के विषय में जो अभिलेखोंका अनुवाद कर सकता है; क्योंकि उसके पास ऐसा साधन है, जिससे वह देख सकता है, और सब अभिलेखोंका अनुवाद कर सकता है, जो प्राचीनकाल के हैं; भगवान।
73 और बातें दुभाषिए कहलाती हैं; और कोई मनुष्य उन में तब तक नहीं देख सकता, जब तक उसे आज्ञा न दी जाए, ऐसा न हो कि वह उस वस्तु को ढूंढ़ ले, जिस में वह नहीं होनी चाहिए, और वह नाश हो जाए।
74 और जिस किसी को उन में देखने की आज्ञा दी गई है, वही द्रष्टा कहलाता है।
75 और देखो, जराहेमला प्रदेश की प्रजा का राजा वही है जिसे इन कामों को करने की आज्ञा दी गई है, और जिसके पास परमेश्वर की ओर से यह महान वरदान है ।
76 तब राजा ने कहा, कि दर्शी भविष्यद्वक्ता से बड़ा है।
77 और अम्मोन ने कहा, कि द्रष्टा प्रकट करनेवाला, और भविष्यद्वक्ता भी है; और जो बड़ा दान है, वह किसी मनुष्य के पास नहीं हो सकता, जब तक कि उसके पास परमेश्वर की वह सामर्थ न हो, जो कोई मनुष्य नहीं ले सकता; तौभी मनुष्य के पास परमेश्वर की ओर से दी गई बड़ी शक्ति हो सकती है।
78 परन्तु द्रष्टा भूतकाल की बातें, और भविष्य की बातें भी जान सकता है;
79 और उनके द्वारा सब बातें प्रगट होंगी, वा यों कहें कि गुप्त बातें प्रगट होंगी, और छिपी बातें प्रगट होंगी, और जो बातें अज्ञात हैं, वे उन से प्रगट होंगी;
80 और साथ ही, उनके द्वारा ऐसी बातें बताई जाएंगी, जिन्हें अन्यथा नहीं जाना जा सकता था ।
81 इस प्रकार परमेश्वर ने एक साधन प्रदान किया है कि मनुष्य विश्वास के द्वारा शक्तिशाली चमत्कार कर सकता है; इसलिए, वह अपने साथियों के लिए एक बड़ा लाभ बन जाता है।
82 और अब, जब अम्मोन ने इन बातों को बोलना समाप्त किया, तब राजा बहुत आनन्दित हुआ, और परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए कहा,
83 निस्संदेह, इन पट्टियों में एक बड़ा रहस्य छिपा है; और ये दुभाषिए निस्संदेह ऐसे सभी रहस्यों को मनुष्यों के बच्चों के सामने प्रकट करने के उद्देश्य से तैयार किए गए थे।
84 यहोवा के काम कितने अद्भुत हैं, और वह अपक्की प्रजा के साथ कब तक दु:ख उठाता है;
85 वरन मनुष्यों की समझ कितनी अन्धी और अभेद्य है; क्योंकि वे ज्ञान की खोज में नहीं रहते, और न यह चाहते हैं कि वह उन पर प्रभुता करे।
86 हां, वे जंगली भेड़-बकरियोंके समान हैं, जो चरवाहे के पास से भागकर तितर-बितर हो जाती हैं, और भगा दी जाती हैं, और वन के जन्तु खा जाते हैं।
मुसायाह, अध्याय 6
जेनिफ का रिकॉर्ड - जराहेमला के प्रदेश के कोर्ट-कचहरी से लेकर लमनाइयों के हाथों से छुड़ाए जाने तक उसके लोगों का लेखा-जोखा ।
1 मैं, जेनिफ, नफाइयों की सभी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के बाद, और नफी के प्रदेश, या हमारे पूर्वजों की पहली विरासत के प्रदेश का ज्ञान रखने के बाद, और लमनाइयों के बीच एक जासूस के रूप में भेजा गया था, कि मैं उनकी सेना का भेद ले सकता हूं, कि हमारी सेना उन पर चढ़ाई करे और उनका नाश करे;
2 परन्तु जब मैं ने देखा, कि उन में क्या अच्छा है, तो मेरी लालसा थी, कि वे नाश न हों; इसलिथे मैं ने जंगल में अपके भाइयोंसे वाद विवाद किया; क्योंकि मैं चाहता हूं, कि हमारा हाकिम उन से वाचा बान्धे।
3 परन्तु उस ने कठोर और खून का प्यासा होकर आज्ञा दी, कि मुझे मार डाला जाए; परन्तु अत्यधिक लहू बहाकर मैं बचा लिया गया;
4 क्योंकि पिता पिता से और भाई भाई से तब तक लड़ते रहे, जब तक कि हमारी बड़ी सेना जंगल में नाश न हो गई;
5 और हम में से जो बच गए थे, हम जराहेमला प्रदेश लौट गए, कि वह कहानी उनकी पत्नियों, और उनके बच्चों को सुनाए।
6 और तौभी, मैं अपने पुरखाओं के प्रदेश के अधिकारी होने के लिए अति उत्साही होकर, जितने लोग उस प्रदेश के अधिकारी होने के लिए जाने की इच्छा रखते थे, उन्हें इकट्ठा किया, और फिर से जंगल में अपनी यात्रा पर निकल पड़ा, ताकि उस प्रदेश में जाऊं; परन्तु हम अकाल और दु:खों से ग्रसित हुए; क्योंकि हम अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण करने में विलम्ब से थे।
7 तौभी बहुत दिन तक जंगल में भटकने के बाद हम ने अपके अपके अपके अपके अपके भाई घात किए हुए डेरे में अपके अपके पितरोंके देश के निकट डेरे लगाए।।
8 और ऐसा हुआ कि मैं अपने चार आदमियों के साथ फिर से राजा के पास नगर में गया, ताकि मैं राजा के स्वभाव को जान सकूं; और मैं जानूं कि क्या मैं अपक्की प्रजा के संग भीतर जाऊं, और देश को कुशल से अधिकारी करूं।
9 और मैं राजा के पास गया, और उस ने मुझ से वाचा बान्धी, कि मैं लेही-नफी के प्रदेश, और शीलोम के प्रदेश का अधिकारी हो सकूं।
10 और उस ने यह भी आज्ञा दी, कि अपक्की प्रजा उस देश से निकल जाए, और मैं अपक्की प्रजा समेत उस देश में चला गया, कि हम उसके अधिकारी हो जाएं।
11 और हम भवन बनाने लगे, और नगर की शहरपनाह की मरम्मत करने लगे, हां, लेही-नफी नगर की शहरपनाह, और शीलोम नगर की भी ।
12 और हम सब प्रकार के बीज, और अन्न, गेहूँ, जव, नस, शूम, और सब प्रकार के फलोंके बीज लेकर भूमि पर जोतने लगे; और हम इस देश में गुणा और समृद्ध होने लगे ।
13 अब, यह राजा लमन की चालाकी और धूर्तता थी, कि मेरे लोगों को गुलामी में लाया, कि उसने प्रदेश को अपने अधीन कर लिया, ताकि हम उस पर अधिकार कर सकें ।
14 इसलिए, ऐसा हुआ कि प्रदेश में बारह वर्षों तक रहने के बाद, राजा लमन बेचैन होने लगा, कहीं ऐसा न हो कि मेरे लोग प्रदेश में मजबूत हो जाएं, और वे उन पर हावी न हो सकें। और उन्हें बंधन में डाल दो।
15 अब, वे आलसी और मूर्तिपूजक लोग थे; इसलिए, वे चाहते थे कि हमें गुलामी में लाया जाए, कि वे हमारे हाथों के परिश्रम से अपने आप को भर लें; हां, ताकि वे हमारे खेतों की भेड़-बकरियों पर भोजन करें ।
16 इसलिए, ऐसा हुआ कि राजा लमन ने अपने लोगों को भड़काना शुरू कर दिया, ताकि वे मेरे लोगों से लड़ें; इसलिए, देश में युद्ध और विवाद होने लगे।
17 क्योंकि, मेरे राज्य के तेरहवें वर्ष में, नफी प्रदेश में, शिलोम प्रदेश के दक्षिण में, जब मेरे लोग पानी पिला रहे थे और अपने भेड़-बकरियों को चरा रहे थे, और अपनी भूमि को जोत रहे थे, लमनाइयों की एक बड़ी संख्या उन पर आ गई थी, और वे उनको घात करने लगे, और उनकी भेड़-बकरियोंमें से, और उनके खेत की उपज लेने लगे।
18 हां, और ऐसा हुआ कि वे भाग गए, वे सभी जिन्हें पकड़ा नहीं गया था, यहां तक कि नफी के नगर में, और सुरक्षा के लिए मुझसे आग्रह किया ।
19 और ऐसा हुआ कि मैंने उन्हें धनुष, और तीरों से, तलवारों से, और घेरों से, और लाठियों से, और गोफनों से, और सभी प्रकार के हथियारों से, जिनका हम आविष्कार कर सकते थे, हथियारों से लैस किया, और मैंने और मेरे लोगों ने ऐसा किया लमनाइयों से युद्ध करने के लिए निकल जाओ;
20 हां, प्रभु की शक्ति में हम लमनाइयों के विरुद्ध युद्ध करने निकले;
21 क्योंकि मैं और मेरी प्रजा ने यहोवा की दोहाई दी, कि वह हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ाए, क्योंकि हम अपने पुरखाओं के छुटकारे का स्मरण करके जाग गए थे।
22 और परमेश्वर ने हमारी दोहाई सुनी, और हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया; और हम उसके पराक्रम में आगे बढ़े।
23 हां, हम लमनाइयों के विरुद्ध गए थे; और एक दिन और रात में हम ने तीन हजार तैंतालीस को मार डाला; हम ने उनको तब तक घात किया, जब तक कि हम ने उन्हें अपके देश से निकाल न दिया।
24 और मैं ने, अपके ही हाथोंसे, उनके मरे हुओं को गाड़ने में सहायता की ।
25 और देखो, हमारे बड़े शोक और विलाप के कारण, हमारे दो सौ उनहत्तर भाई मारे गए ।
26 और ऐसा हुआ कि हमने राज्य को फिर से स्थापित करना शुरू कर दिया; और हम फिर से उस देश पर शान्ति से अधिकार करने लगे।
27 और मैंने यह करवाया कि युद्ध के हर प्रकार के हथियार बनाए जाएं, जिससे कि मेरे पास अपने लोगों के लिए हथियार हो सकें, उस समय के खिलाफ जब लमनाइयों को मेरे लोगों के खिलाफ युद्ध करने के लिए फिर से आना चाहिए ।
28 और मैंने प्रदेश के चारों ओर पहरेदारों को तैनात किया ताकि अनजाने में लमनाई हम पर फिर से आक्रमण न करें, और हमें नष्ट न करें;
29 और इस प्रकार मैं ने अपक्की प्रजा और अपक्की भेड़-बकरियोंकी रक्षा की, और उन्हें अपके शत्रुओंके हाथ में पड़ने से बचाया ।
30 और ऐसा हुआ कि कई वर्षों तक हम अपने पूर्वजों के प्रदेश के अधिकारी रहे; हाँ, बाईस साल की जगह के लिए।
31 और मैं ने लोगों को भूमि जोतने, और सब प्रकार के अन्न, और सब प्रकार के सब प्रकार के फल उगाने की आज्ञा दी।
32 और मैं ने स्त्रियां चराने, और परिश्रम करने, और काम करने का कारण किया; और सब प्रकार के उत्तम मलमल का काम करो; हां, और हर प्रकार का कपड़ा, ताकि हम अपना तन पहिन सकें;
33 और इस प्रकार हम प्रदेश में समृद्ध हुए; इस प्रकार हमें बाईस वर्षों के अंतराल के लिए देश में निरंतर शांति मिली।
34 और ऐसा हुआ कि राजा लमन की मृत्यु हो गई, और उसका पुत्र उसके स्थान पर लगाम लगाने लगा ।
35 और वह अपक्की प्रजा को मेरी प्रजा से बलवा करने के लिथे भड़काने लगा; इस कारण वे युद्ध की तैयारी करने लगे, और मेरी प्रजा से लड़ने को चढ़ाई करने लगे।
36 परन्तु मैं ने अपके भेदियोंको शेमलोन देश के चारोंओर भेज दिया था, कि मैं उनकी तैयारी को जानूं, कि मैं उन से पहरा देूं, कि वे मेरी प्रजा पर चढ़ाई करके उन्हें नाश न करें।
37 और ऐसा हुआ कि वे शीलोम प्रदेश के उत्तर की ओर अपनी असंख्य सेनाओं के साथ, धनुष, और तीरों, और तलवारों, और पत्थरों, और गोफनों से लैस लोगों के साथ आए;
38 और उन्होंने अपने सिर मुंडवाए, और वे नंगे थे; और वे अपनी कमर के चारोंओर चमड़े का कमरबंद बान्धे हुए थे।
39 और ऐसा हुआ कि मैंने अपने लोगों की स्त्रियों और बच्चों को निर्जन प्रदेश में छिपा दिया;
40 और मैंने यह भी करवाया कि मेरे सभी पुरनिये जो शस्त्र धारण कर सकते थे, और मेरे सभी जवान जो शस्त्र धारण करने में सक्षम थे, लमनाइयों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए स्वयं को एकत्रित करें; और मैं ने उन्हें अपके अपके अपके आयु के अनुसार अपके अपके पद पर ठहराया।
41 और ऐसा हुआ कि हम लमनाइयों के विरुद्ध युद्ध करने गए ।
42 और मैं, यहां तक कि मैं, अपने बुढ़ापे में, लमनाइयों के विरुद्ध युद्ध करने गया था ।
43 और ऐसा हुआ कि हम युद्ध करने के लिए प्रभु के बल पर चढ़ गए ।
44 अब, लमनाइयों को प्रभु, न ही प्रभु की शक्ति के बारे में कुछ भी पता नहीं था; इसलिए वे अपनी ताकत पर निर्भर थे।
45 तौभी वे पुरूषोंके बल पर बलवन्त प्रजा थे; वे जंगली, और क्रूर, और खून के प्यासे लोग थे, जो अपने पूर्वजों की परंपरा में विश्वास करते थे, जो यह है:
46 यह विश्वास करते हुए कि वे अपने पुरखाओं के अधर्म के कामों के कारण यरूशलेम के देश से निकाले गए थे, और जंगल में उनके भाइयों ने उन पर अत्याचार किया था; और समुद्र पार करते समय उन पर भी अत्याचार किया गया।
47 और फिर, जब वे अपके पहिले निज भाग के देश में समुद्र पार कर चुके थे, तब उन पर अन्धेर किया गया;
48 और यह सब, क्योंकि नफी प्रभु की आज्ञाओं का पालन करने में अधिक विश्वासयोग्य था; इस कारण उस पर यहोवा का अनुग्रह हुआ, क्योंकि यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उनकी सुन ली, और वह जंगल में उनकी अगुवाई करने लगा।
49 और उसके भाई उस पर क्रोधित हुए, क्योंकि वे यहोवा के कामोंको नहीं समझते थे;
50 वे उस से जल के जल पर भी क्रोधित हुए, क्योंकि उन्होंने यहोवा के विरुद्ध अपने मन कठोर कर लिए थे।
51 और फिर, जब वे प्रतिज्ञा किए हुए देश में पहुंचे, तो उस पर क्रोधित हुए, क्योंकि उन्होंने कहा था कि उसने लोगों के शासन को उनके हाथ से छीन लिया है; और उन्होंने उसे मार डालना चाहा।
52 और फिर वे उस पर क्रोधित हुए, क्योंकि वह यहोवा की आज्ञा के अनुसार जंगल में चला गया, और जो अभिलेख पीतल की पट्टियों पर खुदे हुए थे, उन्हें ले लिया; क्योंकि वे कहते थे, कि उस ने उनको लूटा है।
53 और इस प्रकार उन्होंने अपके बालकोंको सिखाया है, कि वे उन से बैर रखें, और उनका घात करें, और उन्हें लूट लें, और लूट लें, और उनका नाश करने के लिथे सब कुछ करें; इसलिए, उन्हें नफी के बच्चों के प्रति एक शाश्वत घृणा है ।
54 इसी कारण से राजा लमान ने अपनी चतुराई और झूठ की चालबाजी, और अपनी निष्पक्ष प्रतिज्ञाओं के द्वारा मुझे धोखा दिया है, कि मैं इसे, अपने लोगों को, इस प्रदेश में लाया हूं, ताकि वे उन्हें नष्ट कर सकें; हां, और हमने इस देश में कई वर्षों तक यह झेला है ।
55 और अब मैं, जेनिफ, लमनाइयों के संबंध में अपने लोगों को ये सब बातें बता देने के बाद, मैंने उन्हें प्रभु पर भरोसा रखते हुए, अपनी शक्ति से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया; इसलिए, हमने उनके साथ आमने-सामने संघर्ष किया।
56 और ऐसा हुआ कि हमने उन्हें अपने प्रदेश से फिर से निकाल दिया; और हम ने उनको बड़े घात से घात किया, यहां तक कि इतने कि हम ने उनकी गिनती तक न की।
57 और ऐसा हुआ कि हम फिर से अपने प्रदेश में लौट आए, और मेरे लोग फिर से अपनी भेड़-बकरियों की, और अपनी भूमि पर खेती करने लगे ।
58 और अब, मैं वृद्ध होकर, अपने एक पुत्र को राज्य प्रदान किया; इसलिए, मैं और नहीं कहता। और यहोवा मेरी प्रजा को आशीष दे। तथास्तु।
मुसायाह, अध्याय 7
1 और अब ऐसा हुआ कि जेनिफ ने उसके पुत्रों में से एक, नूह को राज्य सौंप दिया; इस कारण नूह उसके स्थान पर राज्य करने लगा; और वह अपके पिता की सी चाल न चला।
2 क्योंकि देखो, उसने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया, परन्तु वह अपने मन की अभिलाषाओं के अनुसार चला ।
3 और उसकी बहुत सी पत्नियां और रखेलियां थीं।
4 और अपनी प्रजा से पाप कराया, और वही किया जो यहोवा की दृष्टि में घिनौना था।
5 हां, और उन्होंने व्यभिचार किया, और हर प्रकार की दुष्टता की ।
6 और उस ने उनकी सारी सम्पत्ति का पांचवां भाग कर लगाया; उनके सोने और चान्दी का पांचवां भाग; और उनके जिफ्फ का पांचवां भाग, और उनके तांबे, और उनके पीतल और उनके लोहे का; और उनके मोटे पशुओं का पांचवां भाग; और उनके सब अनाज का पांचवां भाग।
7 और यह सब उस ने अपक्की पत्नियों, और रखेलियों, और अपके याजकों, और अपक्की पत्नियों, और रखेलियोंके पालने के लिथे लिया; इस प्रकार उसने राज्य के मामलों को बदल दिया था।
8 क्योंकि उस ने उन सब याजकोंको जो उसके पिता के द्वारा पवित्र किए गए थे, डाल दिया, और उनके स्थान पर नए लोगोंको पवित्रा किया, जो उनके मन के घमण्ड के कारण ऊंचे हुए थे।
9 हां, और इस प्रकार उनके आलस्य में, और उनकी मूर्तिपूजा में, और उनके व्यभिचार में, उन करों से जो राजा नूह ने अपनी प्रजा पर लगाए थे, उनकी सहायता की थी; इस प्रकार लोगों ने अधर्म का समर्थन करने के लिए अत्यधिक परिश्रम किया।
10 हां, और वे भी मूर्तिपूजक बन गए, क्योंकि वे राजा और याजकों के व्यर्थ और चापलूसी भरे वचनों से भरमाए गए थे: क्योंकि उन्होंने उनसे चापलूसी की बातें की थीं ।
11 और ऐसा हुआ कि राजा नूह ने कई भव्य और विशाल भवनों का निर्माण किया; और उस ने उनको काठ, और सब प्रकार की बहुमूल्य वस्तुओं, सोने, चान्दी, लोहे, पीतल, जिफ्फ, और ताँबे की सुंदर कृतियों से अलंकृत किया;
12 और उस ने उसके लिये एक बड़ा सा महल और उसके बीच में एक सिंहासन भी बनवाया, जो सब उत्तम लकड़ी का था, और सोने, चान्दी और बहुमूल्य वस्तुओं से अलंकृत था।
13 और उसने यह भी नियुक्त किया कि उसके कामगार मन्दिर की शहरपनाह के भीतर सब प्रकार के अच्छे काम करें, जो अच्छी लकड़ी, और तांबे, और पीतल के हों;
14 और जो आसन महायाजकोंके लिथे और सब आसनोंके ऊपर ठहराए गए थे, उन को उस ने चोखे सोने से अलंकार किया;
15 और उस ने उनके साम्हने एक चबूतरा बनवाया, कि वे अपके शरीर और हाथ उन पर टिकाए रखें, और वे उसकी प्रजा से फूठ और फालतू बातें करें।
16 और ऐसा हुआ कि उसने मंदिर के पास एक गुम्मट बनाया; हां, एक बहुत ऊंचा टावर, यहां तक कि इतना ऊंचा कि वह उसके शीर्ष पर खड़ा हो सके और शिलोम के प्रदेश को देख सके, और शेमलोन के प्रदेश को भी देख सके, जिस पर लमनाइयों का कब्जा था; और वह चारों ओर के सारे देश को देख सकता था।
17 और ऐसा हुआ कि उसने शीलोम प्रदेश में कई भवन बनवाए:
18 और उसने शीलोम प्रदेश के उत्तर की पहाड़ी पर एक बड़ा गुम्मट बनवाया, जो उस समय नफी के बच्चों के लिए एक आश्रय स्थल था, जब वे प्रदेश से बाहर भागे थे;
19 और इस प्रकार उसने उस धन के साथ किया जो उसने अपने लोगों के कर से प्राप्त किया था ।
20 और ऐसा हुआ कि उसने अपना मन अपनी दौलत पर लगा दिया, और उसने अपना समय अपनी पत्नियों और अपनी रखेलियों के साथ दंगों में बिताया; और उसके याजक भी वैश्याओं के संग अपना समय बिताते थे।
21 और ऐसा हुआ कि उसने प्रदेश के चारों ओर दाख की बारियां लगाईं; और उस ने दाखरस के कुण्ड बनवाए, और बहुतायत से दाखमधु बनाया; और इस कारण वह शराब पीने वाला, और उसके लोग भी बन गए।
22 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों ने कम संख्या में उसके लोगों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया, और उन्हें उनके खेतों में मार डाला, और जब वे अपने भेड़-बकरियों को चरा रहे थे ।
23 और राजा नूह ने देश के चारोंओर उन की रक्षा के लिथे पहरुओं को भेजा; लेकिन उसने पर्याप्त संख्या में नहीं भेजा, और लमनाइयों ने उन पर आक्रमण किया और उन्हें मार डाला, और उनके बहुत से भेड़-बकरियों को प्रदेश से बाहर निकाल दिया;
24 इस प्रकार लमनाइयों ने उन्हें नष्ट करना शुरू कर दिया, और उनसे घृणा करने लगे ।
25 और ऐसा हुआ कि राजा नूह ने उनके विरुद्ध अपनी सेना भेजी, और उन्हें खदेड़ दिया गया, या उन्होंने उन्हें कुछ समय के लिए खदेड़ दिया; इसलिए, वे अपनी लूट में आनन्दित होकर लौटे।
26 और अब, इस महान विजय के कारण, वे अपने हृदय के घमण्ड से भर उठे; उन्होंने अपनी ताकत पर यह कहते हुए घमंड किया कि उनके पचास हजार लमनाइयों के खिलाफ खड़े हो सकते हैं;
27 और इस प्रकार उन्होंने घमण्ड किया, और उनके लोहू, और अपने भाइयोंके लोहू बहाने से प्रसन्न हुए, और यह उनके राजा और याजकों की दुष्टता के कारण हुआ ।
28 और ऐसा हुआ कि उनमें एक व्यक्ति था, जिसका नाम अबिनादी था; और वह उनके बीच निकल गया, और यह कह कर नबूवत करने लगा,
29 देखो, यहोवा यों कहता है, और उस ने मुझे यह आज्ञा दी है, कि
30 आगे जाकर इन लोगों से कहो, यहोवा यों कहता है:
31 इन लोगों पर धिक्कार है, क्योंकि मैं ने उनके घिनौने काम, और उनकी दुष्टता, और उनके व्यभिचार को देखा है; और जब तक वे मन न फिराएं, तब तक मैं अपके कोप में उन से भेंट करूंगा।
32 और जब तक वे मन न फिरा कर अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरें, सुन, मैं उनको उनके शत्रुओं के हाथ कर दूंगा;
33 हां, और वे दासत्व में लाए जाएंगे; और वे अपके शत्रुओं के हाथ से पीड़ित होंगे।
34 और ऐसा होगा कि वे जान लेंगे कि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूं, और मैं एक ईर्ष्यालु परमेश्वर हूं, जो मेरे लोगों के अधर्म के कामों को देखता है ।
35 और ऐसा होगा कि यदि ये लोग पश्चाताप न करें, और अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरें, तो वे दासत्व में लाए जाएंगे; और कोई उनका उद्धार न करेगा, केवल यहोवा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही है।
36 हां, और ऐसा होगा कि जब वे मेरी दोहाई देंगे, तब मैं उनकी पुकार सुनने में विलंब करूंगा; हां, और मैं उन्हें दु:ख दूंगा कि वे उनके शत्रुओं द्वारा मारे जाएंगे ।
37 और जब तक वे टाट पहिने और राख में पश्चाताप न करें, और अपके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दें, तब तक मैं उनकी प्रार्थना न सुनूंगा, और न मैं उन्हें उनके दु:खोंसे छुड़ाऊंगा;
38 और यहोवा यों कहता है, और उस ने मुझे इस प्रकार आज्ञा दी है।
39 अब ऐसा हुआ कि जब अबिनादी ने उनसे ये बातें कहीं, तो वे उस पर क्रोधित हो गए, और उसके प्राण लेने की कोशिश की; परन्तु यहोवा ने उसे उनके हाथ से छुड़ाया।
40 अब जब राजा नूह ने उन बातों को सुना जो अबिनादी ने लोगों से कही थीं, तो वह भी क्रोधित हुआ;
41 उस ने कहा, अबिनादी कौन है, कि मैं और मेरी प्रजा उसके विषय में दोष लगाए? या यहोवा कौन है, जो मेरी प्रजा पर ऐसे बड़े क्लेश करेगा?
42 मैं तुझे आज्ञा देता हूं, कि अबिनादी को यहां ले आ, कि मैं उसको घात करूं; क्योंकि उस ने ये बातें इसलिये कहीं हैं, कि मेरी प्रजा को आपस में कोप भड़काएं, और मेरी प्रजा के बीच वाद-विवाद करें; इसलिए मैं उसे मार डालूंगा।
43 अब लोगों की आंखें अंधी हो गईं; इसलिए, उन्होंने अबिनादी के शब्दों के खिलाफ अपने दिलों को कठोर कर लिया, और उस समय से उन्होंने उसे लेने की कोशिश की ।
44 और राजा नूह ने यहोवा के वचन के विरुद्ध अपना मन कठोर किया; और उसने अपके बुरे कामोंसे पश्चाताप न किया।
45 और ऐसा हुआ कि दो वर्ष के अंतराल के बाद, अबिनादी भेष बदलकर उनके बीच आ गया, कि वे उसे नहीं जानते थे, और उनके बीच यह कहते हुए फिर से भविष्यवाणी करने लगे,
46 यहोवा ने मुझे यह आज्ञा दी है, कि अबिनादी, जाकर मेरी इन प्रजा से भविष्यद्वाणी कर, क्योंकि उन्होंने मेरे वचनोंके विरुद्ध अपने मन को कठोर किया है; उन्होंने अपने बुरे कामों से पश्चाताप नहीं किया;
47 इसलिथे मैं अपके कोप में उन से भेंट करूंगा, वरन अपके प्रचण्ड कोप में उन के अधर्म और घिनौने कामोंमें उन से भेंट करूंगा; हाँ, इस पीढ़ी पर हाय!
48 और यहोवा ने मुझ से कहा, अपना हाथ बढ़ाकर यह भविष्यद्वाणी करो, कि यहोवा यों कहता है: ऐसा होगा कि यह पीढ़ी अपने अधर्म के कामों के कारण दासत्व में लाई जाएगी, और गाल पर मार दी जाएगी ;
49 हां, और वह मनुष्योंके द्वारा भगाया जाएगा, और घात किया जाएगा; और आकाश के गिद्ध, और कुत्ते, वरन वनपशु उनका मांस खा जाएंगे।
50 और ऐसा होगा कि राजा नूह का जीवन गर्म भट्टी में रखे वस्त्र के समान मूल्यवान होगा; क्योंकि वह जान लेगा कि मैं यहोवा हूं।
51 और ऐसा होगा कि मैं अपनी इन प्रजा को घोर कष्टों से मारूंगा; वरन अकाल और महामारी के साथ; और मैं ऐसा करूंगा कि वे दिन भर विलाप करते रहेंगे।
52 हां, और मैं उनकी पीठ पर बोझ डालने का कारण बनूंगा; और वे गूंगे गदहे की नाईं आगे से भगा दिए जाएंगे।
53 और ऐसा होगा कि मैं उनके बीच ओले बरसाऊंगा, और वह उन पर प्रहार करेगा; और वे भी पुरवाई से मारे जाएंगे; और कीड़े उनके देश को भी मारेंगे, और उनके अन्न को खा जाएंगे।
54 और वे बड़ी मरी से मारे जाएंगे; और यह सब मैं उनके अधर्म और घिनौने कामोंके कारण करूंगा।
55 और ऐसा होगा कि यदि वे पश्चाताप न करें, तो मैं उन्हें पृथ्वी पर से सत्यानाश कर दूंगा;
56 तौभी वे अपके लिथे अभिलेख छोड़ जाएंगे, और मैं उनको अन्य जातियोंके लिथे सुरक्षित रखूंगा, जो उस देश के अधिक्कारनेी होंगे;
57 वरन मैं यह भी करूंगा, कि मैं इस प्रजा के घिनौने कामोंको पराए देशोंके साम्हने देखूं।
58 और अबिनादी ने इन लोगों के विरुद्ध बहुत सी भविष्यद्वाणी की।
59 और ऐसा हुआ कि वे उस पर क्रोधित हो गए; और वे उसे पकड़कर राजा के साम्हने बन्धे हुए ले गए, और राजा से कहा,
60 सुन, हम तेरे साम्हने एक मनुष्य को ले आए हैं, जिस ने तेरी प्रजा के विषय में बुरा भविष्यद्वाणी करके कहा है, कि परमेश्वर उन्हें नाश करेगा;
61 और वह तेरे प्राण के विषय में भी भविष्यद्वाणी करता है, और कहता है, कि तेरा जीवन आग के भट्ठे के वस्त्र के समान होगा।
62 और फिर, वह कहता है, कि तू डंठ के समान हो जाएगा, वरन मैदान की सूखी टहनियोंके समान हो जाएगा, जो पशुओं से कुचला जाता है, और पांवोंसे लताड़ा जाता है।
63 और फिर से, वह कहता है कि तू एक थिसल के फूल के समान हो जाएगा, जो पूरी तरह से पकने पर, यदि हवा चलती है, तो वह भूमि के ऊपर से निकल जाती है; और वह दिखावा करता है कि यहोवा ने यह कहा है।
64 और वह कहता है, कि जब तक तू मन न फिराए, यह सब तुझ पर होगा; और यह तेरे अधर्म के कामों के कारण है।
65 और अब, हे राजा, तू ने क्या बड़ा पाप किया है, या तेरी प्रजा ने कौन से बड़े पाप किए हैं, कि हम परमेश्वर के दोषी ठहरें या इस मनुष्य का न्याय करें।
66 और अब, हे राजा, सुन, हम निर्दोष हैं, और हे राजा, तू ने पाप नहीं किया; इस कारण इस ने तुम्हारे विषय में झूठ कहा है, और उस ने व्यर्थ भविष्यद्वाणी की है।
67 और देखो, हम बलवन्त हैं, हम न तो बन्धन में आएंगे, और न अपके शत्रुओं द्वारा बन्धुए किए जाएंगे; हां, और तू इस प्रदेश में समृद्ध हुआ है, और तू भी समृद्ध होगा ।
68 देखो, वह पुरूष यह है, हम उसको तेरे हाथ में कर देते हैं; जैसा तुझे अच्छा लगे वैसा ही तू उसके साथ कर सकता है।
69 और ऐसा हुआ कि राजा नूह ने अबिनादी को बंदीगृह में डाल दिया;
70 और उस ने आज्ञा दी, कि याजक आपस में इकट्ठे हों, कि जो कुछ वह उसके साथ करे, वह उनके साथ एक सभा करे।
71 और ऐसा हुआ कि उन्होंने राजा से कहा, उसे यहां लाओ, कि हम उससे प्रश्न करें ।
72 और राजा ने आज्ञा दी, कि उसे उनके साम्हने लाया जाए।
73 और वे उस से पूछने लगे, कि उस को पार करें, कि उस पर दोष लगाने के लिये उनके पास साधन हों;
74 परन्तु उस ने उन्हें निडरता से उत्तर दिया, और उनके सब प्रश्नों का डटकर मुकाबला किया, हां, वे चकित हुए:
75 क्योंकि वह उनके सब प्रश्नों में उनका साम्हना करता, और उनकी सब बातोंमें उन्हें झुठलाता था।
76 और ऐसा हुआ कि उनमें से एक ने उससे कहा, उन बातों का क्या अर्थ है जो लिखी गई हैं, और जो हमारे पूर्वजों ने यह कहते हुए सिखाई हैं:
77 जो शुभ समाचार देता है उसके पांव पहाड़ों पर क्या ही मनोहर हैं; जो शांति प्रकाशित करता है; जो शुभ का समाचार देता है; जो मुक्ति को प्रकाशित करता है; जो सिय्योन से कहता है, तेरा परमेश्वर राज्य करता है;
78 तेरे पहरुए ऊँचे स्वर में बोल उठेंगे; जब यहोवा सिय्योन को फिर ले आएगा, तब वे एक संग गीत गाएंगे;
79 आनन्द में फूट पड़ो; हे यरूशलेम के खण्डहरों, एक संग गाओ, क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है; उसने यरूशलेम को छुड़ा लिया है।
80 यहोवा ने अपनी पवित्र भुजा सब जातियोंके साम्हने प्रगट की है; और पृय्वी के छोर तक के लोग हमारे परमेश्वर के उद्धार को देखेंगे।
81 और अब अबिनादी ने उन से कहा, क्या तुम याजक हो, और इन लोगोंको सिखाने, और भविष्यद्वाणी करने की आत्मा को समझने का दिखावा करते हो, और तौभी मेरे विषय में जानना चाहते हो कि इन बातोंका क्या अर्थ है?
82 मैं तुम से कहता हूं, तुम पर हाय, कि तुम यहोवा के मार्ग को बिगाड़ते हो। क्योंकि यदि तुम इन बातों को समझते हो, तो तुम ने उन्हें नहीं सिखाया; इस कारण तुम ने यहोवा की चालचलन बिगाड़ा है।
83 तुम ने अपने मन को समझ पर नहीं लगाया; इसलिए तुम बुद्धिमान नहीं हुए। इसलिए, तुम इन लोगों को क्या सिखाते हो?
84 और उन्होंने कहा, हम मूसा की व्यवस्था की शिक्षा देते हैं।
85 फिर उस ने उन से कहा, यदि तुम मूसा की व्यवस्था की शिक्षा देते हो, तो उसका पालन क्यों नहीं करते?
86 तुम अपना मन धन पर क्यों लगाते हो?
87 तुम व्यभिचार क्यों करते हो, और अपनी शक्ति को वेश्याओं के साथ खर्च करते हो, हां, और इन लोगों से पाप करवाते हो, कि प्रभु ने मुझे इन लोगों के खिलाफ भविष्यवाणी करने के लिए भेजा है, हां, यहां तक कि इन लोगों के खिलाफ एक बड़ी बुराई भी ?
88 क्या तुम नहीं जानते कि मैं सच बोलता हूं?
89 हां, तुम जानते हो कि मैं सच बोलता हूं; और तुम्हें परमेश्वर के साम्हने कांपना चाहिए।
90 और ऐसा होगा कि तुम अपने अधर्म के कामों के कारण मारे जाओगे: क्योंकि तुमने कहा है कि तुम मूसा की व्यवस्था की शिक्षा देते हो ।
91 और तुम मूसा की व्यवस्था के विषय में क्या जानते हो?
92 क्या मोक्ष मूसा की व्यवस्था से आता है? क्या कहना?
93 और उन्होंने उत्तर दिया, कि मोक्ष मूसा की व्यवस्था के द्वारा हुआ।
94 पर अब अबिनादी ने उन से कहा, मैं जानता हूं, कि यदि तुम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानोगे, तो उद्धार पाओगे;
95 हां, यदि तुम उन आज्ञाओं का पालन करो जो यहोवा ने मूसा को सीनै पर्वत पर दीं, और कहा: मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुम्हें मिस्र देश से गुलामी के घर से निकाल लाया है।
96 मेरे साम्हने तेरा कोई दूसरा परमेश्वर न होगा।
97 तू अपने लिये कोई खुदी हुई मूरत, वा ऊपर आकाश में किसी वस्तु के समान, वा नीचे पृथ्वी पर की कोई वस्तु न बनाना।
98 अब अबिनादी ने उन से कहा, क्या तुम ने यह सब किया है ? मैं तुम से कहता हूं, नहीं, तुम ने नहीं किया।
99 और क्या तुम ने इन लोगोंको यह सब काम करना सिखाया है? मैं तुम से कहता हूं, नहीं, तुम ने नहीं किया।
100 और अब जब राजा ने ये बातें सुनीं, तब अपके याजकोंसे कहा, इस संगी को दूर ले जाकर घात कर; क्योंकि हमें इससे क्या काम, क्योंकि वह पागल है।
101 तब उन्होंने खड़े होकर उस पर हाथ रखने का यत्न किया, परन्तु उस ने उनका साम्हना करके उन से कहा, मुझे मत छुओ, क्योंकि यदि तुम मुझ पर हाथ रखोगे, तो परमेश्वर तुम्हें मारेगा; यहोवा ने मुझे छुड़ाने के लिथे भेजा है;
102 और जो कुछ तुम ने बिनती की, कि मैं कहूं, वह मैं ने तुम से नहीं कहा; इसलिये परमेश्वर को यह दुख न होगा, कि मैं इस समय नाश हो जाऊंगा।
103 परन्तु जिन आज्ञाओं की आज्ञा परमेश्वर ने मुझे दी है उन्हें मुझे पूरा करना अवश्य है, और मैं ने तुम से सच सच कहा है, तुम मुझ से क्रोधित हो।
104 और फिर, क्योंकि मैं ने परमेश्वर का वचन कहा है, तुम ने मेरा न्याय किया है कि मैं पागल हूं।
105 अबीनादी के ये बातें कहने के बाद ऐसा हुआ, कि राजा नूह के लोगोंमें उस पर हाथ रखने का साहस न हुआ;
106 क्योंकि यहोवा का आत्मा उस पर था, और उसका मुख बहुत तेज चमकने लगा, जैसा मूसा ने सीनै पर्वत पर यहोवा से बातें करते समय किया था।
107 और उस ने परमेश्वर की ओर से सामर्थ और अधिकार के साथ बातें कीं; और वह अपक्की बातें कहता रहा, कि तुम देखते हो, कि मुझे घात करने का अधिकार नहीं है, इसलिथे मैं अपना सन्देश पूरा करता हूं।
108 हां, और मैं समझता हूं कि यह तुम्हारे हृदयों को काट देता है, क्योंकि मैं तुम्हारे अधर्म के कामों के विषय में तुम से सच कहता हूं: हां, और मेरे वचन तुम्हें आश्चर्य और विस्मय और क्रोध से भर देते हैं ।
109 परन्तु मैं अपना सन्देश पूरा करता हूं; और फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं किधर जाऊं, कि मेरा उद्धार हो जाए।
110 परन्तु मैं तुम से इतना ही कहता हूं, कि जो कुछ तुम मेरे साथ करते हो, उसके बाद जो कुछ होने वाला है, वह एक प्रकार और छाया के समान होगा।
111 और अब मैं परमेश्वर की शेष आज्ञाओं को तुम्हें पढ़ता हूं, क्योंकि मैं समझता हूं कि वे तुम्हारे हृदयों में नहीं लिखी गई हैं;
112 मैं ने देखा है, कि तुम ने अपने जीवन में अधर्म का अध्ययन किया और सिखाया है।
113 और अब, तुम्हें याद है कि मैंने तुम से कहा था, तुम अपने लिए कोई खुदी हुई मूरत न बनाना, और न किसी वस्तु के समान जो ऊपर स्वर्ग में हो, या जो नीचे पृथ्वी पर हो, या जो पृथ्वी के नीचे के जल में हो। .
114 और फिर से उनके आगे न झुकना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा ईर्ष्या करनेवाला परमेश्वर हूं, जो पितरोंके अधर्म के कामोंको बालकोंपर, अर्थात् मुझ से बैर रखनेवालोंकी तीसरी और चौथी पीढ़ी तक देखता रहता है; और जो मुझ से प्रेम रखते हैं, और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारों पर दया करते हैं।
115 तू अपके परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ लेता है, वह उसे निर्दोष न ठहराएगा।
116 सब्त के दिन को स्मरण रखना, कि वह पवित्र रहे।
117 छ: दिन तक परिश्रम करना, और अपना सब काम करना; परन्तु सातवें दिन, अपने परमेश्वर यहोवा के विश्रामदिन, तू न तो कोई काम करना, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरा मवेशी, न तेरा परदेशी जो तेरे भीतर है द्वार:
118 क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी, और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब बनाया; इसलिथे यहोवा ने सब्त के दिन को आशीष देकर पवित्र किया।
119 अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरी आयु लंबी हो।
120 तू हत्या न करना।
121 तू व्यभिचार न करना।
122 तू चोरी न करना।
123तू अपके पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही न देना।
124 अपने पड़ोसी के घर का लालच न करना, न अपने पड़ोसी की पत्नी का, न उसके दास का, न उसकी दासी का, न उसके बैल का, और न उसकी गदही का, और न अपने पड़ोसी की किसी वस्तु का लालच करना।
मुसायाह, अध्याय 8
1 और ऐसा हुआ कि जब अबिनादी ने इन बातों को समाप्त कर दिया, तब उसने उनसे कहा, क्या तुमने इन लोगों को सिखाया है कि उन्हें इन सब बातों का पालन करना चाहिए ? इन आज्ञाओं को मानने के लिए?
2 मैं तुम से कहता हूं, नहीं; क्योंकि यदि तू होता, तो यहोवा मुझे बाहर न आने देता, और इन लोगोंके विषय में बुरा भविष्यद्वाणी न करता।।
3 और अब तुम ने कहा है कि मूसा की व्यवस्था के द्वारा उद्धार प्राप्त होता है ।
4 मैं तुम से कहता हूं, कि यह समीचीन है, कि तुम अब तक मूसा की व्यवस्था का पालन करो; परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि वह समय आ जाएगा, जब मूसा की व्यवस्था को मानना फिर समीचीन न होगा।
5 और मैं तुम से यह भी कहता हूं, कि केवल व्यवस्था से ही उद्धार नहीं मिलता; और क्या यह उस प्रायश्चित के लिए नहीं था जिसे परमेश्वर स्वयं अपने लोगों के पापों और अधर्म के लिए करेगा, कि मूसा की व्यवस्था के बावजूद वे अपरिहार्य रूप से नष्ट हो जाएंगे।
6 और अब मैं तुम से कहता हूं, कि यह समीचीन था कि इस्राएलियों को एक व्यवस्था दी गई थी, हां, यहां तक कि एक बहुत सख्त व्यवस्था भी थी: क्योंकि वे हठीले लोग थे: अधर्म करने में तेज, और अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण करो;
7 इसलिए उन्हें एक व्यवस्था दी गई थी, हां, प्रदर्शनों और विधियों की एक व्यवस्था, एक ऐसी व्यवस्था जिसका उन्हें दिन-प्रतिदिन कड़ाई से पालन करना था, ताकि उन्हें परमेश्वर के स्मरण में रखा जा सके, और उनके प्रति उनके कर्तव्य का पालन किया जा सके ।
8 परन्तु देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि ये सब बातें आनेवाली थीं।
9 और अब, क्या उन्होंने व्यवस्था को समझा ?
10 मैं तुम से कहता हूं, नहीं, वे सब व्यवस्या को नहीं समझते थे; और यह उनके मन की कठोरता के कारण हुआ; क्योंकि वे न समझते थे, कि परमेश्वर के छुटकारे के द्वारा ही किसी का उद्धार हो सकता है।
11 क्योंकि देखो, क्या मूसा ने उन्हें मसीहा के आने के बारे में भविष्यवाणी नहीं की थी, और यह कि परमेश्वर अपने लोगों को, हां, यहां तक कि उन सभी भविष्यवक्ताओं को भी छुड़ाएगा, जिन्होंने संसार के प्रारंभ से भविष्यवाणी की है ?
12 क्या उन्होंने इन बातों के विषय में अधिक या कम नहीं कहा?
13 क्या उन्होंने नहीं कहा, कि परमेश्वर आप ही मनुष्योंके बीच उतरकर मनुष्य का रूप धारण करके पृथ्वी पर पराक्रमी होकर निकलेगा?
14 हां, और क्या उन्होंने यह भी नहीं कहा है कि वह मरे हुओं का पुनरुत्थान करेगा, और कि वह स्वयं भी पीड़ित और पीड़ित हो ?
15 हां, यशायाह भी नहीं कहता,
16 किस ने हमारे समाचार की प्रतीति की है, और यहोवा की भुजा किस पर प्रगट हुई है?
17 क्योंकि वह उसके साम्हने कोमल पौधे की नाईं और सूखी भूमि की जड़ की नाईं बड़ा होगा; उसका न तो रूप है, और न शोभा; और जब हम उसे देखेंगे, तब कोई शोभा नहीं, कि हम उसकी इच्छा करें।
18 वह तुच्छ जाना जाता है, और मनुष्योंसे तुच्छ जाना जाता है; एक दु:ख का मनुष्य, और दु:ख से परिचित: और हम उस से अपना चेहरा छिपाते थे; वह तुच्छ जाना गया, और हम ने उसका आदर नहीं किया।
19 निश्चय उसी ने हमारे दु:ख सहे हैं, और हमारे दुखोंको सह लिया है, तौभी हम ने उसे परमेश्वर का मारा हुआ, और पीड़ित माना है।
20 परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामोंके कारण कुचला गया; हमारी शान्ति की ताड़ना उस पर थी; और उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाते हैं।
21 हम सब भेड़ों की नाईं भटक गए हैं; हम ने सब को अपके अपके ही मार्ग पर कर दिया है; और यहोवा ने हम सब के अधर्म के काम उस पर डाल दिए हैं।
22 उस पर अन्धेर किया गया, और वह दु:ख हुआ, तौभी अपना मुंह न खोला; वह भेड़ के बच्चे की नाईं वध करने के लिथे लाया जाता है, और जैसे भेड़ ऊन कतरने वालों के साम्हने गूंगी रहती है, वैसे ही उस ने अपना मुंह न खोला।
23 वह बन्दीगृह से और न्याय से उठा लिया गया; और कौन अपनी पीढ़ी की घोषणा करेगा? क्योंकि वह जीवतोंके देश में से नाश किया गया; क्योंकि वह मेरी प्रजा के अपराधोंके कारण मारा गया।
24 और उस ने अपक्की कब्र को दुष्टोंके संग, और धनवानोंके लिथे अपक्की अपक्की अपक्की कब्र बनाई; क्योंकि उस ने न तो कोई बुराई की थी, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली थी।
25 तौभी यहोवा को यह अच्छा लगा, कि वह उसे कुचल डाले; उस ने उसे दु:ख दिया है; जब तू उसके प्राण को पापबलि करे, तब वह अपके वंश को देखे, और उसकी आयु लम्बी होगी, और उसके हाथ से यहोवा की प्रसन्नता अच्छी होगी।
26 वह अपके मन की विपत्ति देखकर तृप्त होगा; मेरा धर्मी दास अपके ज्ञान से बहुतोंको धर्मी ठहराएगा; क्योंकि वह उनके अधर्म का भार उठाएगा।
27 इसलिथे मैं उसको बड़े से भाग बांट दूंगा, और वह लूट को बलवानोंमें बांट देगा; क्योंकि उस ने अपके प्राण को मृत्यु के लिथे उण्डेल दिया है; और वह अपराधियोंमें गिना गया, और बहुतोंके पापों को सह लिया, और अपराधियोंके लिथे बिनती की।
28 और अब अबिनादी ने उन से कहा, मैं चाहता हूं कि तुम समझो कि परमेश्वर स्वयं मानव संतान के बीच उतरेगा, और अपनी प्रजा को छुड़ाएगा;
29 और क्योंकि वह शरीर में वास करता है, वह परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा:
30 और पिता और पुत्र होने के कारण शरीर को पिता की इच्छा के अधीन कर दिया; पिता क्योंकि वह परमेश्वर की शक्ति से गर्भवती हुई थी: और पुत्र, मांस के कारण; इस प्रकार पिता और पुत्र बनना:
31 और वे एक ही परमेश्वर हैं, हां, स्वर्ग और पृथ्वी के शाश्वत पिता;
32 और इस प्रकार शरीर आत्मा के अधीन हो जाता है, या पुत्र पिता के अधीन हो जाता है, एक ईश्वर होने के नाते, परीक्षा में पड़ता है, और परीक्षा के सामने नहीं झुकता है, लेकिन अपने आप को ठट्ठों में उड़ाया जाता है, और कोड़ा जाता है, और बाहर निकाल दिया जाता है, और उसके द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है लोग।
33 और इस सब के बाद, और मनुष्योंके बीच बहुत से बड़े आश्चर्यकर्म करने के बाद, वह चलाया जाएगा, हां, जैसा यशायाह ने कहा था, वैसे ही जैसे भेड़ ऊन कतरनेवाले के साम्हने गूंगी रहती है, वैसे ही उस ने अपना मुंह न खोला;
34 हां, वैसे ही वह भी ले जाया जाएगा, क्रूस पर चढ़ाया जाएगा और मार डाला जाएगा, शरीर मृत्यु के अधीन हो जाएगा, पुत्र की इच्छा पिता की इच्छा में निगल ली जाएगी;
35 और इस प्रकार परमेश्वर मृत्यु के बंधन को तोड़ता है; मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के बाद; पुत्र को पुरुषों के बच्चों के लिए हिमायत करने की शक्ति देना:
36 स्वर्ग पर चढ़कर; दया की आंतें होना; मनुष्यों के प्रति करुणा से भर जाना;
37 उनके बीच में खड़े होकर न्याय; मृत्यु के बंधनों को तोड़कर, उनके अधर्म और उनके अपराधों को अपने ऊपर ले लिया; उन्हें छुड़ाया, और न्याय की मांगों को पूरा किया।
38 और अब मैं तुम से कहता हूं, कि उसके वंश का वर्णन कौन करेगा?
39 देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि जब उसका प्राण पापबलि किया जाएगा, तब वह अपने वंश को देखेगा।
40 और अब तुम क्या कहते हो? और उसका वंश कौन होगा?
41 देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि जिस किसी ने भविष्यद्वक्ताओं की बातें सुनी हैं, हां, वे सब पवित्र भविष्यद्वक्ता जिन्होंने प्रभु के आने के विषय में भविष्यद्वाणी की है:
42 मैं तुम से कहता हूं, कि जितनों ने उनकी बातें मानी हैं, और विश्वास किया है कि यहोवा अपनी प्रजा को छुड़ाएगा, और उस दिन की बाट जोहते हैं, कि उनके पाप क्षमा हो जाएं;
43 मैं तुम से कहता हूं, कि उसके वंश ये हैं, वा परमेश्वर के राज्य के वारिस हैं:
44 क्योंकि ये वे हैं जिनके पाप उस ने उठाए हैं; ये वे हैं, जिनके लिए वह मरा है, कि उन्हें उनके अपराधों से छुड़ाए।
45 और अब, क्या वे उसके वंश नहीं हैं?
46 हां, और न भविष्यद्वक्ता हैं, जितने भविष्यद्वक्ता करने को अपना मुंह खोलते हैं, और अपराध में नहीं गिरे हैं; मेरा मतलब सभी पवित्र भविष्यद्वक्ताओं से है जब से दुनिया शुरू हुई है?
47 मैं तुम से कहता हूं, कि वे उसके वंश हैं; और ये वे हैं जिन्होंने शांति प्रकाशित की है, जो शुभ समाचार लाए हैं, जिन्होंने उद्धार प्रकाशित किया है; और सिय्योन से कहा, तेरा परमेश्वर राज्य करता है!
48 और हे पहाड़ों पर उनके पांव क्या ही सुहावने थे!
49 और फिर, पहाड़ों पर उनके पांव क्या ही सुहावने हैं, जो अब तक शान्ति का प्रकाशन करते हैं!
50 और फिर, पहाड़ों पर उनके पांव क्या ही मनोहर हैं, जो आगे से शांति का प्रचार करेंगे, हां, अब से लेकर अब तक और हमेशा के लिए !
51 और देखो, मैं तुम से कहता हूं, यह सब कुछ नहीं है; क्योंकि जो शुभ समाचार सुनाता है उसके पांव पहाड़ों पर क्या ही सुहावने होते हैं, वह मेल का संस्थापक है;
52 वरन यहोवा, जिस ने अपक्की प्रजा को छुड़ाया है; हां, जिसने अपने लोगों को उद्धार दिया है:
53 क्योंकि जो छुटकारे उस ने अपक्की प्रजा के लिथे किया या नहीं, जो जगत की उत्पत्ति के समय से तैयार किया गया है; मैं तुम से कहता हूं, यदि ऐसा नहीं होता, तो सारी मानव जाति नाश हो जाती।
54 परन्तु देखो, मृत्यु के बंधन टूट जाएंगे, और पुत्र राज्य करता है, और मरे हुओं पर अधिकार रखता है; इसलिए, वह मरे हुओं के पुनरुत्थान को पारित करने के लिए लाता है।
55 और एक पुनरूत्थान आता है, यहां तक कि पहिला पुनरूत्थान भी; हां, यहां तक कि जो थे, और जो हैं, और जो होंगे, उनका पुनरुत्थान भी, यहां तक कि मसीह के पुनरूत्थान तक: क्योंकि वह ऐसा ही कहा जाएगा ।
56 और अब, सब भविष्यद्वक्ताओं का, और उन सभों का, जो उनकी बातों पर विश्वास करते हैं, या वे सब जिन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को माना है, पहिले पुनरुत्थान में जी उठेंगे; इसलिए, वे पहले पुनरुत्थान हैं।
57 वे परमेश्वर के साथ रहने के लिथे जी उठे हैं, जिस ने उन्हें छुड़ाया है; इसलिथे वे उस मसीह के द्वारा अनन्त जीवन पाते हैं, जिस ने मृत्यु के बंधनोंको तोड़ा है।
58 और ये वे हैं जो पहिले पुनरुत्थान के भागी हैं; और ये वे हैं जो मसीह के आने से पहिले मर गए हैं, अज्ञानता में, और उद्धार की घोषणा न किए हुए थे।
59 और इस प्रकार यहोवा इन का पुन:स्थापन करता है; और उनके पास पहले पुनरुत्थान में एक हिस्सा है, या अनन्त जीवन है, प्रभु द्वारा छुड़ाया जा रहा है।
60 और नन्हे-मुन्नों को भी अनन्त जीवन मिलता है।
61 परन्तु देखो, और डरो, और परमेश्वर के साम्हने कांपते रहो; क्योंकि तुम को कांपना चाहिए; क्योंकि यहोवा ऐसे किसी को छुड़ाता नहीं, जो उसके विरूद्ध बलवा करे, और उनके पापोंके कारण मरे;
62 हां, यहां तक कि वे सब जो जगत के आरम्भ से अपने पापों में मारे गए हैं, जिन्होंने जानबूझकर परमेश्वर से बलवा किया है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को जानते हैं, और उनका पालन नहीं करते हैं; ये वे हैं जिनका पहले पुनरुत्थान में कोई भाग नहीं है।
63 इस कारण क्या तुझे कांपना नहीं चाहिए था?
64 क्योंकि ऐसे किसी को भी उद्धार नहीं मिलता; क्योंकि यहोवा ने ऐसे किसी को छुड़ाया नहीं;
65 हां, न तो यहोवा ऐसे लोगों को छुड़ा सकता है, क्योंकि वह अपना इन्कार नहीं कर सकता; क्योंकि वह न्याय से इनकार नहीं कर सकता, जबकि उसका दावा है।
66 और अब मैं तुम से कहता हूं, कि वह समय आएगा कि प्रभु के उद्धार की घोषणा हर एक जाति, जाति, भाषा, और लोग पर की जाएगी,
67 हां, हे यहोवा, तेरा पहरूआ उनकी आवाज बुलंद करेगा; जब यहोवा सिय्योन को फिर ले आए, तब वे अपके साम्हने गीत गाएंगे।
68 हे यरूशलेम के उजड़े हुए स्थानों, जयजयकार करो, एक संग गाओ; क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को शान्ति दी है, और यरूशलेम को छुड़ा लिया है।
69 यहोवा ने अपनी पवित्र भुजा सब जातियोंके साम्हने प्रगट की है, और पृय्वी के छोर तक के लोग हमारे परमेश्वर के उद्धार को देखेंगे।
70 और अब ऐसा हुआ कि अबिनादी के इन शब्दों के कहने के बाद, उसने अपना हाथ बढ़ाया और कहा, वह समय आएगा जब सभी लोग प्रभु के उद्धार को देखेंगे;
71 जब हर एक जाति, क्या कुल, क्या भाषा, और लोग एक दूसरे से आंख मिला कर देखेंगे, और परमेश्वर के साम्हने अंगीकार करेंगे, कि उसके निर्णय धर्मी हैं।
72 तब दुष्ट निकाले जाएंगे, और वे विलाप करेंगे, और रोएंगे, और विलाप करेंगे, और दांत पीसेंगे;
73 और इसका कारण यह है कि उन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी; इस कारण यहोवा उन्हें छुड़ाता नहीं, क्योंकि वे शारीरिक और शैतानी हैं, और शैतान का उन पर अधिकार है;
74 हां, उस पुराने सांप ने भी जिसने हमारे पहले माता-पिता को बहकाया था, जो उनके पतन का कारण था;
75 जो सारी मानवजाति के कामुक, कामुक, शैतानी होने, भलाई से बुराई जानने, खुद को शैतान के अधीन करने का कारण था।
76 इस प्रकार सारी मानवजाति नष्ट हो गई; और देखो, वे अंतहीन रूप से खो गए होते, यदि ऐसा नहीं होता कि परमेश्वर ने अपने लोगों को उनकी खोई हुई और पतित अवस्था से छुटकारा दिलाया होता ।
77 परन्तु स्मरण रहे, कि जो अपने शारीरिक स्वभाव में बना रहता है, और पाप और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करता रहता है, वह पतित अवस्था में रहता है, और शैतान उस पर सारी शक्ति रखता है।
78 इस कारण वह ऐसा है मानो कोई छुटकारा नहीं हुआ; भगवान के दुश्मन होने के नाते; और शैतान भी परमेश्वर का शत्रु है।
79 और अब यदि मसीह जगत में आने वाली बातों की चर्चा करके न आया होता, मानो वे आ ही चुकी हों, तो कोई छुटकारा न होता।
80 और यदि मसीह मरे हुओं में से जी नहीं उठा होता, या मृत्यु के बंधनों को तोड़ देता, कि कब्र पर विजय न होती, और मृत्यु का डंक न होता, तो पुनरुत्थान न होता।
81 परन्तु जी उठना है, इस कारण कब्र की जय नहीं, और मृत्यु का डंक मसीह में निगल लिया जाता है।
82 वही जगत की ज्योति और जीवन है; हाँ, एक ऐसा प्रकाश जो अनंत है, जिसे कभी काला नहीं किया जा सकता; हां, और एक ऐसा जीवन भी जो अनंत है, कि फिर मृत्यु नहीं हो सकती ।
83 यह नश्वर भी अमरता को पहिन लेगा, और यह भ्रष्टता अविनाशी हो जाएगी, और परमेश्वर के दंड के सामने खड़ा किया जाएगा, कि उनके कामों के अनुसार उसका न्याय किया जाएगा, चाहे वे अच्छे हों या बुरे।
84 यदि वे अच्छे हों, तो अनंत जीवन और सुख के पुनरुत्थान के लिए, और यदि वे बुरे हैं, तो अंतहीन दण्ड के पुनरुत्थान के लिए;
85 उस शैतान के वश में किया जाएगा, जिस ने उन्हें वश में कर लिया है, जो कि अभिशाप है;
86 अपनी शारीरिक इच्छाओं और अभिलाषाओं के अनुसार चले गए; जब तक दया की बाहें उनकी ओर फैली हुई थीं, तब तक प्रभु को कभी नहीं पुकारा;
87 क्योंकि करूणा की बाहें उन की ओर बढ़ाई गई, और उन्होंने न चाहा; उन्हें उनके अधर्म के कामों से सावधान किया गया, तौभी वे उन से न हटे;
88 और उन्हें मन फिराने की आज्ञा दी गई, तौभी उन्होंने मन फिरा नहीं।
89 और अब क्या तुम्हें अपने पापों से कांपना और पश्चाताप नहीं करना चाहिए था, और केवल मसीह में और उसके द्वारा ही स्मरण रखना चाहिए कि तुम्हारा उद्धार हो सकता है ?
90 इसलिथे यदि तुम मूसा की व्यवस्था की शिक्षा दो, तो यह भी सिखा, कि यह आनेवाली बातोंकी छाया है;
91 उन्हें यह शिक्षा दो कि छुटकारा मसीह प्रभु के द्वारा प्राप्त होता है, जो परम पिता परमेश्वर है। तथास्तु।
मुसायाह, अध्याय 9
1 और अब ऐसा हुआ कि जब अबिनादी ने इन बातों को पूरा किया, तब राजा ने आज्ञा दी कि याजक उसे पकड़कर मार डालें ।
2 परन्तु उनमें से एक था, जिसका नाम अलमा था, वह भी नफी का वंशज था ।
3 और वह एक जवान था, और अबिनादी की कही हुई बातोंकी प्रतीति करता था, क्योंकि वह उस अधर्म के विषय में जानता था जो अबिनादी ने उनके विरुद्ध गवाही दी थी:
4 इसलिथे वह राजा से बिनती करने लगा, कि वह अबिनादी पर क्रोधित न हो, वरन कुशल से चला जाए।
5 परन्तु राजा और अधिक क्रोधित हुआ, और उसने अलमा को उनके बीच से निकाल दिया, और अपने सेवकों को उसके पीछे भेज दिया, ताकि वे उसे मार डालें ।
6 परन्तु वह उनके साम्हने से भागा, और छिप गया, कि उन्होंने उसे न पाया।
7 और वह बहुत दिनों तक छिपे रहने के कारण, अबिनादी द्वारा कही गई सारी बातें लिख गया ।
8 और ऐसा हुआ कि राजा ने अपने रक्षकों से अबिनादी को घेरने और उसे पकड़ने के लिए कहा; और उन्होंने उसे बान्धकर बन्दीगृह में डाल दिया।
9 और तीन दिन के बाद अपके याजकोंसे सम्मति करके उस ने यह ठहराया, कि उसे फिर अपके साम्हने लाया जाए।
10 उस ने उस से कहा, अबिनादी, हम ने तुझ पर दोष लगाया है, और तू मृत्यु के योग्य है।
11 क्योंकि तू ने कहा है, कि परमेश्वर आप ही मनुष्योंके बीच उतरेगा;
12 और अब इस कारण से तू मार डाला जाएगा, जब तक कि तू उन सब बातोंको स्मरण न करेगा जो तू ने मेरे और मेरी प्रजा के विषय में कही हैं।
13 अब अबिनादी ने उस से कहा: मैं तुम से कहता हूं, कि जो बातें मैं ने तुम से इन लोगोंके विषय में कही हैं उन्हें मैं स्मरण न करूंगा, क्योंकि वे सत्य हैं;
14 और इसलिये कि तुम उनके निश्चय को जान सको, कि मैं ने तुम पर दुख उठाया है, कि मैं तुम्हारे हाथ में पड़ गया हूं।
15 वरन मृत्यु तक मैं दु:ख उठाऊंगा, और अपक्की बातें स्मरण न करूंगा, और वे तेरे विरुद्ध साक्षी ठहरेंगी।
16 और यदि तुम मुझे मार डालो, तो निर्दोष का लोहू बहाओगे, और यह भी अन्तिम दिन में तुम्हारे विरुद्ध साक्षी ठहरेगा।
17 और अब राजा नूह उसे छोड़ने ही पर था, क्योंकि वह उसके वचन से डरता था; क्योंकि उसे डर था कि परमेश्वर के न्याय उस पर आ पड़ेंगे।
18 परन्तु याजकोंने उसके विरुद्ध ऊंचे शब्द से कहा, और उस पर दोष लगाकर कहने लगे, कि उस ने राजा की निन्दा की है।
19 इसलिथे राजा उस पर भड़क उठा, और उस ने उसको ऐसा पकड़वा दिया, कि वह घात किया जाए।
20 और ऐसा हुआ कि उन्होंने उसे पकड़ लिया, और उसे बांध दिया, और उसकी त्वचा को डंडों से मार डाला, हां, यहां तक कि मृत्यु तक ।
21 और अब जब आग की लपटें उसे झुलसने लगीं, तो उसने उन से पुकारकर कहा: देखो, जैसा तुम ने मेरे साथ किया है, वैसा ही तुम्हारे वंश के कारण बहुतों को वह पीड़ा होगी जो मैं उठाऊंगा, यहाँ तक कि मृत्यु की पीड़ा भी, आग से; और यह इसलिए कि वे अपने परमेश्वर यहोवा के उद्धार में विश्वास करते हैं।
22 और ऐसा होगा कि तुम अपने अधर्म के कामों के कारण सभी प्रकार की बीमारियों से पीड़ित होओगे ।
23 हां, और तुम एक एक हाथ से मारे जाओगे, और वैसे ही भगाए और इधर-उधर तितर-बितर हो जाओगे, जैसे जंगली भेड़-बकरियां जंगली और क्रूर जानवरों द्वारा भगाई जाती हैं ।
24 और उस दिन तुम अहेरे किए जाओगे, और अपके शत्रुओं के हाथ से पकड़ लिए जाओगे, और तब तुम मेरी नाईं आग के द्वारा मृत्यु की पीड़ा भोगोगे।
25 इस प्रकार परमेश्वर उन लोगों से बदला लेता है जो उसके लोगों को नष्ट करते हैं।
26 हे परमेश्वर, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।
27 और अब यह कह कर अबिनादी आग में जलकर मर गया, और गिर पड़ा; हां, वह मार डाला गया था क्योंकि उसने परमेश्वर की आज्ञाओं को अस्वीकार नहीं किया था: उसकी मृत्यु से उसके वचनों की सच्चाई पर मुहर लगा दी थी।
28 और अब ऐसा हुआ कि अलमा, जो राजा नूह के सेवकों से भाग गया था, ने अपने पापों और अधर्मों से पश्चाताप किया, और लोगों के बीच एकांत में घूमा, और अबिनादी के वचनों को सिखाने लगा;
29 हां, उसके विषय में जो आने वाला था, और मृतकों के पुनरुत्थान, और लोगों के छुटकारे के संबंध में, जिसे शक्ति, और कष्टों, और मसीह की मृत्यु, और उसके पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के द्वारा लाया जाना था स्वर्ग में।
30 और जितनों ने उसका वचन सुना, उसने सिखाया।
31 और उस ने उन्हें अकेले में शिक्षा दी, कि ऐसा न हो कि राजा को पता चले। और बहुतों ने उसकी बातों पर विश्वास किया।
32 और ऐसा हुआ कि जितने लोग उस पर विश्वास करते थे, वे उस स्थान पर चले गए, जिसे मॉरमन कहा जाता था, राजा से इसका नाम प्राप्त करने के बाद, प्रदेश की सीमाओं में, समय-समय पर, या समय-समय पर संक्रमित होने के कारण, , जंगली जानवरों द्वारा।
33 अब मॉरमन में शुद्ध पानी का एक फव्वारा था, और अलमा ने पानी के पास छोटे-छोटे वृक्षों का एक झुरमुट होने के कारण वहां शरण ली, जहां वह राजा की खोज से दिन के समय छिप गया था ।
34 और ऐसा हुआ कि जितनों ने उस पर विश्वास किया, वे उसकी बातें सुनने के लिए वहां गए ।
35 और ऐसा हुआ कि बहुत दिनों के बाद, अलमा के शब्दों को सुनने के लिए मॉरमन के स्थान पर बहुत बड़ी संख्या में इकट्ठी हुई ।
36 हां, सब जो उसके वचन पर विश्वास करने के लिथे उसकी सुनने के लिथे इकट्ठे हुए थे ।
37 और उसने उन्हें सिखाया, और उन्हें पश्चाताप, और छुटकारे, और प्रभु पर विश्वास का प्रचार किया ।
38 और ऐसा हुआ कि उसने उनसे कहा, देखो, यहां मॉरमन के जल हैं; क्योंकि उन्हें इसी प्रकार बुलाया गया था।
39 और अब, जैसा कि तुम चाहते हो कि तुम परमेश्वर के गढ़ में आओ, और उसकी प्रजा कहलाओ, और एक दूसरे के भार उठाने को तैयार हो, कि वे हल्के हो जाएं;
40 हां, और शोक मनानेवालोंके संग शोक करने को भी तैयार रहते हैं; हां, और उन लोगों को दिलासा दो, जिन्हें सांत्वना की आवश्यकता है, और हर समय, और सब बातों में, और सब स्थानों में जहां तुम हो, यहां तक कि मृत्यु तक परमेश्वर के गवाह के रूप में खड़े रहो, ताकि तुम परमेश्वर से छुटकारा पा सको, और पहिले जी उठने वालों में गिने जाओ, कि तुम अनन्त जीवन पाओ।
41 अब मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम्हारे मन की इच्छा यह है, तो यहोवा के नाम से बपतिस्मा लेने में तुम्हारा क्या विरोध है, कि उसके साम्हने तुम ने उस से वाचा बान्धी कि तुम उसकी उपासना और पालन करोगे। उसकी आज्ञाएँ, कि वह अपना आत्मा तुम पर और भी अधिक उण्डेले?
42 और अब जब लोगों ने ये बातें सुनीं, तो ताली बजाकर जयजयकार करने लगे, और कहा, यह तो हमारे मन की अभिलाषा है।
43 और अब ऐसा हुआ कि अलमा ने हेलम को ले लिया, जो कि पहले में से एक था, और जाकर पानी में खड़ा हो गया, और कहा, हे प्रभु, अपने सेवक पर अपनी आत्मा उंडेल दो, ताकि वह यह कार्य कर सके हृदय की पवित्रता के साथ।
44 और जब उस ने ये बातें कहीं, तब यहोवा का आत्मा उस पर छा गया, और उस ने कहा, हेलाम, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर से अधिकार पाकर तुझे बपतिस्मा देता हूं, कि तू ने उस की उपासना करने के लिए एक वाचा बान्धी है जब तक कि तू मृत हैं, नश्वर शरीर के रूप में; और यहोवा का आत्मा तुम पर उण्डेला जाए; और वह मसीह के छुटकारे के द्वारा, जिसे उस ने जगत की उत्पत्ति से तैयार किया है, तुम्हें अनन्त जीवन प्रदान करे।
45 और अलमा के इन शब्दों के कहने के बाद, अलमा और हेलाम दोनों जल में दब गए; और वे उठकर आत्मा से परिपूर्ण होकर आनन्दित हुए जल में से निकल आए।
46 और फिर से, अलमा ने एक और लिया, और दूसरी बार पानी में चला गया, और उसे पहले के अनुसार बपतिस्मा दिया, केवल उसने खुद को फिर से पानी में नहीं दफनाया ।
47 और इस प्रकार से उसने हर उस व्यक्ति को बपतिस्मा दिया जो मॉरमन के स्थान पर गया था: और उनकी संख्या लगभग दो सौ चार थी;
48 हां, और उन्होंने मॉरमन के जल में बपतिस्मा लिया, और परमेश्वर के अनुग्रह से भर गए:
49 और उस समय से वे परमेश्वर की कलीसिया, या मसीह की कलीसिया कहलाते थे।
50 और ऐसा हुआ कि जिसने भी परमेश्वर की शक्ति और अधिकार से बपतिस्मा लिया, उसे उसके गिरजे में जोड़ा गया ।
51 और ऐसा हुआ कि अलमा ने, जिसे परमेश्वर का अधिकार प्राप्त था, याजकों को नियुक्त किया; उनकी गिनती के पचासों में से एक याजक को भी उस ने ठहराया, कि उन को उपदेश दें, और परमेश्वर के राज्य की बातें सिखाएं।
52 और उस ने उनको आज्ञा दी, कि जो बातें उस ने सिखाईं, और जो पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से कही गई थीं, उन्हें छोड़ कि वे कुछ न सिखाएं।
53 हां, यहां तक कि उसने उन्हें आज्ञा दी कि वे कुछ भी प्रचार न करें सिवाय इसके कि वह पश्चाताप और प्रभु पर विश्वास था, जिसने उसके लोगों को छुड़ाया था ।
54 और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि आपस में विवाद न करना, परन्तु एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मे के साथ एक आंख से दृष्टि करना; उनके दिल एकता और प्यार में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
55 और इस प्रकार उसने उन्हें प्रचार करने की आज्ञा दी। और इस प्रकार वे परमेश्वर की सन्तान बन गए।
56 और उस ने उनको आज्ञा दी, कि सब्त का दिन मानना, और उसको पवित्र रखना, और प्रति दिन अपके परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद करना।
57 और उस ने उनको यह भी आज्ञा दी, कि जिन याजकोंको उस ने ठहराया या, वे उनकी सहायता के लिथे अपके हाथोंसे परिश्रम करें;
58 और हर सप्ताह में एक दिन ऐसा ठहराया गया, कि वे लोगों को उपदेश देने, और अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करने, और जितनी बार उनकी शक्ति हो, उतनी बार इकट्ठे होने के लिथे इकट्ठे हों।
59 और याजक लोगोंकी सहायता के लिये उन पर निर्भर न रहें; परन्तु उनके परिश्रम के कारण उन्हें परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त होना था, कि वे परमेश्वर का ज्ञान रखते हुए आत्मा में दृढ़ होते जाएं, कि वे परमेश्वर की ओर से सामर्थ और अधिकार के साथ शिक्षा दें।
60 और फिर से, अलमा ने आज्ञा दी कि गिरजे के लोगों को अपने सार को, प्रत्येक को उसके पास जो कुछ भी था उसके अनुसार देना चाहिए;
61 यदि उसके पास अधिक है, तो वह और भी बहुतायत से बांटे; और जिसके पास तो कम, परन्तु बहुत कम था; और उसे जो नहीं दिया जाना चाहिए था।
62 और इस प्रकार उन्हें अपना सार, अपनी स्वतंत्र इच्छा और परमेश्वर के प्रति, और जरूरतमंद याजकों को, हां, और हर जरूरतमंद, नग्न आत्मा को देना चाहिए ।
63 और परमेश्वर की आज्ञा पाकर उस ने उन से यह कहा;
64 और वे परमेश्वर के साम्हने सीधे चलते रहे, और अपनी आवश्यकताओं और अपनी आवश्यकताओं के अनुसार एक दूसरे को लौकिक और आत्मिक रूप से प्रदान करते रहे ।
65 और अब ऐसा हुआ कि यह सब मॉरमन में किया गया; हां, मॉरमन के जल के पास, उस जंगल में जो मॉरमन के जल के पास था:
66 हां, मॉरमन का स्थान, मॉरमन का जल, मॉरमन का जंगल, उन लोगों की दृष्टि में वे कितने सुंदर हैं जो वहां अपने मुक्तिदाता के बारे में जान गए थे;
67 वरन वे क्या ही धन्य हैं, क्योंकि वे सदा उसके भजन गाते रहेंगे।
68 और ये काम देश के सिवाने पर किए गए, कि वे राजा के पहिचान में न आएं।
69 लेकिन देखो, ऐसा हुआ कि राजा ने लोगों के बीच एक हलचल का पता लगाकर अपने सेवकों को उनकी निगरानी के लिए भेजा ।
70 इस कारण जिस दिन वे प्रभु का वचन सुनने के लिये इकट्ठे हुए थे, उसी दिन राजा को उनकी खोज हो गई।
71 और अब राजा ने कहा कि अलमा लोगों को उसके विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसा रहा था; इसलिए उसने उन्हें नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी।
72 और ऐसा हुआ कि अलमा और प्रभु के लोगों को राजा की सेना के आने की जानकारी दी गई; इसलिथे वे अपके अपके डेरे और अपके घरानोंको लेकर जंगल में चले गए।
73 और वे गिनती में लगभग साढ़े चार सौ प्राणी थे।
74 और ऐसा हुआ कि राजा की सेना व्यर्थ में प्रभु के लोगों की खोज में लौट आई ।
75 और अब देखो, राजा की सेना कम हो गई, और कम हो गई, और शेष लोगों में विभाजन होने लगा ।
76 और छोटा भाग राजा के विरुद्ध धमकाने लगा, और उन में बड़ा विवाद होने लगा।
77 और अब उन में गिदोन नाम का एक पुरूष या, और वह बलवन्त और राजा का शत्रु होने के कारण अपक्की तलवार खींची, और अपके कोप में शपय खाई, कि वह राजा को घात करेगा।
78 और ऐसा हुआ कि वह राजा से लड़ा, और जब राजा ने देखा कि वह उस पर अधिकार करने वाला है, तो वह भागा और भागा और उस गुम्मट पर चढ़ गया, जो मंदिर के पास था ।
79 और गिदोन ने उसका पीछा किया, और राजा को मारने के लिए मीनार पर चढ़ने ही वाला था, और राजा ने अपनी आंखें शेमलोन प्रदेश की ओर डाली, और देखो, लमनाइयों की सेना प्रदेश की सीमाओं के भीतर थी ।
80 और अब राजा ने अपनी आत्मा की पीड़ा में चिल्लाकर कहा, गिदोन, मुझे छोड़ दो, क्योंकि लमनाइयों ने हम पर आक्रमण किया है, और वे उन्हें नष्ट कर देंगे; हाँ, वे मेरे लोगों को नष्ट कर देंगे।
81 और अब राजा को अपनी प्रजा की इतनी चिन्ता न थी, जितनी अपके प्राण की थी; फिर भी, गिदोन ने अपनी जान बख्श दी।
82 और राजा ने लोगों को आज्ञा दी कि वे लमनाइयों के सामने से भाग जाएं, और वह स्वयं उनके आगे आगे चला, और वे अपनी स्त्रियों और बच्चों के साथ निर्जन प्रदेश में भाग गए ।
83 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों ने उनका पीछा किया, और उन्हें पकड़ लिया, और उन्हें मारना शुरू कर दिया ।
84 और ऐसा हुआ कि राजा ने उन्हें आज्ञा दी कि सभी पुरुष अपनी पत्नियों और बच्चों को छोड़कर लमनाइयों के सामने से भाग जाएं ।
85 अब बहुत से ऐसे थे जो उन्हें नहीं छोड़ना चाहते थे, बल्कि उनके साथ रहना और नाश करना पसंद करते थे ।
86 और बाकी अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों को छोड़कर भाग गए।
87 और ऐसा हुआ कि जो लोग अपनी पत्नियों और अपने बच्चों के साथ रह गए थे, उन्होंने अपनी गोरी बेटियों को आगे खड़े होने और लमनाइयों से विनती करने के लिए कहा, कि वे उन्हें न मारें ।
88 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों को उन पर दया आ गई, क्योंकि वे अपनी स्त्रियों की सुंदरता से मोहित हो गए थे;
89 इसलिए लमनाइयों ने अपने प्राणों को बख्शा, और उन्हें बंदी बना लिया, और उन्हें वापस नफी के प्रदेश में ले गए, और उन्हें इस शर्त पर कि वे राजा नूह को राजा नूह के हाथों में सौंप देंगे, उनके अधिकार में आने की अनुमति दी। लमनाइयों, और अपनी संपत्ति को सौंप देते हैं।
90 उनके पास जो कुछ था उसका आधा भी; उनका एक आधा सोना, और उनकी चाँदी, और उनकी सभी कीमती चीजें; और इस प्रकार उन्हें प्रति वर्ष लमनाइयों के राजा को कर देना चाहिए ।
91 और अब जो बन्दी किए गए थे, उन में से राजा के पुत्रों में से एक था, जिसका नाम लिमही था ।
92 और अब लिमही चाहता था कि उसके पिता का नाश न हो; फिर भी, लिमही अपने पिता के अधर्म से अनभिज्ञ नहीं था, वह स्वयं एक न्यायप्रिय व्यक्ति था।
93 और ऐसा हुआ कि गिदोन ने राजा और उसके साथियों को खोजने के लिए गुप्त रूप से पुरुषों को निर्जन प्रदेश में भेजा ।
94 और ऐसा हुआ कि वे राजा और उसके याजकों को छोड़कर सभी लोगों से जंगल में मिले ।
95 अब उन्होंने अपने हृदय में शपथ ली थी कि वे नफी के प्रदेश में लौट आएंगे, और यदि उनकी पत्नियां और उनके बच्चे मारे गए, और वे भी जो उनके साथ रह गए थे, कि वे बदला लेंगे, और उनके साथ नष्ट भी होंगे ।
96 और राजा ने उनको आज्ञा दी, कि वे फिर न जाएं; और वे राजा से क्रुद्ध हुए, और उसे आग में जलाकर मार डाला।
97 और वे याजकोंको भी मार डालने के लिथे पकड़ने ही वाले या, और वे उनके साम्हने से भाग गए।
98 और ऐसा हुआ कि वे नफी के प्रदेश लौटने वाले थे, और वे गिदोन के लोगों से मिले ।
99 और गिदोन के पुरूषोंने जो कुछ उन की पत्नियोंऔर उनके लड़केबालोंके साथ हुआ था, सब उन से कह सुनाया; और यह कि लमनाइयों ने उन्हें दिया था कि वे लमनाइयों को अपनी कुल संपत्ति के आधे हिस्से में कर देकर प्रदेश पर अधिकार कर सकें ।
100 और लोगों ने गिदोन के लोगों से कहा, कि उन्होंने राजा को मार डाला है, और उसके याजक उनके पास से आगे जंगल में भाग गए हैं।
101 और ऐसा हुआ कि समारोह समाप्त करने के बाद, वे आनन्दित होकर नफी के प्रदेश लौट आए, क्योंकि उनकी पत्नियां और उनके बच्चे मारे नहीं गए थे; और उन्होंने गिदोन को बताया कि उन्होंने राजा से क्या किया है।
102 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों के राजा ने उनसे शपथ ली कि उसके लोग उन्हें नहीं मारेंगे ।
103 और लिमही ने, राजा का पुत्र होने के नाते, लोगों द्वारा उसे राज्य प्रदान किया था, उसने लमनाइयों के राजा से शपथ ली, कि उसके लोग उसे कर देंगे; उनके पास जो कुछ भी था उसका आधा भी।
104 और ऐसा हुआ कि लिमही ने राज्य की स्थापना करना, और अपने लोगों के बीच शांति स्थापित करना शुरू किया ।
105 और लमनाइयों के राजा ने प्रदेश के चारों ओर पहरा बिठा दिया, ताकि वह लिमही के लोगों को प्रदेश में रख सके, ताकि वे निर्जन प्रदेश में न जाएं;
106 और नफाइयों से प्राप्त कर में से उसने अपने रक्षकों की सहायता की ।
107 और अब राजा लिमही के पास अपने राज्य में दो वर्ष तक लगातार शांति थी, कि लमनाइयों ने उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की और न ही उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया ।
108 अब शेमलोन में एक जगह थी, जहां लमनाइयों की बेटियां गाने, और नृत्य करने, और खुद को प्रफुल्लित करने के लिए एकत्रित होती थीं ।
109 और ऐसा हुआ कि एक दिन उनमें से बहुत कम लोग गाने और नृत्य करने के लिए एकत्रित हुए ।
110 और अब राजा नूह के याजक, नफी के नगर में लौटने से लज्जित हो रहे थे, हां, और इस डर से कि लोग उन्हें मार डालेंगे, इसलिए वे अपनी पत्नियों और अपने बच्चों के पास लौटने का साहस नहीं करते ।
111 और निर्जन प्रदेश में रहकर, और लमनाइयों की पुत्रियों को पाकर, उन्हें लिटा दिया और उनकी निगरानी की; और जब उनमें से थोड़े ही थे, जो नाचने को इकट्ठे हुए, तब वे अपके गुप्त स्थानोंसे निकलकर जंगल में ले गए।
112 हां, लमनाइयों की चौबीस बेटियों को वे निर्जन प्रदेश में ले गए;
113 और ऐसा हुआ कि जब लमनाइयों ने पाया कि उनकी बेटियां गायब हैं, तो वे लिमही के लोगों पर क्रोधित हो गए; क्योंकि उन्होंने सोचा कि यह लिमही के लोग हैं।
114 इसलिथे उन्होंने अपक्की सेना भेजी; हां, राजा भी अपक्की प्रजा के आगे आगे चला; और वे लिमही के लोगों को नाश करने के लिए नफी के प्रदेश गए ।
115 और अब लिमही ने उन्हें गुम्मट से खोजा था; यहाँ तक कि युद्ध के लिए उनकी सारी तैयारियों का भी उसने पता लगाया; इसलिथे उस ने अपक्की प्रजा को इकट्ठा किया, और मैदानोंऔर वनोंमें उन की घात में बैठाया।।
116 और ऐसा हुआ कि जब लमनाइयों ने चढ़ाई की, तो लिमही के लोग उनके प्रतीक्षा स्थलों से उन पर गिरने लगे, और उन्हें मारना शुरू कर दिया ।
117 और ऐसा हुआ कि लड़ाई बहुत भयंकर हो गई, क्योंकि वे अपने शिकार के लिए सिंहों की तरह लड़े ।
118 और ऐसा हुआ कि लिमही के लोगों ने लमनाइयों को अपने आगे से खदेड़ना शुरू कर दिया, फिर भी उनकी संख्या लमनाइयों से आधी नहीं थी ।
119 तौभी वे अपके प्राणों, और अपक्की पत्नियों, और अपक्की सन्तानोंके लिथे लड़े; इसलिथे उन्होंने यत्न किया, और ड्रेगन की नाईं लड़े।
120 और ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने मृतकों की संख्या में लमनाइयों के राजा को पाया; तौभी वह मरा न था, और घायल होकर भूमि पर पड़ा रहता था, तौभी उसके लोग भागते थे।
121 और उन्होंने उसे ले लिया और उसके घावों को बांध दिया, और उसे लिमही के सामने ले गए, और कहा, देखो, लमनाइयों का राजा यहां है; वह घाव पाकर उनके मरे हुओं में से गिर पड़ा है, और वे उसे छोड़कर चले गए हैं; और देखो, हम उसे तुम्हारे साम्हने ले आए हैं; और अब हम उसे मार डालें।
122 परन्तु लिमही ने उन से कहा, तुम उसे घात न करना, परन्तु उसे यहां ले आना, कि मैं उसको देखूं। और वे उसे ले आए।
123 तब लिमही ने उस से कहा, मेरी प्रजा से लड़ने के लिथे तुझे क्या प्रयोजन है?
124 देख, मेरी प्रजा ने जो शपय मैं ने तुझ से खाई थी, उसे न तोड़ा है; सो जो शपय तुम ने मेरी प्रजा से की थी, उसे तुम क्यों तोड़ोगे?
125 और अब राजा ने कहा, मैं ने शपय तोड़ दी, क्योंकि तेरी प्रजा ने मेरी प्रजा की बेटियोंको उठा लिया है; इस कारण मैं ने अपके क्रोध में अपक्की प्रजा को तेरी प्रजा से लड़ने को चढ़ाई करने को कहा।
126 अब लिमही ने इस विषय में कुछ नहीं सुना था; इसलिथे उस ने कहा, मैं अपक्की प्रजा में ढूंढ़ूंगा, और जिस ने ऐसा काम किया है वह नाश हो जाएगा।
127 इसलिथे उस ने अपके लोगोंके बीच खोज कराई।
128 और जब गिदोन ने ये बातें सुनीं, तब वह राजा का प्रधान होकर राजा से कहने लगा, मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि धीरज धरे रह, और इन लोगोंकी खोज न कर, और इस बात को उनके हाथ में न दे।
129 क्योंकि क्या तुम अपने पिता के याजकोंको स्मरण नहीं रखते, जिन्हें ये लोग नाश करना चाहते थे?
130 और क्या वे जंगल में नहीं हैं? और क्या वे वही नहीं हैं जिन्होंने लमनाइयों की बेटियों को चुराया है ?
131 और अब देखो, और इन बातोंके विषय में राजा से कहो, कि वह अपक्की प्रजा से कहे, कि वे हमारे साम्हने शांत हों; क्योंकि देखो, वे तो हम पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं; और देखो, हम में से थोड़े ही हैं।
132 और देखो, वे अपके अपके दल के साथ आ रहे हैं; और जब तक राजा उन्हें हमारे साम्हने शांत न करे, तब तक हम नाश होंगे।
133 क्योंकि अबिनादी के वे वचन पूरे नहीं हुए, जिनकी उस ने हमारे विरुद्ध भविष्यद्वाणी की थी? और यह सब इसलिये कि हम ने यहोवा का वचन न माना, और अपके अधर्म के कामोंसे न फिरे?
134 और अब हम राजा को शांत करें, और जो शपय हम ने उससे ली है उसे पूरा करें; क्योंकि दासत्व में रहना इस से भला है, कि हम अपके प्राणोंसे हारें; इसलिए, आइए हम इतना खून बहाना बंद करें।
135 और अब लिमही ने राजा को अपने पिता, और याजकों जो जंगल में भाग गए थे, के विषय में सब बातें बता दीं, और अपनी बेटियों के ले जाने का कारण उन्हें बताया ।
136 और ऐसा हुआ कि राजा अपने लोगों के प्रति शांत हो गया; उस ने उन से कहा, आओ, हम अपक्की प्रजा से भेंट करने को निकल जाएं, जो बिना हथियार के हों; और मैं ने तुझ से शपय खाई है, कि मेरी प्रजा तेरी प्रजा को घात न करेगी।
137 और ऐसा हुआ कि वे राजा के पीछे हो लिए, और लमनाइयों से मिलने के लिए बिना हथियार के निकल पड़े ।
138 और ऐसा हुआ कि वे लमनाइयों से मिले; और लमनाइयों के राजा ने उनके सामने सिर झुकाया, और लिमही के लोगों की ओर से याचना की ।
139 और जब लमनाइयों ने लिमही के लोगों को देखा कि वे बिना हथियार के हैं, तो उन्हें उन पर दया आई, और उनके प्रति शांत हुए, और अपने राजा के साथ शांति से अपने देश लौट गए ।
140 और ऐसा हुआ कि लिमही और उसके लोग नफी के नगर लौट आए, और प्रदेश में फिर से शांति से रहने लगे ।
141 और ऐसा हुआ कि बहुत दिनों के बाद, लमनाइयों ने फिर से नफाइयों के विरुद्ध क्रोध करना शुरू कर दिया; और वे चारोंओर देश की सीमा में घुसने लगे।
142 अब उनके राजा ने लिमही से जो शपय खाई थी, उसके कारण उन्हें मारने का साहस नहीं हुआ; परन्तु वे उनके गालों पर थप्पड़ मारते, और उन पर अधिकार करते; और उनकी पीठों पर भारी बोझ डाला, और उन्हें ऐसे भगा दिया जैसे वे गूंगा गदहा करते हैं; हां, यह सब इसलिए किया गया था कि प्रभु का वचन पूरा हो ।
143 और अब नफाइयों के कष्ट बहुत बढ़ गए थे; और उनके हाथ से बचने का कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि लमनाइयों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया था ।
144 और ऐसा हुआ कि लोग अपने कष्टों के कारण राजा के साथ कुड़कुड़ाने लगे; और वे उन से लड़ने को जाने की लालसा करने लगे।
145 और उन्होंने अपक्की शिकायतों के कारण राजा को बहुत दु:ख दिया; इसलिए उसने उन्हें अनुमति दी कि वे अपनी इच्छा के अनुसार करें ।
146 और उन्होंने अपने आप को फिर से इकट्ठा किया, और अपने हथियार पहिन लिए, और लमनाइयों को उनके प्रदेश से निकालने के लिए उनके विरुद्ध आगे बढ़े ।
147 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों ने उन्हें पीटा, और उन्हें खदेड़ दिया, और उनमें से बहुतों को मार डाला ।
148 और अब लिमही के लोगोंमें बड़ा शोक और विलाप हुआ; वह विधवा अपके पति के लिथे विलाप कर रही थी; बेटा और बेटी अपने पिता के लिए विलाप करते हैं; और भाई अपने भाइयों के लिए।
149 और उस देश में बहुत सी विधवाएं थीं; और वे दिन-ब-दिन जोर-जोर से चिल्लाते रहे; क्योंकि उन पर लमनाइयों का बड़ा भय छा गया था ।
150 और ऐसा हुआ कि उनके लगातार चिल्लाने ने लिमही के शेष लोगों को लमनाइयों के प्रति क्रोधित कर दिया ।
151 और वे फिर युद्ध करने को गए; परन्तु उन्हें फिर से खदेड़ दिया गया, और उन्हें बहुत हानि हुई।
152 वरन वे तीसरी बार फिर गए, और उसी रीति से दुख उठाया; और जो मारे नहीं गए थे, वे फिर से नफी के नगर में लौट आए ।
153 और उन्होंने अपने आप को धूल में दीन किया, अपने आप को दासता के जूए के अधीन किया, अपने आप को अपने शत्रुओं की अभिलाषाओं के अनुसार, मारे जाने, और इधर-उधर भगाने, और बोझ से दबे होने के लिए समर्पित किया ।
154 और उन्होंने दीनता की गहराई में भी अपने आप को दीन किया; और उन्होंने परमेश्वर की दोहाई दी; हां, वे दिन भर अपने परमेश्वर की दुहाई देते रहे, कि वह उन्हें उनके कष्टों से छुड़ाएगा ।
155 और अब यहोवा उनके अधर्म के कामोंके कारण उनकी दोहाई सुनने में धीरा था;
156 फिर भी प्रभु ने उनकी पुकार सुनी, और लमनाइयों के हृदयों को नरम करना शुरू कर दिया, जिससे वे अपने बोझ को कम करने लगे; तौभी यहोवा ने उन्हें दासता से छुड़ाना उचित न समझा।
157 और ऐसा हुआ कि वे प्रदेश में धीरे-धीरे समृद्ध होने लगे, और अधिक मात्रा में अनाज, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों को उगाने लगे, जिससे उन्हें भूख नहीं लगी ।
158 वहाँ पुरुषों से अधिक स्त्रियाँ थीं; इसलिए राजा लिमही ने आज्ञा दी कि प्रत्येक व्यक्ति विधवाओं और उनके बच्चों की सहायता करे, कि वे भूख से नष्ट न हों; और यह उनकी बड़ी संख्या के कारण जो मारे गए थे, ऐसा किया।
159 अब लिमही के लोगों ने जितना हो सके एक शरीर में एक साथ रखा, और अपने अनाज, और अपने भेड़-बकरियों को सुरक्षित रखा;
160 और राजा ने स्वयं शहर की शहरपनाह के बिना अपने व्यक्ति पर भरोसा नहीं किया, जब तक कि वह अपने रक्षकों को अपने साथ नहीं ले गया, इस डर से कि कहीं वह लमनाइयों के हाथों में न पड़ जाए ।
161 और उसने अपने लोगों को प्रदेश के चारों ओर निगरानी करने के लिए कहा, ताकि किसी तरह से वे उन याजकों को पकड़ सकें जो जंगल में भाग गए थे, जिन्होंने लमनाइयों की बेटियों को चुरा लिया था, और जिससे उन पर इतना बड़ा विनाश हुआ था। ;
162 क्योंकि वे उन्हें लेने के इच्छुक थे, ताकि वे उन्हें दण्ड दे सकें: क्योंकि वे रात को नफी के प्रदेश में आए थे, और अपना अनाज, और अपनी बहुत सी बहुमूल्य वस्तुओं को ले गए थे; इसलिए उन्होंने उनकी प्रतीक्षा की।
163 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों और लिमही के लोगों के बीच तब तक कोई अशांति नहीं रही, जब तक अम्मोन और उसके भाई प्रदेश में नहीं आए ।
164 और राजा ने अपके रक्षकोंके साथ नगर के फाटकोंके बाहर रहते हुए अम्मोन और उसके भाइयोंको खोज लिया; और उन्हें नूह के याजक समझकर, उस ने उन्हें पकड़ा, और बान्धा, और बन्दीगृह में डाल दिया।
165 और यदि वे नूह के याजक होते, तो वह उन्हें मार डालता; परन्तु जब उसने पाया कि वे नहीं, परन्तु यह कि वे उसके भाई हैं, और जराहेमला प्रदेश से आए हैं, तो वह अत्यंत हर्षित हुआ।
166 अब अम्मोन के आने से पहले राजा लिमही ने जराहेमला प्रदेश की खोज करने के लिए बहुत कम लोगों को भेजा था; परन्तु वे उसे न पा सके, और वे जंगल में खो गए।
167 तौभी उन्हें एक ऐसा देश मिला, जिस पर लोग रहते थे; हां, एक भूमि जो सूखी हड्डियों से ढकी हुई थी; हां, एक ऐसा देश जो लोगों में बसा हुआ था, और जिसे नष्ट कर दिया गया था;
168 और उन्होंने इसे जराहेमला का प्रदेश मानकर नफी के प्रदेश को लौट गए, अम्मोन के आने से बहुत दिन पहले प्रदेश की सीमाओं पर पहुंचकर ।
169 और जिन लोगोंकी हडि्डयां उन्हें मिली थीं, उनका लेखा-जोखा भी वे अपने साथ ले आए; और वे अयस्क की पट्टियों पर खुदे हुए थे।
170 और अब अम्मोन के मुख से यह जानकर कि राजा मुसायाह के पास परमेश्वर की ओर से एक उपहार था, लिमही फिर से आनन्द से भर गया, जिसके द्वारा वह इस तरह की नक्काशी की व्याख्या कर सकता था, हां, और अम्मोन भी आनन्दित हुआ।
171 तौभी अम्मोन और उसके भाई शोक से भर गए, क्योंकि उनके बहुत से भाई मारे गए थे; और यह भी कि राजा नूह और उसके याजकों ने लोगों से परमेश्वर के विरुद्ध बहुत से पाप और अधर्म करवाए थे;
172 और उन्होंने अबिनादी की मृत्यु का शोक भी किया; और अलमा, और उसके साथ जाने वाले लोगों के प्रस्थान के लिए भी, जिन्होंने परमेश्वर की शक्ति और शक्ति के माध्यम से परमेश्वर का एक गिरजा बनाया था, और अबिनादी द्वारा कही गई बातों पर विश्वास किया था;
173 हां, उन्होंने अपने जाने का शोक मनाया, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि वे कहां भाग गए थे ।
174 अब वे खुशी-खुशी उनके साथ मिल गए, क्योंकि उन्होंने आप ही परमेश्वर से वाचा बान्धी थी, कि उसकी उपासना करें, और उसकी आज्ञाओं को मानें।
175 और अब अम्मोन के आने के बाद से, राजा लिमही ने भी परमेश्वर, और उसके बहुत से लोगों के साथ उसकी सेवा करने, और उसकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए एक अनुबंध किया था ।
176 और ऐसा हुआ कि राजा लिमही और उसके बहुत से लोग बपतिस्मा लेने के इच्छुक थे; परन्तु उस देश में ऐसा कोई न था जिस पर परमेश्वर का अधिकार हो।
177 और अम्मोन ने अपने आप को एक अयोग्य दास समझकर यह काम करने से इन्कार कर दिया; इसलिए उन्होंने उस समय प्रभु के आत्मा की बाट जोहते हुए कलीसिया का रूप नहीं लिया।
178 अब वे अलमा और उसके भाइयों के समान बनना चाहते थे, जो निर्जन प्रदेश में भाग गए थे ।
179 वे साक्षी और साक्षी के रूप में बपतिस्मा लेने के इच्छुक थे, कि वे अपने पूरे मन से परमेश्वर की सेवा करने को तैयार थे;
180 तौभी उन्होंने समय बढ़ाया; और उनके बपतिस्मे का विवरण इसके बाद दिया जाएगा।
181 और अब अम्मोन और उसके लोगों, और राजा लिमही और उसके लोगों का संपूर्ण अध्ययन, स्वयं को लमनाइयों के हाथों से और दासता से मुक्त करना था ।
मुसायाह, अध्याय 10
1 और अब ऐसा हुआ कि अम्मोन और राजा लिमही लोगों के साथ विचार-विमर्श करने लगे कि वे स्वयं को दासता से कैसे छुड़ाएं;
2 और यहां तक कि उन्होंने यह भी किया कि सब लोग इकट्ठे हों; और उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि वे इस मामले में लोगों की आवाज उठाएं।
3 और ऐसा हुआ कि अपनी महिलाओं और बच्चों, और अपने भेड़-बकरियों और अपने गाय-बैलों, और अपने तंबुओं को लेकर जंगल में चले जाने के अलावा, उन्हें अपने आप को बंधन से छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं मिला;
4 क्योंकि लमनाइयों की संख्या इतनी अधिक थी कि लिमही के लोगों के लिए उनके साथ संघर्ष करना असंभव था, यह सोचकर कि वे स्वयं को तलवार की दासता से मुक्त कर लेंगे ।
5 अब ऐसा हुआ कि गिदोन आगे बढ़कर राजा के सामने खड़ा हो गया, और उससे कहा, अब हे राजा, जब तक हम अपने भाइयों, लमनाइयों से लड़ते रहे हैं, तब तक आपने मेरी बातों को कई बार सुना है ।
6 और अब हे राजा, यदि तू ने मुझे एक लाभहीन दास नहीं पाया है, या यदि तू ने अब तक मेरी बातों को किसी भी हद तक सुना है, और वे तेरी सेवा करते हैं, तो भी मैं चाहता हूं कि आप मेरी बात सुनें इस समय वचन, और मैं तेरा दास बनूंगा, और इन लोगों को दासता से छुड़ाऊंगा।
7 और राजा ने उसे बोलने की आज्ञा दी।
8 तब गिदोन ने उस से कहा, पीछे का भाग नगर की पिछली दीवार से होकर जाता है।
9 लमनाइयों, या लमनाइयों के रक्षक, रात में नशे में धुत होते हैं; इसलिथे हम इन सब लोगोंके बीच यह घोषणा करें, कि वे अपक्की भेड़-बकरियां और गाय-बैल इकट्ठा करें, कि रात को उन्हें जंगल में ले जाएं।
10 और मैं तेरी आज्ञा के अनुसार जाऊंगा, और लमनाइयों को दाखमधु की अंतिम भेंट दूंगा, और वे मतवाले होंगे; और हम उनकी छावनी की बाईं ओर के उस गुप्त मार्ग से होकर जाएंगे, जब वे नशे में धुत्त होकर सो रहे होंगे;
11 इस प्रकार हम अपक्की स्त्रियों, और बालकों, भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों समेत जंगल में चले जाएंगे; और हम शीलोम देश का चक्कर लगाएंगे।
12 और ऐसा हुआ कि राजा ने गिदोन की बातों को मान लिया ।
13 और राजा लिमही ने अपनी प्रजा को अपनी भेड़-बकरियां इकट्ठी करने की आज्ञा दी; और उसने लमनाइयों को दाख-मदिरा भेज दी; और उस ने उनके लिये भेंट के लिये और दाखमधु भी भेजा; और जो दाखरस राजा लिमही ने उनके पास भेजा था, उस में से उन्होंने स्वतंत्र रूप से पी।
14 और ऐसा हुआ कि राजा लिमही के लोग रात में अपने भेड़-बकरियों और अपने झुंडों के साथ निर्जन प्रदेश में चले गए, और वे निर्जन प्रदेश में शीलोम प्रदेश के चारों ओर घूमे और अपना मार्ग जराहेमला प्रदेश की ओर मोड़ दिया, अम्मोन और उसके भाइयों द्वारा।
15 और उन्होंने अपना सब सोना, चान्दी, और अपक्की बहुमूल्य वस्तुएं ले लीं, जिन्हें वे ले जा सकते थे; और उनके साथ जंगल में उनका सामान भी; और उन्होंने अपनी यात्रा का पीछा किया।
16 और बहुत दिनों तक जंगल में रहने के बाद, वे जराहेमला प्रदेश में पहुंचे, और उसके लोगों में शामिल हो गए, और उसके अधीन हो गए ।
17 और ऐसा हुआ कि मुसायाह ने उन्हें खुशी से ग्रहण किया; और उसने उनके अभिलेख, और वे अभिलेख भी प्राप्त किए जो लिमही के लोगों को मिले थे।
18 और अब ऐसा हुआ कि जब लमनाइयों ने पाया कि लिमही के लोग रात में प्रदेश से निकल गए थे, तो उन्होंने उनका पीछा करने के लिए निर्जन प्रदेश में एक सेना भेजी;
19 और जब वे दो दिन तक उनका पीछा कर चुके, तब वे अपके मार्गोंके पीछे न चल सके; इसलिए वे जंगल में खो गए थे।
मुसायाह, अध्याय 11
अलमा और प्रभु के लोगों का विवरण, जिन्हें राजा नूह के लोगों द्वारा जंगल में खदेड़ दिया गया था।
1 अब अलमा, प्रभु से चेतावनी मिलने के बाद कि राजा नूह की सेना उन पर चढ़ाई करेगी, और अपने लोगों को इसकी जानकारी दी थी, इसलिए उन्होंने अपने भेड़-बकरियों को इकट्ठा किया, और अपना अनाज लिया, और जंगल में चले गए। राजा नूह की सेनाएँ।
2 और यहोवा ने उनको दृढ़ किया, कि राजा नूह की प्रजा उन्हें पकड़कर नाश करने को न हो सकी।
3 और वे आठ दिन के मार्ग में जंगल में भाग गए।
4 और वे एक प्रदेश में आए, हां, एक बहुत ही सुन्दर और मनोहर प्रदेश; शुद्ध जल की भूमि।
5 और उन्होंने अपके डेरे खड़े किए, और भूमि की जुताई करने लगे, और भवन आदि बनाने लगे; हां, वे मेहनती थे और बहुत परिश्रम करते थे ।
6 और लोग चाहते थे कि अलमा उनका राजा बने, क्योंकि वह अपने लोगों का प्रिय था ।
7 परन्तु उस ने उन से कहा, देखो, हमारा एक राजा होना उचित नहीं; क्योंकि यहोवा योंकहता है: तुम एक मांस को दूसरे से अधिक न समझना, वा एक मनुष्य अपने आप को दूसरे से अधिक न समझे; इस कारण मैं तुम से कहता हूं, कि तुम्हारे लिये राजा होना उचित नहीं।
8 फिर भी, यदि यह संभव होता कि तुम्हारे राजा होने के लिए तुम्हारे पास हमेशा न्यायी पुरुष होते, तो तुम्हारे लिए एक राजा होना अच्छा होता।
9 परन्तु राजा नूह और उसके याजकों के अधर्म को स्मरण रखो; और मैं आप ही फन्दे में फंस गया, और ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में घृणित थे, जिस से मेरा मन फिरा;
10 फिर भी, बहुत क्लेश के बाद, यहोवा ने मेरी दोहाई सुनी, और मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया, और मुझे अपने हाथों में एक हथियार बनाया है, ताकि आप में से बहुतों को उसकी सच्चाई का ज्ञान हो सके।
11 तौभी मैं इस से घमण्ड नहीं करता, क्योंकि मैं अपक्की महिमा के योग्य नहीं।
12 और अब मैं तुम से कहता हूं, कि तुम राजा नूह के द्वारा अन्धेर किए गए, और उसके और उसके याजकोंके दास हुए, और उनके द्वारा अधर्म में लाए गए; इस कारण तुम अधर्म के बन्धनों से बन्धे हुए हो।
13 और अब जैसे तुम परमेश्वर की शक्ति से इन बन्धनों से छुड़ाए गए हो;
14 हां, यहां तक कि राजा नूह और उसके लोगों के हाथों से, और अधर्म के बंधनों से भी, यहां तक कि मैं चाहता हूं कि तुम उस स्वतंत्रता में स्थिर रहो जिससे तुम स्वतंत्र हुए हो, और यह कि तुम किसी मनुष्य पर भरोसा नहीं करते कि तुम्हारे ऊपर एक राजा;
15 और किसी पर भरोसा न रखना कि वह तुम्हारा गुरु हो, और न तुम्हारा सेवक हो, जब तक कि वह परमेश्वर का भक्त न हो, जो उसके मार्गों पर चलता और उसकी आज्ञाओं को मानता हो।
16 अलमा ने अपने लोगों को इस प्रकार सिखाया, कि प्रत्येक व्यक्ति अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखे; ताकि उनके बीच कोई विवाद न हो।
17 और अब अलमा उनका महायाजक था, वह उनके गिरजे का संस्थापक था ।
18 और ऐसा हुआ कि किसी को भी प्रचार करने या सिखाने का अधिकार प्राप्त नहीं हुआ, सिवाय इसके कि उसे परमेश्वर की ओर से मिला था ।
19 इसलिथे उस ने उनके सब याजकोंऔर उनके सब शिक्षकोंको पवित्रा किया, और केवल मनुष्य ही के सिवाय और कोई भी पवित्रा न किया गया।
20 इस कारण उन्होंने अपके लोगोंकी चौकसी की, और धर्म की बातोंसे उनका पालन-पोषण किया।
21 और ऐसा हुआ कि वे प्रदेश में अत्यधिक समृद्ध होने लगे; और उन्होंने उस देश का नाम हेलाम रखा।
22 और ऐसा हुआ कि वे हेलाम प्रदेश में बहुत बढ़े और बहुत समृद्ध हुए; और उन्होंने एक नगर बनाया, जिसका नाम उन्होंने हेलाम नगर रखा।
23 तौभी यहोवा अपक्की प्रजा को ताड़ना देना उचित समझता है; हां, वह उनके धैर्य और उनके विश्वास की परीक्षा लेता है ।
24 तौभी जो कोई उस पर भरोसा रखे, वह अन्तिम दिन में ऊंचा किया जाए।
25 हां, और ऐसा ही इन लोगों के साथ हुआ ।
26 क्योंकि देखो, मैं तुम्हें दिखाऊंगा कि वे दासत्व में लाए गए थे, और उनके परमेश्वर यहोवा को छोड़ और कोई उन्हें छुड़ा न सका; हां, इब्राहीम का, और इसहाक का, और याकूब का भी परमेश्वर ।
27 और ऐसा हुआ कि उसने उन्हें छुड़ाया, और उसने उन्हें अपनी शक्तिशाली शक्ति दिखाई, और उनका आनंद बहुत अच्छा था ।
28 क्योंकि देखो, ऐसा हुआ कि जब वे हेलाम प्रदेश में थे, हां, हेलाम नगर में, जब वह प्रदेश के चारों ओर खेती कर रहे थे, देखो लमनाइयों की एक सेना प्रदेश की सीमाओं पर थी ।
29 अब ऐसा हुआ कि अलमा के भाई अपने खेतों से भाग गए, और हेलाम नगर में एकत्रित हुए; और लमनाइयों के प्रकट होने के कारण वे बहुत भयभीत थे ।
30 परन्तु अलमा आगे बढ़कर उनके बीच खड़ा हो गया, और उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे भयभीत न हों, परन्तु यह कि वे अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखें, और वह उन्हें बचाएगा;
31 इसलिए उन्होंने अपने डर को शांत किया, और प्रभु से दोहाई देने लगे, कि वह लमनाइयों के हृदयों को नरम कर देगा, कि वे उन्हें, और उनकी पत्नियों, और उनके बच्चों को छोड़ दें ।
32 और ऐसा हुआ कि प्रभु ने लमनाइयों के हृदयों को नरम कर दिया ।
33 और अलमा और उसके भाइयों ने आगे बढ़कर अपने आप को उनके हाथों में सौंप दिया; और लमनाइयों ने हेलाम प्रदेश पर अधिकार कर लिया ।
34 अब लमनाइयों की सेना जो राजा लिमही के लोगों का पीछा कर रही थी, कई दिनों तक निर्जन प्रदेश में खो गई थी ।
35 और देखो, उन्होंने राजा नूह के उन याजकोंको उस स्थान में पाया जिसे उन्होंने अमूलोन कहा था; और वे अमूलोन के प्रदेश के अधिकारी होने लगे थे, और भूमि पर खेती करने लगे थे।
36 उन याजकों के प्रधान का नाम अमूलोन या।
37 और ऐसा हुआ कि अमुलोन ने लमनाइयों से याचना की; और उसने उनकी पत्नियों को भी भेजा, जो लमनाइयों की बेटियाँ थीं, उनके भाइयों से विनती करने के लिए कि वे अपने पतियों को नष्ट न करें ।
38 और लमनाइयों ने अमूलोन और उसके भाइयों पर दया की, और उनकी पत्नियों के कारण उन्हें नष्ट नहीं किया ।
39 और अमूलोन और उसके भाई लमनाइयों में शामिल हो गए, और वे नफी के प्रदेश की खोज में निर्जन प्रदेश में यात्रा कर रहे थे, जब उन्होंने हेलाम प्रदेश का पता लगाया, जिस पर अलमा और उसके भाइयों का कब्जा था ।
40 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों ने अलमा और उसके भाइयों से वादा किया, कि यदि वे उन्हें वह मार्ग दिखाएंगे जो नफी के प्रदेश की ओर ले गए, कि वे उन्हें अपना जीवन और अपनी स्वतंत्रता प्रदान करेंगे ।
41 परन्तु जब अलमा ने उन्हें वह मार्ग दिखाया जो नफी के प्रदेश की ओर ले जाता था, लमनाइयों ने अपना वादा पूरा नहीं किया; परन्तु उन्होंने अलमा और उसके भाइयों के ऊपर हेलाम प्रदेश के चारों ओर पहरेदार नियुक्त किए।
42 और उनमें से शेष नफी के प्रदेश गए; और उनमें से एक भाग हेलाम देश को लौट गया, और उन पत्नियों और जल्लादों के बच्चों को भी जो उस देश में रह गए थे, ले आए।
43 और लमनाइयों के राजा ने अमूलोन को यह अनुमति दी थी कि वह हेलाम प्रदेश में रहने वाले अपने लोगों पर एक राजा और शासक होगा; फिर भी उसके पास लमनाइयों के राजा की इच्छा के विपरीत कुछ भी करने की शक्ति नहीं होनी चाहिए ।
44 और ऐसा हुआ कि अमुलोन ने लमनाइयों के राजा की दृष्टि में अनुग्रह प्राप्त किया; इसलिए लमनाइयों के राजा ने उसे और उसके भाइयों को अनुमति दी, कि वे उसके लोगों के लिए शिक्षक नियुक्त किए जाएं;
45 हां, यहां तक कि उन लोगों पर भी जो शेमलोन के प्रदेश में, और शीलोम के प्रदेश में, और अमूलोन के प्रदेश में थे:
46 क्योंकि लमनाइयों ने इन सभी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था; इसलिए लमनाइयों के राजा ने इन सभी प्रदेशों पर राजाओं को नियुक्त किया था:
47 और अब लमनाइयों के राजा का नाम लमान था, जिसे उसके पिता के नाम पर रखा गया था; और इसलिए उसे राजा लमन कहा गया ।
48 और वह बहुत सी प्रजा का राजा था; और उस ने हर एक देश में जो उसकी प्रजा के अधिकारी थे, अमूलोन के भाइयोंके लिये शिक्षक ठहराया;
49 और इस प्रकार लमनाइयों के सभी लोगों को नफी की भाषा सिखाई जाने लगी ।
50 और वे आपस में मिलनसार थे; फिर भी वे परमेश्वर को नहीं जानते थे; न तो अमूलोन के भाइयों ने उन्हें उनके परमेश्वर यहोवा के विषय में, और न मूसा की व्यवस्था के विषय में कुछ सिखाया;
51 और उन्होंने अबिनादी की बातें उन्हें न सिखाईं; परन्तु उन्होंने उन्हें सिखाया, कि वे अपना लेखा रखें, और एक दूसरे को लिखें।
52 और इस प्रकार लमनाइयों ने धन में वृद्धि करना शुरू कर दिया, और एक दूसरे के साथ व्यापार करना शुरू कर दिया, और महान हो गए, और संसार के ज्ञान के मामले में धूर्त और बुद्धिमान लोग बनने लगे;
53 हां, बहुत चालाक लोग; वे सब प्रकार की दुष्टता और लूट से प्रसन्न होते थे, सिवाय उनके अपने भाइयों के।
54 और अब ऐसा हुआ कि अमुलोन ने अलमा और उसके भाइयों पर अधिकार करना शुरू कर दिया, और उसे सताना शुरू कर दिया, और उसके बच्चे अपने बच्चों को सताने लगे;
55 क्योंकि अमूलोन अलमा को जानता था, कि वह राजा के याजकों में से एक था, और यह कि वह अबिनादी की बातों पर विश्वास करता था, और उसे राजा के सामने से निकाल दिया गया था; और इसलिए वह उस पर क्रोधित था, क्योंकि वह राजा लमान के अधीन था;
56 तौभी उस ने उन पर अधिकार किया, और उन पर काम किया, और उन पर काम करनेवालोंको ठहराया।
57 और ऐसा हुआ कि उनके कष्ट इतने अधिक थे कि वे परमेश्वर को जोर-जोर से पुकारने लगे ।
58 और अमूलोन ने उनको आज्ञा दी, कि वे चिल्लाना बन्द कर दें; और उस ने उनकी चौकसी करने के लिथे उन पर पहिए लगाए, कि जो कोई परमेश्वर को पुकारता हुआ मिले, वह मार डाला जाए।
59 और अलमा और उसके लोगों ने अपने परमेश्वर यहोवा के लिए आवाज नहीं उठाई, बल्कि अपने दिलों की बात उस पर उंडेल दी; और वह उनके मन के विचारों को जानता था।
60 और ऐसा हुआ कि उनके कष्टों में प्रभु की वाणी उनके पास आई, यह कहते हुए, कि अपना सिर ऊंचा करो और आराम से रहो, क्योंकि मैं उस वाचा के बारे में जानता हूं जो तुमने मेरे साथ बनाई है; और मैं अपक्की प्रजा से वाचा बान्धूंगा, और उन्हें दासता से छुड़ाऊंगा।
61 और जो बोझ तेरे कन्धों पर रखे गए हैं उनको मैं भी हल्का करूंगा, कि जब तक तू बन्धन में है, तब तक उन्हें अपनी पीठ पर भी न लगा सकेगा;
62 और मैं यह इसलिये करूंगा, कि तुम आगे चलकर मेरी ओर से गवाह बनो, और तुम निश्चय जान सको कि मैं, परमेश्वर यहोवा, अपक्की प्रजा के क्लेशोंमें उनकी सुधि लेता हूं।
63 और अब ऐसा हुआ कि अलमा और उसके भाइयों पर जो बोझ डाला गया था, उसे हल्का कर दिया गया;
64 हां, प्रभु ने उन्हें मजबूत किया ताकि वे अपने बोझ को आसानी से उठा सकें, और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक और धैर्य के साथ प्रभु की सभी इच्छा के प्रति समर्पण किया ।
65 और ऐसा हुआ कि उनका विश्वास और उनका धैर्य इतना अधिक था, कि प्रभु की वाणी फिर से उनके पास आई, यह कहते हुए, आराम से रहो, क्योंकि कल मैं तुम्हें बंधन से छुड़ाऊंगा ।
66 और उसने अलमा से कहा, तू इन लोगों के आगे आगे चलना, और मैं तेरे संग चलूंगा, और इन लोगों को दासता से छुड़ाऊंगा ।
67 अब ऐसा हुआ कि अलमा और उसके लोगों ने रात के समय में अपनी भेड़-बकरियों को, और अपने अनाज को भी इकट्ठा किया; हां, यहां तक कि रात भर वे अपनी भेड़-बकरियां इकट्ठा करते रहे ।
68 और सुबह प्रभु ने लमनाइयों को गहरी नींद दिलाई, हां, और उनके सभी कार्य-स्वामी गहरी नींद में थे ।
69 और अलमा और उसके लोग जंगल में चले गए; और जब वे पूरे दिन यात्रा कर चुके थे, तो उन्होंने एक घाटी में अपने तंबू लगाए, और उन्होंने उस घाटी को अलमा कहा, क्योंकि वह निर्जन प्रदेश में उनका नेतृत्व करता था;
70 हां, और अलमा की घाटी में उन्होंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया क्योंकि उसने उन पर दया की थी, और उनके बोझ को कम किया था, और उन्हें बंधन से मुक्त किया था;
71 क्योंकि वे बन्धन में थे, और उनका परमेश्वर यहोवा ही को छोड़ और कोई उन्हें छुड़ा न सका।
72 और उन्होंने परमेश्वर का धन्यवाद किया, हां, उनके सभी पुरुषों, और उनकी सभी महिलाओं, और उनके सभी बच्चों, जो बोल सकते थे, ने अपने परमेश्वर की स्तुति में अपनी आवाज बुलंद की ।
73 और अब प्रभु ने अलमा से कहा, जल्दी करो और तुम्हें और इन लोगों को इस प्रदेश से बाहर निकालो, क्योंकि लमनाई जाग गए हैं और तुम्हारा पीछा कर रहे हैं;
74 इसलिए तुम्हें इस प्रदेश से बाहर निकालो, और मैं लमनाइयों को इस घाटी में रोक दूंगा, ताकि वे इन लोगों का पीछा करने के लिए आगे न आएं ।
75 और ऐसा हुआ कि वे तराई से निकल गए, और निर्जन प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़े ।
76 और बारह दिन जंगल में रहने के बाद, वे जराहेमला प्रदेश में पहुंचे; और राजा मुसायाह ने भी आनन्द से उनका स्वागत किया।
77 और अब राजा मुसायाह ने सभी लोगों को एक साथ इकट्ठा करने का आदेश दिया।
78 अब नफी की संतानों की संख्या, या नफी के वंशजों की संख्या इतनी नहीं थी, जितनी कि जराहेमला के लोगों की थी, जो मुलोक के वंशज थे, और जो उसके साथ निर्जन प्रदेश में आए थे। ;
79 और नफी और जराहेमला के लोगों की संख्या उतनी नहीं थी जितनी लमनाइयों की थी: हां, उनकी संख्या आधी नहीं थी ।
80 और अब नफी के सभी लोग, और जराहेमला के सभी लोग एकत्र हुए, और वे दो शरीरों में एकत्रित हुए ।
81 और ऐसा हुआ कि मुसायाह ने ज़ेनिफ के अभिलेखों को अपने लोगों को पढ़ा, और पढ़ाया; हां, उसने जेनिफ के लोगों के जराहेमला प्रदेश छोड़ने के समय से लेकर वापस लौटने तक के अभिलेखों को पढ़ा ।
82 और उसने अलमा और उसके भाइयों और उनके जराहेमला प्रदेश छोड़ने के समय से लेकर उनके वापस लौटने तक उनके सभी कष्टों का विवरण भी पढ़ा ।
83 और अब जब मुसायाह ने अभिलेखों को पढ़ना समाप्त कर दिया, तब उसकी प्रजा के लोग जो देश में रह गए थे अचम्भे और अचम्भे में पड़ गए, क्योंकि वे नहीं जानते थे कि क्या सोचा जाए;
84 क्योंकि जब उन्होंने उन लोगों को देखा जो दासत्व से छुड़ाए गए थे, तो वे बड़े आनन्द से भर गए।
85 और फिर, जब उन्होंने अपने उन भाइयों के बारे में सोचा जो लमनाइयों द्वारा मारे गए थे, तो वे दुख से भर गए, और यहां तक कि दुख के कई आंसू बहाए;
86 और फिर, जब उन्होंने परमेश्वर की तत्काल भलाई, और अलमा और उसके भाइयों को लमनाइयों के हाथों से छुड़ाने में उसकी शक्ति, और दासता के बारे में सोचा, तो उन्होंने आवाज उठाई, और परमेश्वर को धन्यवाद दिया ।
87 और फिर, जब उन्होंने लमनाइयों, जो उनके भाई थे, के बारे में अपनी पापी और प्रदूषित स्थिति के बारे में सोचा, तो वे अपनी आत्माओं के कल्याण के लिए दर्द और पीड़ा से भर गए ।
88 और ऐसा हुआ कि जो अमूलोन और उसके भाई थे, जिन्होंने लमनाइयों की बेटियों को ब्याह लिया था, वे अपने पिता के आचरण से अप्रसन्न थे,
89 और वे अब अपने पूर्वजों के नाम से नहीं पुकारे जाते थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम नफी रखा, ताकि वे नफी की संतान कहलाएं, और उन लोगों में गिना जाए जो नफाई कहलाते थे ।
90 और अब जराहेमला के सभी लोगों की गिनती नफाइयों में की गई, और ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य किसी को नहीं बल्कि नफी के वंशजों को प्रदान किया गया था ।
91 और अब ऐसा हुआ कि जब मुसायाह ने लोगों से बोलना और पढ़ना समाप्त कर दिया, तो उसकी इच्छा थी कि अलमा भी लोगों से बात करे ।
92 और अलमा ने उनसे बात की, जब वे बड़े शरीरों में इकट्ठे हुए थे, और वह लोगों को पश्चाताप और प्रभु पर विश्वास का प्रचार करते हुए एक शरीर से दूसरे शरीर में गया ।
93 और उसने लिमही के लोगों और उसके भाइयों को, जो गुलामी से छुड़ाए गए थे, यह उपदेश दिया कि वे याद रखें कि यह प्रभु ही था जिसने उन्हें बचाया था ।
94 और ऐसा हुआ कि जब अलमा ने लोगों को बहुत सी बातें सिखाईं, और उनसे बात करना समाप्त कर दिया, तो राजा लिमही बपतिस्मा लेने के इच्छुक थे; और उसकी सब प्रजा की इच्छा थी कि वे भी बपतिस्मा लें।
95 इसलिए अलमा पानी में चला गया, और उन्हें बपतिस्मा दिया; हां, उसने उन्हें उसी प्रकार बपतिस्मा दिया जैसे उसने अपने भाइयों को मॉरमन के जल में किया था;
96 हां, और जितने लोगों ने उन्हें बपतिस्मा दिया, वे परमेश्वर के गिरजे के थे; और यह अलमा के शब्दों पर उनके विश्वास के कारण है।
97 और ऐसा हुआ कि राजा मुसायाह ने अलमा को अनुमति दी, कि वह जराहेमला के सारे प्रदेश में गिरजाघर स्थापित कर सके; और उसे हर कलीसिया पर याजकों और शिक्षकों को नियुक्त करने का अधिकार दिया।
98 अब ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इतने सारे लोग थे कि वे सभी एक शिक्षक द्वारा शासित नहीं हो सकते थे; न तो वे सब एक ही सभा में परमेश्वर का वचन सुन सकते थे; इसलिए उन्होंने खुद को अलग-अलग निकायों में इकट्ठा किया, जिन्हें चर्च कहा जाता है;
99 हर कलीसिया में उनके याजक और उनके शिक्षक थे, और हर याजक उस वचन का प्रचार करता था जो अलमा के मुंह से उसे दिया गया था;
100 और इस प्रकार, कई गिरजे होने के बावजूद वे सभी एक ही गिरजे थे; हाँ, यहाँ तक कि परमेश्वर की कलीसिया भी:
101 क्योंकि मन फिराव और परमेश्वर पर विश्वास के सिवाय सब कलीसियाओं में किसी बात का प्रचार न हुआ।
102 और अब जराहेमला प्रदेश में सात गिरजे थे ।
103 और ऐसा हुआ कि जो कोई अपने ऊपर मसीह, या परमेश्वर का नाम लेना चाहता था, वे परमेश्वर के गिरजे में शामिल हो गए; और वे परमेश्वर के लोग कहलाए।
104 और यहोवा ने उन पर अपना आत्मा उण्डेल दिया, और वे आशीषित हुए, और देश में सफल हुए।
105 अब ऐसा हुआ कि कई उदीयमान पीढ़ी के लोग थे जो राजा बिन्यामीन के शब्दों को नहीं समझ सकते थे, जो उस समय छोटे बच्चे थे जब उसने अपने लोगों से बात की थी; और उन्होंने अपके पुरखाओं की परम्परा को न माना।
106 जो कुछ मरे हुओं के जी उठने के विषय में कहा गया था, उस पर उन्होंने विश्वास नहीं किया; और न ही उन्होंने मसीह के आने के विषय में विश्वास किया।
107 और अब अपके अविश्वास के कारण वे परमेश्वर के वचन को न समझ सके; और उनके मन कठोर हो गए।
108 और उन्होंने बपतिस्मा न लिया; न ही वे चर्च में शामिल होंगे।
109 और वे अपके विश्वास के अनुसार अलग प्रजा थे, और अपनी शारीरिक और पापमय दशा में सदा ऐसे ही बने रहे; क्योंकि वे अपके परमेश्वर यहोवा को न पुकारेंगे।
110 और अब मुसायाह के राज्य में, उनकी संख्या परमेश्वर की प्रजा से आधी नहीं थी; परन्तु भाइयों के बीच मतभेद के कारण वे और भी अधिक हो गए।
111 क्योंकि ऐसा हुआ कि उन्होंने अपनी चापलूसी भरी बातों से बहुतों को धोखा दिया, जो गिरजे में थे, और उनसे कई पाप करवाए;
112 इसलिए यह समीचीन हो गया कि जिन लोगों ने कलीसिया में पाप किया है, उन्हें कलीसिया द्वारा चेतावनी दी जानी चाहिए।
113 और ऐसा हुआ कि उन्हें याजकों के सामने लाया गया, और शिक्षकों द्वारा याजकों के हाथ सौंप दिया गया; और याजक उन्हें अलमा के साम्हने ले आए, जो महायाजक था।
114 अब राजा मुसायाह ने अलमा को गिरजे पर अधिकार दिया था ।
115 और ऐसा हुआ कि अलमा उनके बारे में नहीं जानता था, क्योंकि उनके खिलाफ कई गवाह थे; हां, लोगों ने खड़े होकर अपने अधर्म की बहुतायत में गवाही दी ।
116 अब से पहले कलीसिया में ऐसा कुछ नहीं हुआ था; इसलिए अलमा उसकी आत्मा में परेशान था, और उसने उन्हें राजा के सामने लाने का आदेश दिया ।
117 और उस ने राजा से कहा, सुन, यहां बहुत से हैं जिन्हें हम तेरे साम्हने लाए हैं, जिन पर उनके भाइयोंने दोष लगाया है; हां, और वे नाना प्रकार के अधर्म के कामों में फंस गए हैं।
118 और वे अपके अधर्म के कामोंसे मन फिरा नहीं करते; इसलिथे हम उनको तेरे साम्हने ले आए हैं, कि तू उनके अपराधोंके अनुसार उनका न्याय करे।
119 परन्तु राजा मुसायाह ने अलमा से कहा, सुन, मैं उनका न्याय नहीं करता; इसलिथे मैं उन्हें न्याय के लिथे तेरे हाथ में कर दूंगा।
120 और अब अलमा की आत्मा फिर से व्याकुल हो गई; और उस ने जाकर यहोवा से पूछा, कि इस विषय में क्या किया जाए, क्योंकि उसे डर था कि कहीं वह परमेश्वर की दृष्टि में कुछ गलत न करे।
121 और ऐसा हुआ कि जब उसने अपनी पूरी आत्मा परमेश्वर पर उंडेल दी, तब प्रभु की आवाज उसके पास आई, यह कहते हुए, धन्य है, अलमा, और धन्य हैं वे जिन्होंने मॉरमन के जल में बपतिस्मा लिया ।
122 मेरे दास अबिनादी की ही बातों पर अपने अत्याधिक विश्वास के कारण तू धन्य है।
123 और जो बातें तू ने उन से कही हैं, उन पर अत्याधिक विश्वास करने के कारण वे धन्य हैं ।
124 और तू धन्य है, क्योंकि तू ने इन लोगोंके बीच एक कलीसिया स्थापित की है; और वे दृढ़ किए जाएंगे, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे।
125 वरन धन्य है ये लोग, जो मेरा नाम धारण करने को तैयार हैं; क्योंकि वे मेरे नाम से कहलाएंगे; और वे मेरे हैं।
126 और तू ने मुझ से अपराधी के विषय में पूछा, तो तू धन्य है।
127 तू मेरा दास है, और मैं तुझ से वाचा बान्धता हूं, कि तू अनन्त जीवन पाएगा; और तू मेरी उपासना करना, और मेरे नाम से निकलकर मेरी भेड़-बकरियोंको इकट्ठा करना।
128 और जो मेरा शब्द सुनेगा, वह मेरी भेड़े ठहरेगा; और उसे कलीसिया में ग्रहण करना; और वह मैं भी प्राप्त करूंगा।
129 क्योंकि देखो, यह मेरी कलीसिया है: जो कोई बपतिस्मा लेगा, वह मन फिराव का बपतिस्मा लेगा।
130 और जिसे तुम ग्रहण करो, वह मेरे नाम पर विश्वास करेगा; और मैं उसे स्वतंत्र रूप से क्षमा करूंगा:
131 क्योंकि जगत के पाप मैं ही अपने ऊपर ले लेता हूं; क्योंकि मैं ही ने उन्हें उत्पन्न किया है; और जो अन्त में विश्वास करता है, उसे मैं ही अपनी दहिनी ओर स्थान देता हूं।
132 क्योंकि देखो, वे मेरे नाम से पुकारे जाते हैं; और यदि वे मुझे जान लें, तो निकलकर मेरे दहिने ओर सदा के लिये निवास करेंगे।
133 और ऐसा होगा कि जब दूसरी तुरही फूंकी जाएगी, तब वे जो मुझे कभी नहीं जानते थे वे आगे आएंगे, और मेरे सामने खड़े होंगे;
134 और तब वे जानेंगे कि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूं, कि मैं उनका छुड़ाने वाला हूं; परन्तु उन्हें छुड़ाया नहीं जाएगा।
135 और तब मैं उन से अंगीकार करूंगा, कि मैं ने उन्हें कभी नहीं जाना; और वे सदा की आग में चले जाएंगे, और शैतान और उसके दूतों के लिथे तैयार किए जाएंगे।
136 इसलिथे मैं तुम से कहता हूं, कि जो मेरा शब्द नहीं सुनेगा, वह मेरी कलीसिया में ग्रहण न करना, क्योंकि उसे मैं अंतिम दिन में ग्रहण नहीं करूंगा।
137 इसलिथे मैं तुम से कहता हूं, जा; और जो कोई मेरा अपराध करे, उसका न्याय उस ने किए हुए पापोंके अनुसार करना;
138 और यदि वह तेरे और मेरे साम्हने अपके पापोंको मान ले, और अपने मन की सच्चाई से मन फिराए, तो उसे क्षमा करना, और मैं उसे भी क्षमा करूंगा;
139 हां, और जितनी बार मेरी प्रजा पछताएगी, क्या मैं उनके अपराध क्षमा करूंगा ।
140 और तुम एक दूसरे के अपराध क्षमा भी करना; क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो अपके पड़ोसी के अपराध क्षमा नहीं करता, जब वह कहता है, कि मन फिराता है, तो उस पर दण्ड की आज्ञा होती है।
141 अब मैं तुम से कहता हूं, जा; और जो कोई अपके पापोंसे मन न फिराएगा, वह मेरी प्रजा में न गिना जाएगा, और यह बात इस समय से मानी जाएगी।
142 और ऐसा हुआ कि जब अलमा ने इन वचनों को सुना, तो उसने उन्हें लिख लिया, ताकि वह उन्हें प्राप्त कर सके, और वह परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार उस गिरजे के लोगों का न्याय कर सके ।
143 और ऐसा हुआ कि अलमा ने जाकर उन लोगों का न्याय किया जो प्रभु के वचन के अनुसार अधर्म में फंस गए थे ।
144 और जो कोई अपने पापों से मन फिरा और उन्हें मान लिया, उस ने उन्हें गिरजे के लोगों में गिन लिया;
145 और जो अपके पापोंको मान न लेते, और अपके अधर्म से मन फिराते या, वे कलीसिया के लोगोंमें गिने न गए, और उनके नाम मिटा दिए गए।
146 और ऐसा हुआ कि अलमा ने गिरजे के सभी मामलों को नियंत्रित किया;
147 और वे फिर से मेल मिलाप करने लगे, और कलीसिया के कामों में बहुत उन्नति करते गए; परमेश्वर के सामने चौकस होकर चलना; बहुतों को ग्रहण करना, और बहुतों को बपतिस्मा देना।
148 और अब ये सब काम अलमा और उसके साथी मजदूरों ने किया, जो गिरजे के अधिकारी थे; सब प्रकार के परिश्रम से चलना, सब बातों में परमेश्वर के वचन की शिक्षा देना, सब प्रकार के क्लेश सहना; उन सभी के द्वारा सताया जा रहा है जो परमेश्वर के चर्च से संबंधित नहीं थे।
149 और उन्होंने अपने भाइयों को चेतावनी दी; और उन में से हर एक को परमेश्वर के वचन के अनुसार उसके पापों, वा पापोंके अनुसार जो उस ने किए थे, चिताया था; परमेश्वर को आज्ञा दी गई है कि वह बिना रुके प्रार्थना करे, और सब बातों में धन्यवाद करे।
150 और अब ऐसा हुआ कि अविश्वासियों द्वारा गिरजे पर किए गए उत्पीड़न इतने अधिक हो गए कि गिरजे ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, और मामले के संबंध में अपने नेताओं से शिकायत की; और उन्होंने अल्मा से शिकायत की।
151 और अलमा ने उनके राजा मुसायाह के सामने मामला रखा । और मुसायाह ने अपने याजकों से परामर्श किया।
152 और ऐसा हुआ कि राजा मुसायाह ने पूरे प्रदेश में चारों ओर एक घोषणा की, कि कोई भी अविश्वासी उन लोगों को सताएगा जो परमेश्वर के गिरजे से संबंधित हैं:
153 और सब कलीसियाओं में यह आज्ञा दी गई, कि उन में कोई सताहट न हो, और सब मनुष्योंके बीच समानता हो; कि वे न घमण्ड और न घमण्ड से उनकी शान्ति भंग करें;
154 कि हर एक अपके पड़ोसी को अपके ही समान समझे, और अपके ही हाथोंसे उनकी सहायता के लिथे परिश्रम करे;
155 हां, और उनके सब याजक और शिक्षक अपनी सहायता के लिए अपने हाथों से परिश्रम करें, सिवाय बीमारी या बहुत कम होने के; और परमेश्वर के अनुग्रह में उन्होंने ये काम बहुत किए।
156 और देश में फिर बहुत शान्ति होने लगी; और लोग बहुत अधिक होने लगे, और वे पृय्वी पर फैल गए;
157 वरन उत्तर और दक्खिन, पूरब और पच्छिम में देश के चारोंओर बड़े-बड़े नगर और गांव बनाते हैं।
158 और यहोवा ने उनकी सुधि ली, और उनका भला किया, और वे एक बड़ी और धनी प्रजा बन गए।
159 अविश्वासियों में मुसायाह के पुत्र गिने गए; और अलमा के पुत्रों में से एक की गिनती भी हुई, जिसका नाम उसके पिता के नाम पर अलमा रखा गया; तौभी वह बहुत दुष्ट और मूर्तिपूजक मनुष्य बन गया।
160 और वह बहुत बातें करने वाला व्यक्ति था, और लोगों से बहुत चापलूसी करता था: इसलिए उसने बहुत से लोगों को अपने अधर्म के कामों के अनुसार करने के लिए प्रेरित किया।
161 और वह परमेश्वर की कलीसिया की समृद्धि में एक बड़ी बाधा बन गया; लोगों के दिलों को चुरा रहा है, जिससे लोगों में बहुत मतभेद हो रहा है; परमेश्वर के शत्रु को उन पर अपनी शक्ति का प्रयोग करने का अवसर देना।
162 और अब ऐसा हुआ कि जब वह परमेश्वर की कलीसिया को नष्ट करने जा रहा था: क्योंकि वह गुप्त रूप से मुसायाह के पुत्रों के साथ, गिरजे को नष्ट करने, और प्रभु के लोगों को गुमराह करने के लिए, इसके विपरीत जाने के लिए गया था, परमेश्वर की आज्ञाएँ, या यहाँ तक कि राजा भी;
163 और जैसा मैं ने तुम से कहा, जब वे परमेश्वर से बलवा करने को जा रहे थे, तब यहोवा का दूत उन को दिखाई दिया; और वह मानो बादल पर से उतरा; और वह मानो गड़गड़ाहट का शब्द बोल रहा था, जिस से पृय्वी जिस पर वे खड़े थे कांप उठी;
164 और उनका अचम्भा इतना अधिक हुआ, कि वे भूमि पर गिर पड़े, और जो बातें उस ने उन से कही थीं, वे समझ न पाए।
165 तौभी वह फिर पुकारा, कि अलमा, उठ, और खड़ा हो, क्योंकि तू परमेश्वर की कलीसिया को क्यों सताता है?
166 क्योंकि यहोवा ने कहा है, यह मेरी कलीसिया है, और मैं इसे स्थिर करूंगा; और कोई वस्तु उसे उलट न सकेगी, केवल वह मेरी प्रजा का अपराध है।
167 और फिर से, स्वर्गदूत ने कहा, देखो, प्रभु ने अपने लोगों की प्रार्थनाएं सुनी हैं, और अपने सेवक अलमा की प्रार्थना भी सुनी है, जो तुम्हारा पिता है:
168 क्योंकि उस ने तेरे विषय में बड़े विश्वास से बिनती की है, कि तू सत्य की पहिचान में लाया जाए;
169 इसलिथे मैं परमेश्वर की सामर्थ और अधिकार के विषय में तुझे इसलिथे समझाने आया हूं, कि उसके दासोंकी प्रार्थना उनके विश्वास के अनुसार मानी जाए।
170 और अब देखो, क्या तुम परमेश्वर की शक्ति पर विवाद कर सकते हो ?
171 क्योंकि सुन, क्या मेरी वाणी से पृय्वी कांपती नहीं है?
172 और क्या तुम भी मुझे अपने साम्हने नहीं देख सकते?
173 और मुझे परमेश्वर की ओर से भेजा गया है।
174 अब मैं तुम से कहता हूं, जाओ, और हेलाम प्रदेश और नफी के प्रदेश में अपने पूर्वजों की बंधुआई को स्मरण करो; और स्मरण रखो कि उस ने उन के लिथे कितने बड़े बड़े काम किए हैं; क्योंकि वे बन्धन में थे, और उस ने उनको छुड़ाया है।
175 और अब मैं तुमसे कहता हूं, अलमा, जाओ, और गिरजे को फिर नष्ट करने का प्रयास न करो, ताकि उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया जा सके; और यह कि यदि तू अपके आप से त्यागा जाए, तब भी।
176 और अब ऐसा हुआ कि ये अंतिम शब्द थे जो स्वर्गदूत ने अलमा से कहे थे, और वह चला गया ।
177 और अब अलमा, और जो उसके साथ थे, वे फिर से धरती पर गिर पड़े, क्योंकि उनका आश्चर्य बहुत बड़ा था; क्योंकि उन्होंने अपक्की आंखोंसे यहोवा के दूत को देखा या; और उसका शब्द गर्जन के समान था, जिस से पृय्वी कांप उठी;
178 और वे जानते थे, कि परमेश्वर की सामर्थ के सिवा और कोई वस्तु नहीं, जो पृय्वी को कंपकंपा सके, और ऐसा कांप सके, मानो वह चकनाचूर हो जाए।
179 और अब अलमा का आश्चर्य इतना अधिक था, कि वह गूंगा हो गया, कि वह अपना मुंह नहीं खोल सका; हां, और वह कमजोर हो गया, यहां तक कि वह अपने हाथ भी नहीं हिला सका:
180 इसलिथे जो उसके संग थे, वह ले लिया गया, और जब तक वह अपके पिता के साम्हने रख दिया गया, तब तक वह लाचार रहा।
181 और जो कुछ उन से हुआ था, वे सब उसके पिता को सुना दिए; और उसका पिता आनन्दित हुआ, क्योंकि वह जानता था कि यह परमेश्वर की शक्ति है।
182 और उस ने यह ठहराया, कि एक भीड़ इकट्ठी की जाए, कि जो कुछ यहोवा ने उसके पुत्र और उसके संगियोंके लिथे किया है, उसके साक्षी हों।
183 और उस ने याजकोंको एक साथ इकट्ठा किया; और वे उपवास करने लगे, और अपने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करने लगे, कि वह अलमा का मुंह खोल दे, कि वह बोल सके;
184 और यह भी कि उसके अंगोंको बल प्राप्त हो, जिस से लोगोंकी आंखें खुल जाएं, कि वे परमेश्वर की भलाई और महिमा को देखें और जानें।
185 और ऐसा हुआ कि जब उन्होंने उपवास किया और दो दिन और दो रातों के अंतराल के लिए प्रार्थना की, अलमा के अंगों ने अपनी शक्ति प्राप्त की, और वह खड़ा हुआ और उनसे बात करना शुरू कर दिया, उन्हें अच्छे आराम की बोली लगाने के लिए:
186 क्योंकि उस ने कहा, मैं ने अपके पापोंसे मन फिरा, और यहोवा से छुड़ाया गया हूं; देख, मैं आत्मा से उत्पन्न हुआ हूँ।
187 और प्रभु ने मुझ से कहा, अचम्भा न करो कि सारी मानवजाति, हां, पुरूष, क्या स्त्रियां, सब जातियां, जातियां, भाषाएं और लोग, फिर से जन्म लें;
188 हां, परमेश्वर से जन्मा, अपनी शारीरिक और पतित अवस्था से बदल कर धार्मिकता की अवस्था में आ गया, और परमेश्वर से छुटकारा पाकर उसके बेटे और बेटियां बन गए; और इस प्रकार वे नए प्राणी बन जाते हैं; और जब तक वे ऐसा न करें, वे परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं हो सकते।
189 मैं तुम से कहता हूं, कि यदि ऐसा न हो, तो वे फेंक दिए जाएं; और यह मैं जानता हूं, क्योंकि मैं त्यागे जाने के समान था।
190 फिर भी, बहुत क्लेश से गुजरने के बाद, मृत्यु के निकट पश्चाताप करने के बाद, दया में भगवान ने मुझे हमेशा के लिए जलने से छीनने के लिए उपयुक्त देखा है, और मैं भगवान से पैदा हुआ हूं;
191 मेरा प्राण कड़वाहट के पित्त और अधर्म के बन्धन से छुड़ाया गया है।
192 मैं अन्धकारमय खाई में था; परन्तु अब मैं परमेश्वर का अद्भुत प्रकाश देखता हूं।
193 मेरा प्राण अनन्त पीड़ा से नाश हो गया; पर मैं तो छिन गया हूं, और मेरे प्राण को फिर दुख न होगा।
194 मैं ने अपके छुड़ानेवाले को ठुकरा दिया, और जो बातें हमारे पुरखाओं ने कही थीं, उन को मैं ने झुठला दिया;
195 पर अब इसलिये कि वे पहिचान लें, कि वह आएगा, और वह अपक्की सृष्टि के सब प्राणियोंको स्मरण करे;
196 वह अपने आप को सब पर प्रगट करेगा; वरन हर एक घुटना झुकेगा, और हर एक जीभ उसके साम्हने अंगीकार करेगी।
197 वरन अंतिम दिन जब सब मनुष्य उसका न्याय करने को खड़े होंगे, तब वे अंगीकार करेंगे कि वह परमेश्वर है;
198 तब वे अंगीकार करें, जो जगत में परमेश्वर के बिना रहते हैं, कि अनन्त दण्ड का न्याय उन पर है;
199 और वे कांप उठेंगे, और थरथराएंगे, और उसकी सब खोजी आंख के साम्हने सिकुड़ेंगे।
200 और अब ऐसा हुआ कि अलमा ने इसी समय से लोगों को, और जो लोग उस समय अलमा के साथ थे, उन्हें सिखाने के लिए शुरू किया था, जब स्वर्गदूत उन्हें दिखाई दिया था:
201 सारे देश में घूमकर जो बातें उन्होंने सुनीं और देखीं, उन को सब लोगोंके साम्हने प्रकाशित की, और बहुत क्लेश में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया, और अविश्वासियोंके द्वारा बहुत सताए गए, और उन में से बहुतोंके द्वारा मारे गए;
202 परन्तु इन सब के होते हुए भी, उन्होंने कलीसिया को बहुत दिलासा दिया, अपने विश्वास को दृढ़ किया, और परमेश्वर की आज्ञाओं को मानने के लिए उन्हें धीरज और बहुत कष्ट के साथ प्रोत्साहित किया।
203 और उन में से चार मुसायाह के पुत्र थे; और उनके नाम अम्मोन, हारून, ओम्नेर, और हिम्नी थे; मुसायाह के पुत्रों के नाम ये थे।
204 और उन्होंने जराहेमला के सारे देश में, और उन सब लोगोंके बीच जो राजा मुसायाह के राज्य में थे, कूच करके उन सब चोटों को जो उन्होंने कलीसिया को की थीं, ठीक करने का यत्न किया।
205 अपने सब पापों को मान लेना, और जो कुछ उन्होंने देखा था उसे प्रकाशित करना, और भविष्यद्वाणियों और शास्त्रों को उन सभों को समझाना जो उन्हें सुनना चाहते थे:
206 और इस प्रकार वे परमेश्वर के हाथों में उपकरण थे, सत्य के ज्ञान में बहुतों को लाने में, हां, अपने मुक्तिदाता के ज्ञान के लिए ।
207 और वे क्या ही धन्य हैं! क्योंकि उन्होंने मेल का प्रचार किया; उन्होंने अच्छाई की खुशखबरी प्रकाशित की; और उन्होंने लोगों को घोषणा की कि प्रभु राज्य करता है ।
मुसायाह, अध्याय 12
1 अब ऐसा हुआ कि जब मुसायाह के पुत्र इन सब कामों को कर चुके, तो वे अपने साथ एक छोटी संख्या लेकर अपने पिता, राजा के पास लौट गए, और उससे चाहा कि वह उन्हें प्रदान करे, ताकि वे कर सकें, उनके साथ जिन्हें उन्होंने चुना था, नफी के प्रदेश जाओ,
2 ताकि वे उन बातों का प्रचार कर सकें जो उन्होंने सुनी थीं, और ताकि वे अपने भाइयों, लमनाइयों को परमेश्वर का वचन सुना सकें, ताकि शायद वे उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के ज्ञान में ला सकें, और उनके अधर्म के बारे में उन्हें विश्वास दिला सकें। उनके पिता;
3 और शायद इसलिए कि वे नफाइयों के प्रति उनकी घृणा को दूर कर सकें, ताकि वे भी अपने परमेश्वर यहोवा में आनन्दित हों,
4 जिस से वे आपस में मित्रता करें, और उस सारे देश में जो उनके परमेश्वर यहोवा ने उन्हें दिया है, फिर विवाद न होने पाए।
5 अब वे चाहते थे कि प्रत्येक प्राणी के लिए उद्धार की घोषणा की जाए, क्योंकि वे सहन नहीं कर सकते थे कि कोई भी मनुष्य का प्राण नाश हो;
6 हां, यही विचार कि किसी भी आत्मा को अंतहीन पीड़ा सहनी चाहिए, ने ही उन्हें कांपने और कांपने का कारण बना दिया ।
7 और इस प्रकार प्रभु की आत्मा ने उन पर काम किया, क्योंकि वे पापियों में सबसे नीच थे ।
8 और यहोवा ने उन पर अपक्की अपक्की करूणा को उचित पाया; तौभी वे अपके अधर्म के कामोंके कारण मन के बहुत दुख सहे; और बहुत दुख उठाए, इस डर से कि वे सदा के लिए त्याग दिए जाएं।
9 और ऐसा हुआ कि उन्होंने कई दिनों तक अपने पिता से विनती की, ताकि वे नफी के प्रदेश जा सकें ।
10 और राजा मुसायाह ने जाकर यहोवा से पूछा, कि क्या वह अपने पुत्रों को लमनाइयों के बीच वचन का प्रचार करने के लिए जाने दे ।
11 और यहोवा ने मुसायाह से कहा, वे चढ़ाई करें, क्योंकि बहुत से लोग उनकी बातोंपर विश्वास करेंगे, और वे अनन्त जीवन पाएंगे; और मैं तुम्हारे पुत्रों को लमनाइयों के हाथ से छुड़ाऊंगा ।
12 और ऐसा हुआ कि मुसायाह ने अनुमति दी कि वे जा सकें, और उनके अनुरोध के अनुसार कर सकें;
13 और वे लमनाइयों के बीच वचन का प्रचार करने के लिए जंगल में गए, और मैं आगे उनकी कार्यवाही का लेखा-जोखा दूंगा ।
14 अब राजा मुसायाह के पास राज्य देने वाला कोई नहीं था, क्योंकि उसके पुत्रों में से कोई भी राज्य को स्वीकार करने वाला नहीं था;
15 इसलिए उसने उन अभिलेखों को लिया जो पीतल की पट्टियों, और नफी की पट्टियों पर खुदे हुए थे, और वे सभी चीजें जिन्हें उसने परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार रखा और संरक्षित किया था,
16 उन अभिलेखों का अनुवाद करने और लिखने के बाद जो सोने की पट्टियों पर थे, जो लिमही के लोगों द्वारा पाए गए थे, जो लिमही के हाथों उसे सौंपे गए थे;
17 और ऐसा उसने अपने लोगों की बड़ी चिंता के कारण किया, क्योंकि वे उन लोगों के बारे में जानना चाहते थे जो नष्ट हो गए थे ।
18 और अब उस ने उन दो पत्यरोंके द्वारा उनका अनुवाद किया, जो धनुष के दोनों किनारों पर बन्धे हुए थे।
19 ये बातें आदिकाल से तैयार की गईं, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी भाषाओं के अर्थ निकालने के लिथे दी गईं;
20 और वे यहोवा के हाथ से सुरक्षित और सुरक्षित रखे गए हैं, कि वह उन सब जन्तुओं पर, जो देश के अधिकारी हों, और अपक्की प्रजा के अधर्म और घिनौने कामोंका पता लगाए;
21 और जिसके पास ये वस्तुएं हैं, वह प्राचीन काल की रीति के अनुसार दर्शी कहलाता है।
22 अब जब मुसायाह ने इन अभिलेखों का अनुवाद पूरा कर लिया, तो देखो, उसने उन लोगों का विवरण दिया, जो नाश किए जाने के समय से लेकर बड़े गुम्मट के निर्माण के समय तक, जब यहोवा ने उनकी भाषा को भ्रमित किया था, तब तक का लेखा जोखा दिया। लोग;
23 और वे सारी पृथ्वी पर फैले हुए थे, हां, और उस समय से लेकर आदम की सृष्टि तक ।
24 अब इस वृत्तांत के कारण मुसायाह के लोगों का अत्याधिक शोक हुआ; हाँ, वे दुःख से भर गए थे;
25 तौभी उस ने उन्हें बहुत ज्ञान दिया, जिस से वे आनन्दित हुए।
26 और यह वृत्तान्त इसके बाद लिखा जाएगा; क्योंकि देखो, यह समीचीन है कि जो बातें इस वृत्तान्त में लिखी गई हैं, वे सब लोग जान लें।
मुसायाह, अध्याय 13
1 और अब, जैसा कि मैंने तुमसे कहा था, कि राजा मुसायाह के इन कामों को करने के बाद, उसने पीतल की पट्टियां, और जो कुछ उसने रखा था, उसे लेकर अलमा को दिया, जो अलमा का पुत्र था;
2 हां, सभी अभिलेखों, और व्याख्याकारों ने भी, और उन्हें उसे प्रदान किया, और उसे आज्ञा दी कि वह उन्हें रखे और सुरक्षित रखे, और लोगों का रिकॉर्ड भी रखे, उन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपे, जैसा कि वे लेही के यरुशलम से निकलने के समय से ही उसे सौंप दिया गया था।
3 और जब मुसायाह ने ऐसा किया, तब उस ने सारे देश में, और सब लोगोंमें से यह जानने की इच्छा की, कि उनका राजा कौन होगा, उनकी इच्छा जानने के लिथे सारे देश में भेज दिया।
4 और ऐसा हुआ कि लोगों की आवाज आई, कि हम चाहते हैं कि आपका पुत्र हारून हमारा राजा और हमारा शासक बने ।
5 अब हारून नफी के प्रदेश गया था, इसलिए राजा उसे राज्य नहीं दे सका; और न हारून उसके ऊपर राज्य ले लेगा;
6 न तो मुसायाह के वंश में से कोई राज्य अपने अधिकार में लेने को तैयार था, इसलिए राजा मुसायाह ने लोगों के बीच फिर से भेजा, हां, उसने लोगों के बीच एक लिखित संदेश भेजा ।
7 और जो वचन लिखे गए थे, वे थे ही थे; कह रही है: देखो, हे मेरी प्रजा, वा मेरे भाइयों, क्योंकि मैं तुम्हारा ऐसा ही आदर करता हूं; क्योंकि मैं चाहता हूं, कि जिस विषय पर तुम विचार करने के लिथे बुलाए गए हो उस पर तुम विचार करो; क्योंकि तुम चाहते हो कि एक राजा हो।
8 अब मैं तुम से कहता हूं, कि जिस का राज्य उचित है, उस ने इन्कार कर दिया है, और राज्य को अपने ऊपर नहीं लेगा।
9 और अब यदि उसके स्थान पर कोई और नियुक्त किया जाता है, तो देखो, मुझे डर है कि तुम्हारे बीच विवाद उत्पन्न होगा;
10 और कौन जानता है, कि मेरा पुत्र जिस का राज्य का है, वह क्या है, वह क्रोधित होकर इन लोगोंमें से एक को अपके पीछे कर ले, जो तुम्हारे बीच युद्ध और विवाद का कारण बने; जो बहुत लोहू बहाने, और यहोवा के मार्ग को बिगाड़ने का कारण होगा; हाँ, और बहुत से लोगों की आत्माओं को नष्ट कर दो।
11 अब मैं तुम से कहता हूं, कि हम बुद्धिमान होकर इन बातों पर विचार करें, क्योंकि यदि अपके पुत्र को उसके स्थान पर नियुक्त किया जाए, तो हमें न तो उसे नाश करने का अधिकार है, और न किसी को नाश करने का अधिकार।
12 और यदि मेरा पुत्र फिर अपके घमण्ड और व्यर्थ बातोंकी ओर फिरे, तो जो बातें उस ने कही थीं, वे स्मरण करके राज्य पर अपना अधिकार करें, जिस से वह और यह प्रजा भी बहुत पाप करे।
13 और अब हम बुद्धिमान हों, और इन बातोंकी बाट जोहते रहें, और वही करें जो इन लोगोंकी शान्ति के लिये हो।
14 इसलिथे अपके बचे हुए दिन मैं तेरा राजा रहूंगा;
15 तौभी हम अपनी व्यवस्या के अनुसार इन लोगोंका न्याय करने के लिथे न्यायियोंको नियुक्त करें, और हम इन प्रजा के कामोंको नये सिरे से व्यवस्थित करें, क्योंकि हम न्यायियोंको न्यायी ठहराएंगे, जो परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार इन लोगोंका न्याय करेंगे।
16 अब यह भला है कि मनुष्य की तुलना में मनुष्य का न्याय परमेश्वर के लिए किया जाए, क्योंकि परमेश्वर के न्याय हमेशा धर्मी होते हैं, परन्तु मनुष्य के न्याय हमेशा न्यायसंगत नहीं होते हैं;
17 इसलिए, यदि हो सकता है कि तुम्हारे राजा होने के लिए तुम्हारे पास धर्मी पुरुष हों, जो परमेश्वर की व्यवस्था को स्थापित करें, और उसकी आज्ञाओं के अनुसार इन लोगों का न्याय करें; हां, यदि तुम अपने राजाओं के लिये पुरूष रख सकते, जो मेरे पिता बिन्यामीन के समान इन लोगों के लिये करते, तो मैं तुम से कहता हूं, यदि ऐसा हमेशा होता, तो यह समीचीन होता कि तुम्हारे पास शासन करने के लिए हमेशा राजा हों। आपके ऊपर।
18 और मैं ने तुम को परमेश्वर की आज्ञाओं को सिखाने, और सारे देश में मेल मिलाप करने के लिथे सारी सामर्थ और सामर्थ से परिश्रम किया है,
19 कि न युद्ध, न विवाद, न चोरी, न लूट, न हत्या, और न किसी प्रकार का अधर्म;
20 और जिस किसी ने अधर्म किया है, उसे मैं ने उस अपराध के अनुसार जो उस ने किया है, उस व्यवस्या के अनुसार जो हमारे पुरखाओं ने हमें दी है, दण्ड दिया है।
21 अब मैं तुम से कहता हूं, कि सब मनुष्य धर्मी नहीं हैं, इसलिये यह उचित नहीं कि तुम पर राज्य करने के लिये कोई राजा या राजा हो।
22 क्योंकि देखो, एक दुष्ट राजा कितना अधर्म करता है! हाँ, और कितना बड़ा विनाश!
23 हां, राजा नूह, उसकी दुष्टता और घिनौने कामों को स्मरण करो; और अपके लोगोंकी दुष्टता और घिनौनी वस्तुएं भी।
24 देखो उन पर क्या भारी विनाश आया; और उनके अधर्म के कामों के कारण वे दासत्व में लाए गए।
25 और यदि यह उनके सर्व-बुद्धिमान सृष्टिकर्ता के अंतर्विरोध के लिए नहीं होता, और यह उनके सच्चे पश्चाताप के कारण होता, तो वे अपरिहार्य रूप से अब तक दासता में बने रहते ।
26 परन्तु देखो, उसने उन्हें छुड़ाया क्योंकि वे उसके साम्हने दीन थे; और क्योंकि उन्होंने उसकी दुहाई दी, उस ने उन्हें दासता से छुड़ाया;
27 और यहोवा सब बातोंमें मनुष्योंके बीच अपक्की सामर्य से काम करता है, और जो उस पर भरोसा रखते हैं उन पर दया का हाथ बढ़ाता है।
28 और देखो, अब मैं तुम से कहता हूं, कि तुम अधर्मी राजा को गद्दी से उतार नहीं सकते, केवल बहुत विवाद और बहुत लोहू बहाने के कारण।
29 क्योंकि देखो, अधर्म में उसके मित्र हैं, और वह अपके रक्षकोंको उसके पास रखता है; और जो उसके साम्हने धर्म से राज्य करते हैं, उनकी व्यवस्या तोड़ डालता है, और परमेश्वर की आज्ञाओं को अपने पांवोंसे रौंदता है;
30 और वह व्यवस्याएं बना कर अपक्की प्रजा के बीच भेजता है; हां, उसकी अपनी दुष्टता के अनुसार नियम; और जो कोई उसके नियमों का पालन नहीं करता है; वह नष्ट कर देता है;
31 और जो कोई उस से बलवा करेगा, वह उन से लड़ने के लिथे अपक्की सेना भेजेगा, और यदि हो सके तो उनको नाश करेगा;
32 और इस प्रकार एक अधर्मी राजा सब धार्मिकता के मार्ग को बिगाड़ देता है।
33 और अब देखो, मैं तुम से कहता हूं, यह उचित नहीं कि ऐसे घिनौने काम तुम पर आएं;
34 इसलिये हे न्यायियों, इन लोगों की वाणी के अनुसार तुम को चुन लो, कि तुम उन व्यवस्थाओं के अनुसार न्याय करो जो हमारे पूर्वजों ने तुम्हें दी हैं, और जो सही हैं, और जो उन्हें यहोवा के द्वारा दी गई हैं।
35 अब यह सामान्य नहीं है कि लोगों की आवाज सही के विपरीत कुछ भी चाहती है; लेकिन कम लोगों के लिए यह सामान्य बात है कि जो सही नहीं है उसकी इच्छा करें;
36 इसलिथे तुम इस बात को मानना, और अपक्की अपक्की व्यवस्या को प्रजा के मत के अनुसार करना अपक्की व्यवस्था करना।
37 और यदि ऐसा समय आए, कि प्रजा की वाणी अधर्म को चुन ले, तो वह समय है जब परमेश्वर का न्याय तुम पर पड़ेगा;
38 हां, ठीक उसी समय वह बड़े विनाश के साथ तुझ से भेंट करेगा, जैसा वह अब तक इस प्रदेश में गया है ।
39 और अब यदि तुम्हारे पास न्यायी हों, और जो व्यवस्था दी गई है, उसके अनुसार वे तुम्हारा न्याय न करें, तो तुम उच्च न्यायी के द्वारा उनका न्याय करा सकते हो;
40 यदि तुम्हारे उच्च न्यायी धर्मी न्याय का न्याय न करें, तो अपके निचले न्यायियोंमें से कुछ को इकट्ठा करना, और वे लोगोंकी आवाज के अनुसार तुम्हारे ऊंचे न्यायियोंका न्याय करें।
41 और मैं तुझे आज्ञा देता हूं, कि यहोवा का भय मानकर ये काम करो;
42 और मैं तुझे आज्ञा देता हूं, कि ये काम करो, और तुम्हारा कोई राजा न होगा; कि यदि ये लोग पाप और अधर्म के काम करें, तो अपके ही सिरोंपर उन्हें उत्तर दिया जाएगा।
43 क्योंकि देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि बहुत से लोगों के पाप उनके राजाओं के अधर्म के कामों के कारण हुए हैं; इस कारण उनके अधर्म के कामोंका उत्तर उनके राजाओं के सिर पर मिलता है।
44 और अब मैं चाहता हूं कि इस देश में, विशेष रूप से मेरे लोगों के बीच यह असमानता फिर न रहे;
45 परन्तु मैं चाहता हूं, कि यह देश स्वाधीनता का देश हो, और जब तक यहोवा ठीक समझे, तब तक हर एक मनुष्य अपके अधिकारों और सुविधाओंका उपभोग करे, कि हम जीवित रहें, और इस देश के अधिकारी हों;
46 हां, जब तक हमारे वंश का कोई भाग पूरे प्रदेश में बना रहेगा ।
47 और राजा मुसायाह ने उन्हें और भी बहुत सी बातें लिखीं, और धर्मी राजा की सारी परीक्षाएं और विपत्तियां उन पर प्रगट कीं;
48 वरन अपक्की प्रजा के लिथे सब क्लेश, और अपके राजा के लिथे प्रजा का सब कुड़कुड़ाना; और उस ने उन को सब कुछ समझाया।
49 और उस ने उन से कहा, कि ये बातें नहीं होनी चाहिए; परन्तु यह कि वह बोझ सब लोगों पर आ पड़े, कि हर एक मनुष्य अपके अपके भाग का भार उठाए।
50 और उस ने उन पर शासन करने के लिए एक अधर्मी राजा के द्वारा, उन सभी विपत्तियों को भी प्रकट किया जिनमें उन्होंने परिश्रम किया था;
51 हां, उसके सब अधर्म और घिनौने काम, और सब युद्ध, और विवाद, और रक्तपात, और चोरी, और लूट, और व्यभिचार, और सब प्रकार के अधर्म, जिनकी गिनती नहीं की जा सकती,
52 उन से कहना कि ये बातें नहीं होनी चाहिए; कि वे स्पष्ट रूप से परमेश्वर की आज्ञाओं के विरुद्ध थे।
53 और अब ऐसा हुआ, जब राजा मुसायाह ने इन बातों को लोगों के बीच भेजा, तब वे उसकी बातों की सच्चाई से आश्वस्त हो गए;
54 इसलिथे उन्होंने राजा के लिथे अपक्की अभिलाषाओं को त्याग दिया, और इस बात की अति चिन्ता करने लगे, कि सारे देश में सब को समान अवसर मिले;
55 हां, और प्रत्येक व्यक्ति ने अपने स्वयं के पापों के लिए उत्तर देने की इच्छा व्यक्त की ।
56 इसलिए ऐसा हुआ कि वे पूरे प्रदेश में देहों के रूप में इकट्ठे हुए, कि उनका न्यायी कौन होना चाहिए, इस विषय में अपनी आवाज उठाने के लिए, कि उन्हें दी गई व्यवस्था के अनुसार उनका न्याय करें;
57 और जो स्वतंत्रता उन्हें दी गई थी, उसके कारण वे बहुत आनन्दित हुए ।
58 और वे मुसायाह से प्रेम करने लगे; हां, उन्होंने उसे किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक सम्मान दिया:
59 क्योंकि उन्होंने उसे एक अत्याचारी के रूप में नहीं देखा, जो लाभ की तलाश में था, हां, उस धन के लिए जो आत्मा को भ्रष्ट करता है,
60 क्योंकि उस ने न तो उन से धन लिया, और न लोहू बहाने से प्रसन्न हुआ; परन्तु उसने देश में शान्ति स्थापित की थी, और उसने अपनी प्रजा को यह अनुमति दी थी कि वे सब प्रकार के दासत्व से छुटकारा पाएं;
61 इसलिए उन्होंने उसका आदर किया, हां, अत्याधिक, अथाह ।
62 और ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने ऊपर शासन करने के लिए, या व्यवस्था के अनुसार उनका न्याय करने के लिए न्यायियों को नियुक्त किया; और यह उन्होंने सारे देश में किया।
63 और ऐसा हुआ कि अलमा को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया; वह महायाजक भी है; उसके पिता ने उसे पद प्रदान किया, और उसे चर्च के सभी मामलों से संबंधित प्रभार दिया था।
64 और अब ऐसा हुआ कि अलमा प्रभु के मार्गों पर चला, और उसने अपनी आज्ञाओं का पालन किया, और उसने धार्मिक न्याय का न्याय किया; और उस देश में नित्य शान्ति रहती थी;
65 और इस प्रकार जराहेमला के सारे प्रदेश में, नफाई कहे जाने वाले लोगों के बीच न्यायियों का शासन शुरू हुआ: और अलमा पहला और मुख्य न्यायी था ।
66 और अब ऐसा हुआ कि परमेश्वर की आज्ञाओं को पूरा करने के लिए जीवित रहने के बाद, उसके पिता बयासी वर्ष के थे, और मर गए ।
67 और ऐसा हुआ कि मुसायाह भी मर गया, अपने शासन के तैंतीस वर्ष में, जो कि उनसठ वर्ष का था, और लेही के यरूशलेम से निकलने के समय से लेकर कुल मिलाकर पांच सौ नौ वर्ष हो गए;
68 और इस प्रकार नफी के लोगों पर राजाओं के शासन का अंत हुआ; और इस प्रकार अलमा के दिनों का अंत हुआ, जो उनके गिरजे का संस्थापक था।
शास्त्र पुस्तकालय: मॉर्मन की किताब
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