याकूब की किताब

याकूब की किताब

नफीस का भाई

अध्याय 1

उसके भाइयों को उसके उपदेश के शब्द। वह एक ऐसे व्यक्ति को भ्रमित करता है जो मसीह के सिद्धांत को उखाड़ फेंकने का प्रयास करता है। नफी के लोगों के इतिहास के बारे में कुछ शब्द। 1 क्योंकि देखो, ऐसा हुआ कि लेही के यरूशलेम को छोड़ने के समय से पचपन वर्ष बीत चुके थे; इसलिए, नफी ने मुझे, याकूब, इन छोटी पट्टियों के संबंध में एक आज्ञा दी, जिस पर ये चीजें खुदी हुई हैं ।
2 और हे याकूब, उस ने मुझे आज्ञा दी, कि मैं इन पट्टियों पर लिखूं, कि उन में से कुछ जो मैं ने अनमोल समझी हैं, कि इन लोगोंके इतिहास के विषय में, जिन्हें मैं मामूली समझूं, स्पर्श न करूं, जो नफी के लोग कहलाते हैं।
3 क्योंकि उसने कहा था कि उसके लोगों का इतिहास उसकी दूसरी पट्टियों पर खुदा हुआ होना चाहिए, और मैं इन पट्टियों को सुरक्षित रखूंगा, और पीढ़ी से पीढ़ी तक उन्हें अपने वंश को सौंप दूंगा।
4 और यदि कोई ऐसा उपदेश हो जो पवित्र हो, या कोई ऐसा रहस्योद्घाटन हो जो महान हो, या भविष्यद्वाणी कर रहा हो, कि मैं इन पट्टियों पर उनके सिरों को खुदवाऊं, और जितना हो सके, उन्हें मसीह के लिए, और इस कारण से छूऊं हमारे लोगों की:
5 क्‍योंकि विश्‍वास और बड़ी चिन्ता के कारण, हमारे लोगोंके विषय में हम पर सचमुच प्रगट हो गया था, कि उन पर क्या घटना है।
6 और हमारे पास बहुत से रहस्योद्घाटन, और बहुत भविष्यद्वाणी की आत्मा भी थी; इसलिए, हम मसीह और उसके राज्य के बारे में जानते थे, जो आना चाहिए।
7 इसलिए, हमने अपने लोगों के बीच परिश्रम किया, ताकि हम उन्हें मसीह के पास आने के लिए मना सकें, और परमेश्वर की भलाई में भागी हो सकें, ताकि वे उसके विश्राम में प्रवेश कर सकें, ऐसा न हो कि वह किसी भी तरह से उसके क्रोध की शपथ खाए कि वे प्रवेश न करें में, जैसे प्रलोभन के दिनों में उत्तेजना में, जबकि इस्राएल के बच्चे जंगल में थे।
8 इसलिए, हम परमेश्वर से चाहते हैं कि हम सभी लोगों को समझा सकें कि वे परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह न करें, और उसे क्रोधित करें, परन्तु सभी मनुष्य मसीह पर विश्वास करें, और उसकी मृत्यु को देखें, और उसके क्रूस को भुगतें, और उसकी लज्जा को सहन करें। दुनिया; इसलिए, मैं, याकूब, अपने भाई नफी की आज्ञा को पूरा करने का दायित्व मुझ पर लेता हूं ।
9 अब नफी बूढ़ा होने लगा, और उसने देखा कि उसे शीघ्र ही मरना होगा; इसलिए, उसने राजाओं के शासन के अनुसार अब एक व्यक्ति को राजा और उसके लोगों पर शासक होने के लिए अभिषेक किया ।
10 वे लोग जो नफी से अत्यधिक प्रेम करते थे, वह उनके लिए एक महान रक्षक रहा, उनकी रक्षा में लाबान की तलवार चलाई, और उनके कल्याण के लिए अपने पूरे जीवन में परिश्रम किया; इसलिए, लोग उसके नाम को याद रखना चाहते थे।
11 और जो उसके स्थान पर शासन करेगा, उसे राजाओं के शासन के अनुसार लोगों द्वारा बुलाया गया, दूसरा नफी, तीसरा नफी, आदि; और इस प्रकार वे लोगों द्वारा बुलाए गए, वे चाहे जिस नाम से हों।
12 और ऐसा हुआ कि नफी की मृत्यु हो गई ।
13 अब जो लोग लमनाई नहीं थे, वे नफाई थे; फिर भी, उन्हें नफाई, जैकोबाइट, जोसेफी, जोरामाई, लमनाई, लमूएली, और इश्माएली कहा जाता था ।
14 परन्तु मैं, याकूब, आगे से उन्हें इन नामों से अलग नहीं करूंगा, परन्तु मैं उन्हें लमनाई कहूंगा, जो नफी के लोगों को नष्ट करना चाहते हैं; और जो नफी के मित्र हैं, मैं राजाओं के शासन के अनुसार नफाइयों, या नफी के लोगों को बुलाऊंगा ।
15 और अब ऐसा हुआ कि दूसरे राजा के शासन के अधीन नफी के लोगों ने अपने हृदयों में कठोर होना शुरू कर दिया, और अपने आप को कुछ हद तक दुष्ट कार्यों में शामिल कर लिया, जैसे कि पुराने समय के दाऊद की तरह, कई पत्नियों और रखैलियों की इच्छा रखते थे और उसका पुत्र सुलैमान भी,
16 हां, और वे सोने और चान्दी की भी बहुत खोज करने लगे, और कुछ घमण्ड से ऊंचे उठे;
17 इसलिए, मैं, याकूब, ने उन्हें ये वचन दिए थे जैसा कि मैंने उन्हें मंदिर में सिखाया था, पहले प्रभु से अपना काम प्राप्त कर लिया था ।
18 क्योंकि मैं, याकूब और मेरा भाई यूसुफ, नफी के द्वारा इन लोगों के याजक और शिक्षक नियुक्त किए गए थे ।
19 और यदि हमने उन्हें परमेश्वर का वचन पूरी लगन से नहीं सिखाया, तो हमने लोगों के पापों का उत्तर अपने सिर पर लेते हुए, जिम्मेदारी लेते हुए, प्रभु के प्रति अपने पद की महिमा की;
20 इसलिए, हमारे पराक्रम से परिश्रम करने से, उनका लोहू हमारे वस्त्रों पर न पड़े; नहीं तो उनका लोहू हमारे वस्त्रों पर पड़ जाता, और हम अन्तिम दिन में निष्कलंक न ठहरते।

 

याकूब ने नफाइयों को चेतावनी दी

अध्याय दो

1 वे शब्द जो नफी के भाई याकूब ने नफी की मृत्यु के बाद नफी के लोगों से कहे थे:
2 अब, हे मेरे प्रिय भाइयों, मैं, याकूब, उस दायित्व के अनुसार जो मैं परमेश्वर के अधीन हूं, कि मैं अपने पद को संयम के साथ बढ़ाऊं, और कि मैं अपने पापों से अपने वस्त्रों को छुड़ा सकूं, मैं आज के दिन मंदिर में आता हूं, कि मैं तुम्हें परमेश्वर का वचन सुना सकता हूं;
3 और तुम तुम भी जानते हो, कि मैं अब तक अपके बुलाए हुए काम को पूरा करने में परिश्रमी रहा हूं; परन्तु मैं आज तक तुम्हारी आत्माओं के कल्याण के लिए बहुत अधिक इच्छा और चिंता से तौला गया हूं, जितना कि मैं अब तक रहा हूं।
4 क्योंकि देखो, तुम अब तक प्रभु के उस वचन के प्रति आज्ञाकारी रहे हो, जो मैंने तुम्हें दिया है ।
5 परन्तु देखो, मेरी बात सुनो, और जान लो कि स्वर्ग और पृथ्वी के सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता की सहायता से, मैं तुम्हें तुम्हारे विचारों के बारे में बता सकता हूं, कि तुम कैसे पाप में परिश्रम करने लगे हो, जिसे पाप बहुत घिनौना लगता है मैं, हां, और परमेश्वर के लिए घृणित हूं।
6 हां, यह मेरे मन को शोकित करता है, और अपने कर्ता के साम्हने मुझे लज्जित करता है, कि मैं तुम्हारे मन की दुष्टता के विषय में तुम को गवाही दूं;
7 और साथ ही, मुझे इस बात का भी दुख है कि मुझे तुम्हारे विषय में, तुम्हारी पत्नियों और तुम्हारे बच्चों के साम्हने बोलने का इतना साहस दिखाना चाहिए, जिनकी बहुत सी भावनाएँ परमेश्वर के सामने बहुत कोमल, और पवित्र, और नाजुक हैं, जो परमेश्वर को भाती हैं;
8 और मुझे लगता है कि वे परमेश्वर का मनभावन वचन सुनने के लिए यहां आए हैं, हां, वह वचन जो घायलों को चंगा करता है ।
9 इसलिए, यह मेरी आत्मा पर बोझ है, कि मुझे परमेश्वर की ओर से मिली सख्त आज्ञा के कारण विवश होना चाहिए, अपने अपराधों के अनुसार, सांत्वना देने और चंगा करने के बजाय, जो पहले से ही घायल हैं, उनके घावों को बढ़ाने के लिए तुम्हें चेतावनी देना। उनके घाव;
10 और जो घायल नहीं हुए हैं, वे परमेश्वर के मनभावने वचन का आनन्द लेने के बदले उनके प्राणों को बेधने, और उनके कोमल मनों को घायल करने के लिए खंजर रखे हैं।
11 परन्तु इस कार्य की महानता के होते हुए भी, मुझे परमेश्वर की कठोर आज्ञाओं के अनुसार करना चाहिए, और तुम्हारी दुष्टता और घिनौने कामों के विषय में, शुद्ध मन के लोगों की उपस्थिति में, और टूटे हुए दिलों के सामने, और परमेश्वर की नज़र में तुम्हें बताना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की भेदी आँख।
12 इसलिए, परमेश्वर के वचन की स्पष्टता के अनुसार, मुझे तुम्हें सच बताना चाहिए ।
13 क्योंकि देखो, जैसा मैं ने यहोवा से पूछा, यह वचन मेरे पास पहुंचा, कि हे याकूब, तू अगले दिन मन्दिर में जा, और जो वचन मैं तुझे दूंगा, उसका इन लोगोंको बता देना।
14 और अब देखो, मेरे भाइयों, यह वह वचन है जो मैं तुम से कहता हूं, कि तुम में से बहुतों ने इस देश में, जो एक देश है, सोना, चान्दी, और सब प्रकार के बहुमूल्य अयस्कों की खोज की है। तुझ से और तेरे वंश से की हुई प्रतिज्ञा बहुत अधिक है।
15 और भविष्‍य के हाथ से तुम पर अति प्रसन्‍नता हुई है, कि तुम ने बहुत धन पाया है;
16 और क्योंकि तुम में से कितनों ने अपने भाइयों से अधिक बहुतायत से प्राप्त किया है, तुम अपने ह्रृदय के घमण्ड में ऊंचे उठे हुए हो, और अपने महंगे वस्त्रों के कारण हठीले और सिर ऊंचे पहिने हुए, और अपने भाइयों को सताते हो, क्योंकि तुम समझते हो कि तुम उनसे बेहतर हो।
17 और अब मेरे भाइयों, क्या तुम समझते हो कि परमेश्वर इस बात में तुम्हें धर्मी ठहराता है? देख, मैं तुझ से कहता हूं, नहीं।
18 परन्तु वह तुम्हें दोषी ठहराता है, और यदि तुम इन बातोंमें लगे रहो, तो उसके न्याय शीघ्र तुम्हारे पास आ जाएंगे।
19 भला होता कि वह तुझे दिखाता, कि वह तुझे बेध सकता है, और अपनी आंख की एक ही दृष्टि से तुझे धूल चटा सकता है।
20 भला होता कि वह तुझे इस अधर्म और घिनौने काम से छुड़ाता।
21 और भला होता, कि तुम उसकी आज्ञाओं का वचन सुनते, और तुम्हारे मन का यह घमण्ड तुम्हारे प्राणोंको नाश न होने पाए।
22 अपके भाइयोंको अपके समान समझो, और सब को पहिचान लो, और अपक्की सम्पत्ति से मुक्त रहो, कि वे भी तुम्हारे समान धनी हो जाएं।
23 परन्तु इससे पहले कि तुम धन की खोज करो, परमेश्वर के राज्य की खोज करो।
24 और जब तुम मसीह में आशा पा लो, तब यदि तुम उन्हें ढूंढ़ोगे, तो तुम धन पाओगे; और भलाई करने के लिथे तुम उन्हें ढूंढ़ोगे; नंगों को पहिनना, और भूखे को खाना खिलाना, और बन्दी को छुड़ाना, और रोगी और दीन को राहत देना।
25 और अब मेरे भाइयों, मैं ने तुम से घमण्ड के विषय में बातें की हैं; और तुम में से जिन्होंने अपके पड़ोसी को दु:ख दिया, और सताया, क्योंकि जो कुछ परमेश्वर ने तुम्हें दिया है उस पर तुम अपने मन में घमण्ड करते थे, उस के विषय में क्या कहते हो?
26 क्या तुम नहीं समझते, कि जिस ने सब प्राणियोंकी सृष्टि की, उस के लिथे ऐसी बातें घृणित हैं?
27 और उसकी दृष्टि में एक प्राणी दूसरे के समान अनमोल है।
28 और सब मांस मिट्टी का है; और उसी के लिये उस ने उनकी सृष्टि की है, कि वे उसकी आज्ञाओं को मानें, और उसकी महिमा युगानुयुग करें।
29 और अब मैं इस घमण्ड के विषय में तुमसे बात करना समाप्त करता हूं ।
30 और यदि ऐसा न होता कि मैं तुम से घोर अपराध के विषय में बातें करूं, तो तुम्हारे कारण मेरा हृदय अति आनन्दित होता ।
31 परन्‍तु परमेश्वर का वचन मुझे तेरे घोर अपराधों के कारण जलाता है।
32 क्योंकि देखो, यहोवा योंकहता है, ये लोग अधर्म में लिप्त होने लगे हैं; वे पवित्र शास्त्र को नहीं समझते, क्योंकि जो बातें दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान के विषय में लिखी गई थीं, उनके कारण वे व्यभिचार करने के लिथे अपने को क्षमा करना चाहते हैं।
33 देखो, दाऊद और सुलैमान की सचमुच बहुत सी स्त्रियां और रखेलियां थीं, जो मेरे साम्हने घृणित थीं, यहोवा की यही वाणी है,
34 इसलिए, यहोवा यों कहता है, मैं ने अपनी भुजा के बल से इन लोगोंको यरूशलेम के प्रदेश से निकाल लिया है, कि मैं यूसुफ की कमर के फल में से एक धर्मी डाली को अपके लिथे उठाऊं ।
35 इसलिए, मैं, प्रभु परमेश्वर, यह दुख नहीं उठाऊंगा कि ये लोग उनके साथ प्राचीन काल से व्यवहार करें ।
36 इसलिथे हे मेरे भाइयो, मेरी सुनो, और यहोवा का वचन सुनो: क्योंकि तुम में से कोई ऐसा न हो जिस की एक ही पत्नी हो; और रखेलियां उसके पास न रहे; क्योंकि मैं यहोवा परमेश्वर, स्त्रियोंकी पवित्रता से प्रसन्न रहता हूं।
37 और व्यभिचार मेरे साम्हने घृणित है: सेनाओं का यहोवा योंकहता है।
38 इसलिए, यह लोग मेरी आज्ञाओं को मानेंगे, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है, या उनके कारण देश शापित हो जाएगा ।
39 क्योंकि यदि मैं, सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, मेरे लिथे वंश खड़ा करूंगा, तो मैं अपक्की प्रजा को आज्ञा दूंगा, नहीं तो वे इन बातोंको मानेंगे।
40 क्योंकि देखो, मैं यहोवा ने यरूशलेम के देश में अपक्की प्रजा की बेटियोंका शोक देखा है, और शोक को सुना है; हां, और मेरे लोगों के सारे देशों में, अपने पतियों की दुष्टता और घृणित कार्यों के कारण ।
41 और सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, कि मैं न सहूंगा, कि इन प्रजा की गोरी बेटियोंकी पुकार, जिन्हें मैं यरूशलेम के देश से निकाल ले आया हूं, वे मेरी प्रजा के लोगोंके साम्हने उठेंगी, यह कहता है, मेजबानों के भगवान;
42 क्योंकि वे मेरी प्रजा की पुत्रियोंको उनकी कोमलता के कारण बन्धुआई में न ले जाने पाएंगे, वरन मैं उन पर घोर श्राप लूंगा, यहां तक कि उनका विनाश भी हो जाएगा;
43 क्योंकि वे उनके समान व्यभिचार न करें, जैसे वे प्राचीनकाल से करते थे, सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।
44 और अब देखो, मेरे भाइयों, तुम जानते हो कि ये आज्ञाएं हमारे पिता लेही को दी गई थीं; इसलिए, आप उन्हें पहले से जानते हैं; और तुम पर बड़ी दण्ड की आज्ञा हुई है: क्योंकि तुम ने वे काम किए हैं जो तुम्हें नहीं करने चाहिए थे।
45 देखो, तुमने हमारे भाइयों, लमनाइयों से भी बड़ा अधर्म किया है ।
46 तुम ने अपनी कोमल पत्नियों के मन को तोड़ा, और अपक्की सन्तान का हियाव खो दिया है, क्योंकि तुम ने उन के साम्हने अपने बुरे उदाहरण दिए थे; और उनके मन की सिसकियां तुम्हारे विरुद्ध परमेश्वर के पास चढ़ जाती हैं।
47 और परमेश्वर के वचन की कठोरता के कारण, जो तुम पर उतरता है, बहुत से हृदय मर गए, और गहरे घाव से छिद गए।
48 परन्तु देखो, मैं, याकूब, तुम से जो मन के शुद्ध हैं बातें करूंगा ।
49 मन की दृढ़ता के साथ परमेश्वर की ओर देखो, और उस से बड़े विश्वास से प्रार्थना करो, और वह तुम्हारे दु:खों में तुम्हें शान्ति देगा, और वह तुम्हारा मुकद्दमा लड़ेगा, और जो तुम्हारे विनाश के इच्छुक हैं उनका न्याय करेगा।
50 हे सब मन के पवित्र लोगों, सिर उठाकर परमेश्वर का मनभावन वचन ग्रहण करो, और उसके प्रेम का आनन्द मनाओ; क्‍योंकि यदि तेरा मन सदा स्थिर रहे, तो हो सकता है।
51 परन्तु हाय, तुम पर जो मन के शुद्ध नहीं हैं; जो आज के दिन परमेश्वर के साम्हने मैले हैं; क्योंकि जब तक तुम पछताओगे, देश तुम्हारे कारण शापित है;
52 और लमनाइयों जो तुम्हारे समान गंदे नहीं हैं, (फिर भी, वे घोर श्राप के कारण शापित हैं,) तुम्हें विनाश तक कोड़े मारेंगे ।
53 और वह समय शीघ्र आता है, कि यदि तुम मन न फिराओ तो वे तुम्हारे निज भाग के देश के अधिकारी होंगे, और यहोवा परमेश्वर धर्मियोंको तुम्हारे बीच में से निकाल ले जाएगा।
54 देखो, लमनाइयों, तुम्हारे भाई, जिनसे तुम घृणा करते हो, उनकी गंदगी और उनकी खाल पर आए श्रापों के कारण, तुम से अधिक धर्मी हैं;
55 क्योंकि वे यहोवा की उन आज्ञाओं को नहीं भूले हैं, जो हमारे पुरखाओं को दी गई थीं, कि एक ही पत्नी हों, और रखैलें न हों; और उनके बीच व्यभिचार नहीं होना चाहिए।
56 और अब वे इस आज्ञा का पालन करते हैं; इसलिए इस आज्ञा का पालन करने के कारण, प्रभु परमेश्वर उन्हें नष्ट नहीं करेगा, परन्तु उन पर दया करेगा; और एक दिन वे धन्य प्रजा ठहरेंगे।
57 देखो, उनके पति अपनी पत्नियों से प्रीति रखते हैं, और उनकी पत्नियां अपने पति से प्रेम रखती हैं, और उनके पति और उनकी पत्नियां अपने बच्चों से प्रेम रखते हैं;
58 और उनका अविश्वास और तुझ से बैर उनके पुरखाओं के अधर्म के कारण है; इसलिए, अपने महान निर्माता की दृष्टि में आप उनसे कितने बेहतर हैं?
59 हे मेरे भाइयों, मुझे डर है, कि जब तक तुम अपने पापों से पश्चाताप न करोगे, तब जब तुम उनके साथ परमेश्वर के सिंहासन के सामने लाये जाएँगे, तब उनकी खाल तुम्हारी त्वचा से अधिक सफेद हो जाएगी।
60 इसलिथे मैं तुझे आज्ञा देता हूं, जो परमेश्वर का वचन है, कि उनकी खालोंके अन्धकार के कारण फिर उनका निन्दा न करना; और उनकी गन्दगी के कारण उन से निन्दा न करना;
61 परन्तु तुम अपक्की अपक्की मलिनता को स्मरण रखना, और स्मरण रखना, कि उनकी मलिनता उनके पुरखाओं के कारण आई है।
62 इसलिए, तुम अपने बच्चों को याद रखना, कि तुमने उनके सामने जो उदाहरण रखा है, उसके कारण तुमने उनका दिल कैसे दुखाया है;
63 और यह भी स्मरण रखना कि तुम अपक्की मलिनता के कारण अपने बच्चों को नाश कर सकते हो, और उनके पाप अंतिम दिन तुम्हारे सिर पर ढेर किए जाएंगे ।
64 हे मेरे भाइयों, मेरी बात पर कान लगा; अपनी आत्मा की क्षमताओं को जगाओ; अपने आप को हिलाओ, कि तुम मृत्यु की नींद से जागोगे;
65 और अपने आप को अधोलोक की पीड़ा से छुड़ाओ, कि तुम शैतान के दूत न बन जाओ, कि तुम उस आग और गंधक की झील में डाल दिए जाओ, जो दूसरी मृत्यु है।
66 और अब मैंने, याकूब ने, नफी के लोगों से उन्हें व्यभिचार, और कामुकता, और हर प्रकार के पाप के विरुद्ध चेतावनी देते हुए, उनके भयानक परिणामों के बारे में बताते हुए और भी बहुत सी बातें कीं;
67 और इन पट्टियों पर इन लोगों की कार्यवाही का सौवां भाग, जो अब असंख्य होने लगा था, लिखा नहीं जा सकता;
68 परन्तु उनकी बहुत सी बातें बड़ी पट्टियों पर, और उनके युद्धों, और उनके वादों, और उनके राजाओं के राज्य पर लिखी हुई हैं।
69 ये पट्टियां याकूब की पट्टियां कहलाती हैं; और वे नफी के हाथों से बनाए गए थे ।
70 और मैं इन बातों को समाप्त करता हूं।

 

अध्याय 3

1 अब देखो, ऐसा हुआ है कि मैं, याकूब, अपने लोगों के लिए वचन में बहुत सेवा कर चुका हूं, (और मैं अपने शब्दों को केवल कुछ ही लिख सकता हूं, क्योंकि हमारे शब्दों को पट्टियों पर उकेरने में कठिनाई होती है, ) और हम जानते हैं कि जो चीजें हम पट्टियों पर लिखते हैं वह बनी रहे;
2 परन्तु जो कुछ हम पटलों पर लिखे किसी भी वस्तु पर लिखें, वह नाश और मिट जाए; लेकिन हम पट्टियों पर कुछ शब्द लिख सकते हैं, जो हमारे बच्चों, और हमारे प्यारे भाइयों को, हमारे बारे में या उनके पिता के बारे में थोड़ा सा ज्ञान देंगे।
3 अब हम इस बात से आनन्दित होते हैं; और हम इन शब्दों को पट्टियों पर उकेरने के लिए परिश्रम करते हैं, यह आशा करते हुए कि हमारे प्यारे भाई, और हमारे बच्चे, उन्हें कृतज्ञ हृदय से ग्रहण करेंगे, और उन पर दृष्टि करेंगे, कि वे आनन्द के साथ सीखें, न कि दुःख के साथ, न ही उनके विषय में तिरस्कार के साथ। पहले माता-पिता:
4 क्योंकि हम ने ये बातें इसलिये लिखी हैं, कि वे जानें, कि हम मसीह को जानते थे, और उसके आने से कई सौ वर्ष पहिले हमें उसकी महिमा की आशा थी, और केवल हम ही नहीं, उस की आशा रखते थे महिमा, वरन वे सब पवित्र भविष्यद्वक्ता जो हम से पहिले थे।
5 देखो, उन्होंने मसीह पर विश्वास किया, और उसके नाम से पिता को दण्डवत किया; और इसके अलावा, हम उसके नाम में पिता की पूजा करते हैं।
6 और इसी उद्देश्य से हम मूसा की व्यवस्था को मानते हैं, जो उस की ओर हमारा ध्यान करती है; और उनके निमित्त धर्म के लिथे हमारे लिथे पवित्र ठहराया गया है, जैसा जंगल में इब्राहीम के लिथे ठहराया गया, कि अपके पुत्र इसहाक को, जो परमेश्वर और उसके एकलौते का प्रतिरूप है, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना है। पैदा हुआ बेटा।
7 इसलिए, हम भविष्यद्वक्ताओं की खोज करते हैं; और हमारे पास बहुत से रहस्योद्घाटन, और भविष्यवाणी की आत्मा है, और इन सभी गवाहों के होने पर, हम एक आशा प्राप्त करते हैं, और हमारा विश्वास इतना दृढ़ हो जाता है कि हम वास्तव में यीशु के नाम पर आज्ञा दे सकते हैं, और वही पेड़ हमारी आज्ञा मानते हैं, या पहाड़, या समुद्र की लहरें;
8 तौभी, प्रभु परमेश्वर हमें हमारी दुर्बलता दिखाता है, कि हम जान सकें कि यह उसके अनुग्रह से है, और मनुष्य के बच्चों पर उसकी बड़ी कृपा है, कि हमें इन कामों को करने का अधिकार है ।
9 देख, यहोवा के काम बड़े और अद्भुत हैं।
10 उसके भेदों की गहराइयां क्या ही अबूझ हैं; और यह असम्भव है कि मनुष्य अपने सब मार्ग खोज ले।
11 और कोई उसके चालचलन को नहीं जानता, केवल उस पर प्रगट किया जाए; इसलिए, भाइयों, परमेश्वर के प्रकाशनों को तुच्छ मत समझो।
12 क्योंकि देखो, मनुष्य अपने वचन के बल से पृय्वी पर चढ़ आया; जो पृथ्वी उसके वचन की शक्ति से बनाई गई थी।
13 इसलिए, यदि परमेश्वर बोलने के योग्य होता, और संसार होता; और बोलने के लिए, और मनुष्य को बनाया गया था, हे फिर, क्यों न अपनी इच्छा और खुशी के अनुसार पृथ्वी पर, या उसके हाथों की कारीगरी को आज्ञा दे सके।
14 सो हे भाइयो, यहोवा को सम्मति देने की मत, परन्तु उसके हाथ से सम्मति लेने की खोज करो।
15 क्योंकि देखो, तुम तुम ही जानते हो, कि वह अपके सब कामोंके विषय में बुद्धि, और न्याय, और बड़ी दया से सम्मति देता है;
16 इसलिए, प्रिय भाइयों, उसके एकलौते पुत्र, मसीह के प्रायश्चित के द्वारा उस से मेल मिलाप करो ।
17 कि पुनरुत्थान की शक्ति के अनुसार जो मसीह में है, पुनरुत्थान प्राप्त कर सकते हैं, और मसीह के पहले फल के रूप में भगवान के सामने पेश किए जा सकते हैं, और ईश्वर के लिए, और उस में महिमा की एक अच्छी आशा प्राप्त कर सकते हैं, इससे पहले कि वह खुद को प्रकट करे साक्षात।
18 और अब हे प्रियो, अचम्भा न करो, कि मैं ये बातें तुम से कहता हूं; क्यों न हम मसीह के प्रायश्चित की बात करें, और उसके बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें, ताकि पुनरुत्थान और आने वाले संसार का ज्ञान प्राप्त कर सकें?
19 देख, हे मेरे भाइयों, जो भविष्यद्वाणी करता है, वह मनुष्यों की समझ के लिथे भविष्यद्वाणी करे; क्योंकि आत्मा सच बोलता है, झूठ नहीं।
20 इसलिए, यह चीजों के बारे में वैसा ही बोलता है जैसा वे वास्तव में हैं, और चीजों के बारे में जैसा वे वास्तव में होंगी; इसलिए, ये बातें हमारी आत्माओं के उद्धार के लिए स्पष्ट रूप से हमारे सामने प्रकट हुई हैं ।
21 परन्तु देखो, इन बातों में हम अकेले गवाह नहीं हैं; क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें प्राचीन काल के भविष्यद्वक्ताओं से भी कहा था।
22 परन्तु देखो, यहूदी हठीले लोग थे; और उन्होंने भोलेपन की बातों को तुच्छ जाना, और भविष्यद्वक्ताओं को घात किया, और उन बातों को ढूंढ़ते थे जिन्हें वे समझ नहीं सकते थे।
23 इसलिए, उनके अंधेपन के कारण, जो अंधापन निशान से परे देखने से आया था, उन्हें गिरने की आवश्यकता है:
24 क्‍योंकि परमेश्वर ने उन से अपना सीधापन छीन लिया, और बहुत सी ऐसी बातें उनको दी हैं, जो वे समझ नहीं सकते, क्‍योंकि वे चाहते थे।
25 और उनकी इच्छा के कारण परमेश्वर ने ऐसा किया है, कि वे ठोकर खाएं।
26 और अब मैं, याकूब, आत्मा के द्वारा भविष्यद्वाणी करने के लिथे चला आया हूं; क्योंकि आत्मा के कामों से जो मुझ में है, मैं समझता हूं, कि यहूदियों के ठोकर खाने से वे उस पत्थर को ठुकरा देंगे जिस पर वे बना सकते हैं, और सुरक्षित नींव है।
27 परन्तु देखो, शास्त्रों के अनुसार, यह पत्थर महान, और अंतिम, और एकमात्र पक्की नींव बन जाएगा, जिस पर यहूदी बना सकते हैं ।
28 और अब, मेरे प्रिय, यह कैसे संभव है कि ये, पक्की नींव को ठुकराने के बाद, कभी उस पर निर्माण कर सकें, कि वह उनके कोने का मुखिया बन जाए?
29 देखो, मेरे प्रिय भाइयों, मैं यह भेद तुम्हारे सामने खोलूंगा; यदि मैं ऐसा न करूँ, तो आत्मा में अपनी दृढ़ता से किसी रीति से न डगमगाऊँगा, और अपने अति चिन्ता के कारण तुम्हारे विषय में ठोकर खाऊँगा।
30 देखो, मेरे भाइयों, क्या तुम को भविष्यद्वक्ता ज़ेनोस के वचनों को पढ़ना याद नहीं है, जिन्होंने इस्राएल के घराने से कहा था: हे इस्राएल के घराने, सुनो, और मेरे वचनों को सुनो, यहोवा के एक भविष्यद्वक्ता :
31 क्योंकि देखो, यहोवा योंकहता है, हे इस्राएल के घराने, मैं तेरी उपमा उस लम्हे जलपाई के समान करूंगा, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपक्की दाख की बारी में पाल लिया, और वह बढ़ता गया, और बूढ़ा होकर सड़ने लगा।
32 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी का स्वामी निकला, और उसने देखा कि उसका जैतून का पेड़ सड़ने लगा है; और उस ने कहा, मैं उसको छांटूंगा, और उसके चारोंओर खोदूंगा, और उसकी पालना करूंगा, कि उस में नई और कोमल डालियां निकल जाएं, और वह नष्ट न हो।
33 और ऐसा हुआ कि उसने उसकी काट-छांट की, और उसके चारों ओर खुदाई की, और अपने वचन के अनुसार उसका पालन-पोषण किया ।
34 और ऐसा हुआ कि बहुत दिनों के बाद, कुछ छोटी, युवा और कोमल शाखाएं निकलने लगीं; परन्तु देखो, उसका मुख्य सिरा नष्ट होने लगा।
35 और ऐसा हुआ कि अंगूर के बाग के स्वामी ने इसे देखा, और उसने अपने सेवक से कहा, मुझे इस बात का दुख है कि मैं इस वृक्ष को खो दूं;
36 सो इसलिथे जा, और जलपाई के किसी जंगली वृक्ष की डालियां तोड़कर मेरे पास यहां ले आ; और हम उन मुख्य डालियों को जो मुरझाने लगी हैं, तोड़ डालेंगे, और आग में झोंक देंगे, कि वे जल जाएं।
37 और देखो, दाख की बारी के यहोवा की यह वाणी है, मैं उन में से बहुत सी जवान और कोमल डालियोंको निकालकर जहां चाहूं वहां लगाऊंगा;
38 और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यदि ऐसा हो, कि इस वृक्ष की जड़ नष्ट हो जाए, तो मैं उसके फल को अपने पास सुरक्षित रखूंगा;
39 इसलिए, मैं इन युवा और कोमल डालियों को ले लूंगा, और जहां चाहूं वहां लगाऊंगा ।
40 जंगली जलपाई की डालियों को लेकर उसके बदले में उन्हें साटना;
41 और जिन्हें मैं ने तोड़ डाला है, उन्हें मैं आग में झोंक दूंगा, और उन्हें जला दूंगा, कि वे मेरी दाख की बारी की भूमि को भर न दें।
42 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु के सेवक ने, दाख की बारी के प्रभु के वचन के अनुसार किया, और जंगली जैतून के पेड़ की शाखाओं में कलम लगाई ।
43 और दाख की बारी के यहोवा ने अपके दास से यह कहकर उसके चारोंओर खोदा, और काटा, और उसका पोषण किया, कि मुझे इस बात का शोक है कि मैं इस वृक्ष को खो दूं;
44 इसलिए, कि शायद मैं उसकी जड़ों को सुरक्षित रख सकूं ताकि वे नष्ट न हों, ताकि मैं उन्हें अपने पास सुरक्षित रख सकूं मैंने यह काम किया है ।
45 इसलिथे अपके मार्ग पर चलो; मेरे वचनों के अनुसार उस वृक्ष को देख, और उसका पालन-पोषण कर।
46 और इन्हें मैं अपक्की दाख की बारी के नीचे के भाग में जहां जहां चाहूं वहां रखूंगा, इससे तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता;
47 और मैं यह इसलिये करता हूं, कि वृझ की स्वाभाविक डालियोंको अपने पास सुरक्षित रखूं; और यह भी, कि उस का फल समय के अनुसार अपके लिथे बटोरूं; क्योंकि मुझे इस बात का शोक है कि मैं इस वृक्ष और उसके फलोंको खो दूं।
48 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी का प्रभु चला गया, और अंगूर के बाग के निचले हिस्से में जैतून के पेड़ की प्राकृतिक शाखाओं को छिपा दिया; कुछ एक में, और कुछ दूसरे में, उसकी इच्छा और खुशी के अनुसार।
49 और ऐसा हुआ कि एक लंबा समय बीत गया, और दाख की बारी के प्रभु ने अपने सेवक से कहा, आओ, हम दाख की बारी में चलें, ताकि हम दाख की बारी में परिश्रम कर सकें ।
50 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी का प्रभु, और सेवक भी परिश्रम करने के लिए दाख की बारी में गए ।
51 और ऐसा हुआ कि दास ने अपने स्वामी से कहा, देखो, यहां देखो; पेड़ को निहारना।
52 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने देखा और उस वृक्ष को देखा, जिसमें जंगली जैतून की शाखाएं लगाई गई थीं; और वह उग आया, और फलने लगा।
53 और उसने देखा कि यह अच्छा है: और उसका फल प्राकृतिक फल के समान था।
54 और उस ने दास से कहा, सुन, जंगली वृक्ष की डालियों ने उसकी जड़ की नमी को पकड़ लिया है, कि उसकी जड़ में बहुत बल लगा है;
55 और उसकी जड़ के बहुत बल के कारण जंगली डालियां वश में फल लायी हैं:
56 अब, यदि हम इन शाखाओं में कलम नहीं लगाते, तो उसका वृक्ष नष्ट हो जाता।
57 और अब देखो, मैं उस के वृक्ष के बहुत से फल उपजाऊंगा; और उसका फल मैं समय के अनुसार अपके अपके लिथे रखूंगा।
58 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने सेवक से कहा, आओ, हम दाख की बारी के निचले हिस्से में जाएं, और देखें कि क्या वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं ने भी अधिक फल नहीं लाए हैं, ताकि मैं उसके फल को समय के अनुसार मेरे ही हाथ में रख देना।
59 और ऐसा हुआ कि वे वहां गए जहां दाख की बारी के स्वामी ने वृक्ष की प्राकृतिक शाखाओं को छिपाया था, और उसने सेवक से कहा, देखो ये:
60 और उस ने पहिले को क्या देखा, कि उस में बहुत फल हुआ है; और उस ने यह भी देखा, कि यह अच्छा है।
61 और उस ने उस दास से कहा, उसका फल ले, और समय के अनुसार रख दे, कि मैं उसे अपके ही लिथे रखूं;
62 क्योंकि देखो, उस ने कहा, मैं ने बहुत दिनोंसे उसकी पालना की है, और उस ने बहुत फल लाए हैं।
63 और ऐसा हुआ कि सेवक ने अपने स्वामी से कहा, तुम इस वृक्ष को, या वृक्ष की इस शाखा को लगाने के लिए यहां कैसे आए ? क्‍योंकि देखो, तेरे दाख की बारी के सारे देश में वह सबसे कंगाल स्थान था।
64 और दाख की बारी के यहोवा ने उस से कहा, मुझे सम्मति न दे, मैं तो जानता था कि वह भूमि की कंगाली है; इसलिए, मैंने तुमसे कहा था, मैंने इसे लंबे समय से पोषित किया है; और तू देखता है, कि उस में बहुत फल हुआ है।
65 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने अपने सेवक से कहा, यहां देखो: देखो, मैंने वृक्ष की एक और शाखा भी लगाई है; और तू जानता है, कि यह भूमि पहिले से भी घटिया है।
66 परन्तु देखो, वृक्ष को मैं ने बहुत दिन से पाला है, और उस में बहुत फल उत्पन्न हुआ है; इसलिए उसे बटोर कर समय के अनुसार रख देना, कि मैं उसे अपके ही लिथे सुरक्षित रखूं।
67 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने अपने सेवक से फिर कहा, यहां देखो, और एक और शाखा भी देखो, जिसे मैंने लगाया है; देख, कि मैं ने उसको भी पाला है, और उस में फल निकला है।
68 और उस ने उस दास से कहा, यहां देख, और आखरी को देख; देख, मैं ने इसे अच्छी भूमि में लगाया है; और मैं ने उसको बहुत दिन से पाला है, और वृक्ष का केवल एक भाग ही वश में फल लाया है; और उस वृक्ष के दूसरे भाग में जंगली फल लगे हैं: देखो, मैं ने इस वृक्ष को औरोंकी नाईं पाला है।
69 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने सेवक से कहा, उन शाखाओं को तोड़ दो जिनमें अच्छे फल नहीं लगे हैं, और उन्हें आग में डाल दो ।
70 परन्तु देखो, उस दास ने उस से कहा, हम उसे छांटें, और उसके चारोंओर खोदें, और थोड़ी देर और उसकी पालना करें, कि वह तेरे लिये अच्छा फल लाए, कि तू उसे समय के साम्हने रख सके।
71 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु, और दाख की बारी के प्रभु के सेवक ने दाख की बारी के सभी फलों का पोषण किया ।
72 और ऐसा हुआ कि एक लंबा समय बीत चुका था, और अंगूर के बाग के प्रभु ने अपने सेवक से कहा, आओ, हम दाख की बारी में चलें, ताकि हम दाख की बारी में फिर से परिश्रम कर सकें ।
73 क्योंकि देखो, समय निकट आ रहा है, और अन्त शीघ्र आ रहा है: इसलिथे मुझे अपके अपके लिथे समय के अनुसार फल देना अवश्य है।
74 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी का प्रभु, और सेवक, दाख की बारी में गए; और वे उस वृक्ष के पास आए, जिसकी स्वाभाविक डालियां तोड़ी गई थीं, और जंगली डालियां साटी गई थीं; और देखो, सब प्रकार के फलों ने वृक्ष को बोझिल कर दिया है।
75 और ऐसा हुआ कि अंगूर के बाग के प्रभु ने फल का स्वाद उसकी संख्या के अनुसार हर प्रकार का किया ।
76 और दाख की बारी के यहोवा ने कहा, सुन, हम ने इस वृक्ष को बहुत दिन से पाल रखा है, और मैं ने समय के अनुसार बहुत से फल अपने लिये रख लिए हैं।
77 परन्तु देखो, इस बार वह बहुत फल लाया है, और उसमें से कोई भी अच्छा नहीं है।
78 और देखो, सब प्रकार के बुरे फल होते हैं; और हम सब परिश्र्मों के तौभी मुझे कुछ लाभ नहीं होता: और अब मुझे इस बात का शोक है कि मैं इस वृक्ष को खो दूं।
79 और दाख की बारी के यहोवा ने उस दास से कहा, हम उस वृक्ष का क्या करें, कि मैं उसके अच्छे फल को अपके ही लिये सुरक्षित रखूं?
80 और उस दास ने अपके स्वामी से कहा, सुन, तू ने जो जलपाई के वृक्ष की डालियां लगाईं हैं, वे उसकी जड़ को पालते हैं, कि वे जीवित हैं, और नष्ट नहीं हुई हैं; इसलिए, आप देखते हैं कि वे अभी भी अच्छे हैं ।
81 और ऐसा हुआ कि अंगूर के बाग के प्रभु ने अपने सेवक से कहा, इस वृक्ष से मुझे कुछ भी लाभ नहीं होता है; और उसकी जड़ों से मुझे कुछ भी लाभ नहीं होता, जब तक वह बुरे फल लाता है।
82 तौभी मैं जानता हूं, कि जड़ें अच्छी हैं; और मैं ने उन्हें अपके निमित्त सुरक्षित रखा है; और अपने बहुत बल के कारण अब तक वे जंगली डालियों से अच्छे फल लाए हैं।
83 परन्तु देखो, जंगली डालियां बढ़ गई हैं, और उसकी जड़ को उखाड़ कर ले गई हैं; और जब जंगली डालियां उसकी जड़ों पर लगी हुई हैं, तब उस में बहुत बुरा फल निकला है;
84 और उस ने इतने बुरे फल लाए हैं, कि तू देखता है कि वह नाश होने लगा है; और वह शीघ्र ही पक जाएगा, कि आग में झोंक दिया जाए, यदि हम उसकी रक्षा के लिथे कुछ न करें।
85 और ऐसा हुआ कि अंगूर के बाग के प्रभु ने अपने सेवक से कहा, आइए हम दाख की बारी के निचले हिस्से में जाएं, और देखें कि क्या प्राकृतिक शाखाओं ने भी बुरे फल लाए हैं ।
86 और ऐसा हुआ कि वे दाख की बारी के निचले हिस्से में चले गए ।
87 और ऐसा हुआ कि उन्होंने देखा कि प्राकृतिक शाखाओं के फल भी भ्रष्ट हो गए थे; हाँ, पहला, और दूसरा, और आखिरी भी; और वे सब भ्रष्ट हो गए थे।
88 और पिछले के जंगली फल ने वृक्ष के उस भाग पर जो अच्छा फल लाया था, यहां तक कि डाली सूख गई थी और मर गई थी।
89 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी का प्रभु रोया, और नौकर से कहा, मैं अपनी दाख की बारी के लिए और क्या कर सकता था ?
90 देख, मैं जान गया था, कि इन को छोड़ दाख की बारी की सारी उपज भ्रष्ट हो गई है।
91 और अब, जो एक बार अच्छा फल लाए थे, वे भी भ्रष्ट हो गए हैं ।
92 और अब, मेरी दाख की बारी के सब वृझ व्यर्थ हैं, सिवाय इसके कि काटे और आग में झोंक दिए जाएं।
93 और देखो, जिस अंतिम की डाली सूख गई है, उसे मैं ने अच्छी भूमि में बोया है; हां, यहां तक कि वह भी जो मुझे पसंद था, मेरी दाख की बारी के प्रदेश के अन्य सभी भागों में ।
94 और तू ने देखा, कि मैं ने उस भूमि को भी काट डाला, जो इस भूमि में सिकुड़ी हुई है, कि मैं उसके स्थान पर यह वृक्ष लगाऊं।
95 और तू ने देखा, कि उसका एक भाग अच्छा फल लाया; और उसका एक भाग जंगली फल लाया।
96 और मैं ने उसकी डालियोंको तोड़कर आग में नहीं झोंका, इसलिथे कि वे अच्छी डाली पर जयवन्त हो गए हैं, कि वह सूख गई है।
97 और अब देखो, जितनी चिन्ता हम ने अपक्की दाख की बारी से की है, उसके वृझ ऐसे बिगड़ गए हैं कि उनमें अच्छा फल नहीं आता।
98 और मैं ने आशा की थी कि इन को बचाकर रखूंगा, और समय के अनुसार इन का फल अपके अपके लिथे रखूंगा ।
99 परन्तु देखो, वे जंगली जलपाई के समान हो गए हैं; और वे किसी काम के नहीं, केवल तोड़े और आग में झोंक दिए जाने के हैं; और मुझे इस बात का शोक है कि मैं उन्हें खो दूं।
100 परन्तु मैं अपक्की दाख की बारी में और क्या कर सकता था?
101 क्या मैं ने अपना हाथ ऐसा ढीला किया है, कि मैं ने उसकी पालन-पोषण नहीं किया?
102 नहीं; मैं ने उसको पाला है, और मैं ने उसके चारोंओर खोदा है, और मैं ने उसे काटा, और कूड़ा डाला है; और मैं ने प्राय: दिन भर हाथ बढ़ाया है; और अंत निकट आ जाता है।
103 और मुझे इस बात का शोक है कि मैं अपक्की दाख की बारी के सब वृझों को काट डाल कर आग में झोंक दूं, कि वे जल जाएं।
104 वह कौन है जिसने मेरी दाख की बारी को बिगाड़ा है?
105 और ऐसा हुआ कि दास ने अपने स्वामी से कहा, क्या यह तुम्हारी दाख की बारी की महिमा नहीं है ?
106 क्या उसकी डालियों की जड़ अच्छी नहीं है?
107 और क्योंकि डालियों ने अपनी जड़ पर विजय पा ली है, तो देखो, वे जड़ की शक्ति से भी अधिक तेजी से बढ़ती हैं, और अपने आप को बल देती हैं।
108 देख, मैं कहता हूं, क्या तेरी दाख की बारी के वृझ इस कारण नहीं बिगड़ गए हैं?
109 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने सेवक से कहा, आओ हम चलें, और दाख की बारी के वृक्षों को काट दें, और उन्हें आग में डाल दें, कि वे मेरी दाख की बारी की भूमि को नष्ट न करें: क्योंकि मैंने सब किया है; मैं अपनी दाख की बारी के लिए और क्या कर सकता था?
110 परन्तु देखो, उस दास ने दाख की बारी के यहोवा से कहा, उसे थोड़ा और समय दे।
111 और यहोवा ने कहा, हां, मैं इसे कुछ और समय के लिये छोड़ दूंगा; क्योंकि मुझे इस बात का शोक है कि मैं अपक्की दाख की बारी के वृक्षोंको खो दूं।
112 इसलिथे हम इन की डालियोंमें से जो मैं ने अपक्की दाख की बारी के नीचे के भाग में लगाई हैं, ले लें, और जिस वृक्ष से वे आए हैं उस में उन्हें साटें;
113 और हम उस वृक्ष में से वे डालियां तोड़ लें, जिनके फल अधिक कड़वे हों, और उस वृक्ष की डालियों को उसके स्थान पर साटें।
114 और मैं यह करूंगा, कि वह वृक्ष नाश न हो, कि अपके निमित्त उसकी जड़ों को अपके लिथे सुरक्षित रखूं।
115 और देखो, जिस वृक्ष की डालियोंको मैं ने जहां चाहा वहां लगाया, उसकी जड़े अब तक जीवित हैं;
116 इसलिथे कि मैं अपके निमित्त उन्हें भी सुरक्षित रखूं, मैं इस वृक्ष की डालियोंमें से कुछ लूंगा, और उन में उन्हें लगाऊंगा ।
117 हां, मैं उनके लिए उनके मूल वृक्ष की डालियां लगाऊंगा, कि मैं उनकी जड़ों को भी अपने आप में सुरक्षित रख सकूं, कि जब वे पर्याप्त रूप से मजबूत हों, तो शायद वे मेरे लिए अच्छे फल ला सकें, और मैं अभी तक मेरी दाख की बारी के फल की महिमा करो।
118 और ऐसा हुआ कि उन्होंने उस प्राकृतिक वृक्ष से जो जंगली हो गया था, ले लिया, और उन प्राकृतिक वृक्षों को लगा दिया जो जंगली हो गए थे:
119 और उन्होंने उन प्राकृतिक वृक्षों में से जो जंगली हो गए थे, ले लिया, और अपनी मातृ वृक्ष में साटा।
120 और दाख की बारी के यहोवा ने उस दास से कहा, वृझोंमें से जंगली डालियां न तोड़ें, केवल वे जो कड़वी हों; और जो कुछ मैं ने कहा है उसके अनुसार उन में तुम कलम करना।
121 और हम दाख की बारी के वृक्षोंको फिर से पालेंगे, और उसकी डालियोंको काट डालेंगे; और हम वृक्षों में से उन डालियों को तोड़ डालेंगे जो नष्ट हो जाएंगी, और आग में डाल दी जाएंगी।
122 और मैं यह इसलिये करता हूं, कि उनकी भलाई के कारण उनकी जड़ें दृढ़ हो जाएं; और डालियों के बदलने के कारण, कि भलाई बुराई पर जय पाए;
123 और इस कारण कि मैं ने डालियोंऔर उसकी जड़ोंको सुरक्षित रखा है; और यह कि मैं ने उनके मूल वृक्ष में फिर से प्राकृतिक डालियोंमें साटा है; और उनके मूल वृक्ष की जड़ों को सुरक्षित रखा है, कि शायद मेरी दाख की बारी के वृक्ष फिर से अच्छे फल लाएँ;
124 और मैं अपक्की दाख की बारी के फल से फिर आनन्दित होऊं; और शायद इसलिये कि मैं बहुत आनन्दित होऊं, कि मैं ने पहिले फल की जड़ और डालियोंको सुरक्षित रखा है।
125 इसलिए, जाकर सेवकों को बुलाओ, कि हम दाख की बारी में अपनी शक्ति के साथ परिश्रम कर सकें, कि हम मार्ग तैयार कर सकें, कि मैं प्राकृतिक फल फिर से ला सकूं, जो प्राकृतिक फल अच्छा है, और सबसे कीमती है ऊपर अन्य सभी फल।
126 इसलिए, आओ, हम चलें, और इस अंतिम समय के लिए अपनी शक्ति के साथ परिश्रम करें; क्योंकि देखो अन्त निकट आ रहा है: और यह अन्तिम बार है कि मैं अपक्की दाख की बारी छांटूंगा।
127 शाखाओं में ग्राफ्ट; अंत में शुरू करें, कि वे पहले हो सकते हैं, और पहला आखिरी हो सकता है, और पुराने और युवा, पहले और आखिरी, और आखिरी और पहले पेड़ों के बारे में खुदाई करें, ताकि सभी को एक बार फिर से पोषित किया जा सके आखरी बार।

128 इसलिथे उनके चारोंओर खोदो, और छांटो, और फिर उन्हें अन्तिम बार गोबर दो, क्योंकि अन्त निकट आ गया है।
129 और यदि ऐसा हो कि ये अन्तिम रोटियां बढ़ें, और स्वाभाविक फल उत्पन्न करें, तो उनके लिये मार्ग तैयार करना, कि वे बढ़ें;
130 और जब वे बढ़ने लगें, तब उन डालियोंको जो कड़वे फल देती हैं, भले के बल और उसके आकार के अनुसार दूर करना;
131 और उसकी बुराई को एक ही बार में दूर न करना, ऐसा न हो कि उसकी जड़ें रोपने के लिए बहुत मजबूत हों, और उसकी कलम नष्ट हो जाएगी, और मैं अपनी दाख की बारी के पेड़ों को खो दूंगा।
132 क्योंकि मुझे इस बात का शोक है कि मैं अपक्की दाख की बारी के वृक्षोंको खो दूंगा; इसलिए, जैसे-जैसे अच्छा बढ़ेगा, वैसे-वैसे आप बुराई को दूर करते रहेंगे, ताकि जड़ और चोटी की ताकत बराबर हो जाए, जब तक कि अच्छा बुरे पर विजय न पा ले, और बुराई को काटकर आग में न झोंक दिया जाए, ताकि वे मेरी दाख की बारी की भूमि पर बोझ नहीं; और इस प्रकार मैं अपक्की दाख की बारी में से दुष्टोंको मिटा डालूंगा।
133 और मैं उस कुदरती वृक्ष की डालियां फिर से लगाऊंगा; और उस वृक्ष की डालियों को मैं उस वृक्ष की डालियों में लगाऊंगा;
134 और मैं उन्हें इस प्रकार फिर से इकट्ठा करूंगा, कि वे स्वाभाविक फल लाएंगे; और वे एक हों।
135 और बुराई दूर की जाएगी; हां, मेरी दाख की बारी के सारे प्रदेश में से भी; क्योंकि देखो, मैं अपक्की दाख की बारी को केवल इसी बार छांटूंगा।
136 और ऐसा हुआ कि दाख की बारी के प्रभु ने अपने सेवक को भेजा; और उस दास ने जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया, और और दासोंको ले आया; और वे कम थे।
137 और दाख की बारी के यहोवा ने उन से कहा, जाकर दाख की बारी में अपक्की शक्ति समेत परिश्रम करो।
138 क्योंकि देखो, अपक्की दाख की बारी की पक्की करने का यह अन्तिम समय है; क्योंकि अन्त निकट है, और समय शीघ्र आता है;
139 और यदि तुम अपक्की सामर्थ से मेरे संग परिश्रम करो, तो उस फल से जो मैं अपके अपके लिये रखूंगा, उस समय के विषय में जो शीघ्र आने वाला है, आनन्दित होगा।
140 और ऐसा हुआ कि सेवक गए, और अपनी शक्ति से परिश्रम किया; और दाख की बारी के यहोवा ने भी उनके साथ परिश्रम किया; और सब बातों में उन्होंने दाख की बारी के यहोवा की आज्ञाओं का पालन किया।
141 और दाख की बारी में फिर से फल लगने लगे; और प्राकृतिक शाखाएं बढ़ने लगीं और अत्यधिक फलने-फूलने लगीं;
142 और जंगली डालियां तोड़कर फेंक दी जाने लगीं; और उन्होंने जड़ और सिरे को उसकी शक्ति के अनुसार बराबर रखा।
143 और इस प्रकार उन्होंने दाख की बारी के प्रभु की आज्ञाओं के अनुसार पूरे परिश्रम के साथ परिश्रम किया, यहां तक कि जब तक बुराई को दाख की बारी से बाहर नहीं निकाला गया, और प्रभु ने अपने आप को सुरक्षित रखा था, कि पेड़ फिर से प्राकृतिक हो गए थे फल;
144 और वे एक देह के समान हो गए; और फल बराबर थे; और दाख की बारी के यहोवा ने उस प्राकृतिक फल को अपने पास सुरक्षित रखा था, जो उसके लिये आरम्भ से अनमोल था।
145 और ऐसा हुआ कि जब दाख की बारी के प्रभु ने देखा कि उसका फल अच्छा है, और उसकी दाख की बारी अब और खराब नहीं रही, तो उसने अपने सेवकों को बुलाया और उनसे कहा, देखो, इस आखिरी बार हमने अपनी दाख की बारी का पोषण किया है ; और तू देखता है, कि मैं ने अपक्की इच्छा के अनुसार काम किया है;
146 और मैं ने उस फल को सुरक्षित रखा है, कि वह जैसा पहिले से था, वैसा ही अच्छा भी है; और तू धन्य है।
147 क्‍योंकि तुम ने मेरी दाख की बारी में मेरे साथ परिश्रम किया, और मेरी आज्ञाओं को माना है, और मेरे पास फिर से फल लाए हैं, कि मेरी दाख की बारी फिर खराब न हो, और बुराई दूर हो जाए, देखो, तुम मेरी दाख की बारी के फल के कारण मेरे साथ आनन्द करो।
148 क्योंकि देखो, मैं अपक्की दाख की बारी की उपज में से उस समय के लिथे जो शीघ्र आने वाला है, अपके अपके हाथ में बहुत दिन तक रखूंगा;
149 और मैं ने अपक्की दाख की बारी को अन्तिम बार पाला, और उसे छाँटा, और उसके चारोंओर खोदा, और गोबर डाला;
150 इस कारण जो कुछ मैं ने कहा है उसके अनुसार मैं उस फल का फल अपके हाथ में बहुत देर तक रखूंगा।
151 और जब वह समय आएगा, कि मेरी दाख की बारी में फिर से बुरा फल आएगा, तब मैं भले बुरे को बटोरूंगा;
152 और उस भलाई को मैं अपके लिथे बचा रखूंगा; और बुरे को मैं उसके स्यान में फेंक दूंगा।
153 और फिर ऋतु और अन्त आता है; और मैं अपक्की दाख की बारी को आग में जला दूंगा।

 

अध्याय 4

1 और अब, देखो, मेरे भाइयों, जैसा कि मैं ने तुम से कहा था कि मैं भविष्यद्वाणी करूंगा, देखो, यह मेरी भविष्यद्वाणी है:
2 कि जो बातें इस भविष्यद्वक्ता ज़ेनोस ने इस्राएल के घराने के विषय में, जिस में उस ने उनकी तुलना लम्हे जलपाई से की या, वे अवश्य पूरी हों।
3 और जिस दिन वह अपने लोगों को फिर से ठीक करने के लिए अपना हाथ फिर से स्थापित करेगा, वह दिन है, हां, आखिरी बार, कि प्रभु के सेवक उसकी शक्ति में अपनी दाख की बारी का पोषण करने और उसे छाँटने के लिए निकलेंगे ; और उसके बाद, अंत जल्द ही आ जाता है।
4 और क्या ही धन्य हैं वे, जिन्होंने उसकी दाख की बारी में परिश्रम किया है; और वे कितने शापित हैं, जो अपके ही स्यान पर फेंक दिए जाएंगे!
5 और जगत आग से भस्म हो जाएगा।
6 और हमारा परमेश्वर हम पर क्या ही दयालु है; क्योंकि वह जड़ और डालियां दोनों इस्राएल के घराने को स्मरण करता है; और वह दिन भर उन की ओर हाथ बढ़ाए रहता है;
7 और वे हठीले और हठीले लोग हैं; परन्तु जितने अपने मन को कठोर न करेंगे, वे परमेश्वर के राज्य में उद्धार पाएंगे।
8 इसलिए, मेरे प्रिय भाइयों, मैं तुम से संयम के शब्दों में बिनती करता हूं, कि तुम पश्चाताप करो, और पूरे मन से आओ, और जैसा वह तुम से जुड़ा हुआ है, वैसे ही परमेश्वर से जुड़े रहो ।
9 और जब तक उसकी दया का हाथ दिन के उजाले में तुम्हारी ओर बढ़ा हो, तब तक अपने मन को कठोर न करो।
10 हां, यदि आज तुम उसका शब्द सुनोगे, तो अपने मन कठोर न करो; क्योंकि तुम क्यों मरोगे?
11 क्योंकि देखो, परमेश्वर के भले वचन से दिन भर तुम्हारा पालन-पोषण करने के बाद क्या तुम बुरे फल उत्पन्न करोगे, कि तुम को काटा और आग में झोंक दिया जाए?
12 देखो, क्या तुम इन बातों को ठुकरा दोगे ?
13 क्या तुम भविष्यद्वक्ताओं की बातों को झुठलाओगे, और जितने वचन मसीह के विषय में कहे गए हैं, उन सभों को ठुकरा दोगे, जब कि इतने लोग उसके विषय में कह चुके हैं? और मसीह के भले वचन, और परमेश्वर की सामर्थ, और पवित्र आत्मा के वरदान का इन्कार करो, और पवित्र आत्मा को बुझाओ? और छुटकारे की उस बड़ी योजना का ठट्ठा करो, जो तुम्हारे लिथे रखी गई है?
14 क्या तुम नहीं जानते, कि यदि तुम ये काम करते हो, तो छुटकारे की शक्ति और पुनरुत्थान की शक्ति जो मसीह में है, तुम्हें परमेश्वर के दंड के सामने लज्जित और भयानक अपराध के साथ खड़ा कर देगी?
15 और न्याय की शक्ति के अनुसार, क्योंकि न्याय से इनकार नहीं किया जा सकता है, तुम्हें उस आग और गंधक की झील में जाना चाहिए, जिसकी लपटें कभी नहीं बुझती हैं, और जिसका धुआं हमेशा के लिए ऊपर उठता है, आग और गंधक की झील, अंतहीन पीड़ा है।
16 हे मेरे प्रिय भाइयों, तुम मन फिराओ, और स्ट्रेट फाटक से प्रवेश करो, और संकरे मार्ग पर चलते रहो, जब तक कि तुम अनन्त जीवन को प्राप्त न कर लो।
17 हे बुद्धिमान हो, मैं और क्या कह सकता हूं?
18 अन्त में, मैं तुझ से विदा लेता हूं, जब तक कि मैं परमेश्वर के उस मनभावने बेंत के साम्हने तुझ से न मिलूं, जो दुष्टों को भयानक भय और भय से मारता है। तथास्तु।

 

अध्याय 5

1 और अब ऐसा हुआ कि कुछ वर्ष बीत जाने के बाद, नफी के लोगों में एक व्यक्ति आया, जिसका नाम शेरेम था ।
2 और ऐसा हुआ कि वह लोगों के बीच प्रचार करने लगा, और उन्हें घोषित करने लगा कि कोई मसीह नहीं होना चाहिए ।
3 और वह बहुत सी ऐसी बातें प्रचार करता था जो लोगों को भाती थीं; और उसने ऐसा इसलिए किया कि वह मसीह की शिक्षा को उलट दे।
4 और उसने अथक परिश्रम किया ताकि वह लोगों के हृदयों को इस हद तक दूर कर सके कि उसने बहुतों के हृदयों को दूर कर दिया;

5 और वह जानता था कि मुझे, याकूब को आनेवाले मसीह पर विश्वास है, उसने मेरे पास आने के बहुत अवसर की खोज की।
6 और वह जान गया, कि उसे लोगोंकी भाषा का पूरा ज्ञान है; इसलिए, वह शैतान की शक्ति के अनुसार बहुत अधिक चापलूसी, और बोलने की अधिक शक्ति का उपयोग कर सकता था।
7 और इन बातों के विषय में बहुत सी बातों और बहुत सी बातों के होते हुए भी, जो मैं ने देखीं, तौभी उस ने मुझे विश्वास से हिला देने की आशा की थी; क्योंकि मैं ने सचमुच स्वर्गदूतों को देखा था, और उन्होंने मेरी सेवा टहल की थी।
8 और साथ ही, मैं ने समय-समय पर प्रभु को एक ही वचन में मुझ से बातें करते हुए सुना था; इसलिए, मुझे हिलाया नहीं जा सका।
9 और ऐसा हुआ कि वह मेरे पास आया; और इसी रीति से उस ने मुझ से कहा, हे भाई याकूब, मैं ने बहुत अवसर ढूंढ़ा है, कि तुझ से बातें करूं; क्योंकि मैं ने सुना और जानता भी हूं, कि तू बहुत घूमकर उस का प्रचार करता है, जिसे तू सुसमाचार कहता है, या मसीह का सिद्धांत;
10 और तुम इन लोगों में से बहुतों को इसलिथे ले गए, कि वे परमेश्वर के सीधे मार्ग को बिगाड़ते हैं, और मूसा की व्यवस्था को, जो सीधा मार्ग है, नहीं मानते; और मूसा की व्‍यवस्‍था को सत्‍य की उपासना में बदल दो, जिसके विषय में तुम कहते हो कि अब से कई सौ वर्ष बाद ऐसा होगा।
11 और अब देखो, मैं, शेरेम, तुम से कहता हूं, कि यह निन्दा है; क्योंकि ऐसी बातें कोई मनुष्य नहीं जानता, क्योंकि वह आनेवाली बातोंके विषय में नहीं कह सकता।
12 और इसके बाद शेरेम ने मुझ से लड़ाई की।
13 परन्तु देखो, प्रभु परमेश्वर ने मेरी आत्मा में अपना आत्मा इतना उण्डेल दिया कि मैं ने उसकी सारी बातों में उसे भ्रमित कर दिया ।
14 और मैं ने उस से कहा, क्या तू आनेवाले मसीह का इन्कार करता है?
15 उस ने कहा, यदि कोई मसीह होता, तो मैं उसका इन्कार न करता; परन्तु मैं जानता हूं कि न तो मसीह है, न था और न कभी होगा।
16 और मैं ने उस से कहा, क्या तू पवित्र शास्त्र की प्रतीति करता है?
17 और उसने कहा, हां।
18 और मैं ने उस से कहा, तब तुम उन्हें नहीं समझते; क्योंकि वे सचमुच मसीह की गवाही देते हैं।
19 देखो, मैं तुम से कहता हूं, कि इस मसीह के विषय में कहने के सिवाय किसी भी भविष्यद्वक्ता ने न तो लिखा और न ही भविष्यद्वाणी की ।
20 और यह सब कुछ नहीं है: यह मुझ पर प्रगट हुआ है, क्योंकि मैं ने सुना और देखा है; और यह भी पवित्र आत्मा की सामर्थ से मुझ पर प्रगट हुआ है;
21 इसलिए, मैं जानता हूं कि यदि कोई प्रायश्चित नहीं किया जाना चाहिए, तो सारी मानवजाति नष्ट हो जाएगी ।
22 और ऐसा हुआ कि उसने मुझसे कहा, पवित्र आत्मा की इस शक्ति के द्वारा मुझे एक चिन्ह दिखाओ, जिसके बारे में तुम इतना कुछ जानते हो ।
23 और मैं ने उस से कहा, मैं क्या हूं, कि जो बात तू जानता है, कि वह सच है, मैं परमेश्वर की परीक्षा में तुझे एक चिन्ह दिखाऊं?
24 तौभी तू उसका इन्कार करेगा, क्योंकि तू शैतान है।
25 तौभी मेरी इच्छा पूरी न होगी; परन्तु यदि परमेश्वर तुझे मार डाले, तो यह तेरे लिये एक चिन्ह ठहरे, कि उसके पास स्वर्ग और पृथ्वी दोनोंमें सामर्थ है; और यह भी, कि मसीह आएगा।
26 और हे यहोवा, तेरी इच्छा पूरी हो, मेरी नहीं।
27 और ऐसा हुआ कि जब मैं, याकूब ने, इन बातों को कह लिया, प्रभु की शक्ति उस पर इतनी अधिक पड़ी कि वह पृथ्वी पर गिर पड़ा ।
28 और ऐसा हुआ कि कई दिनों तक उसका पोषण किया गया ।
29 और ऐसा हुआ कि उसने लोगों से कहा, कल इकट्ठा हो जाओ, क्योंकि मैं मर जाऊंगा; इसलिए, मरने से पहले मैं लोगों से बात करना चाहता हूं ।
30 और ऐसा हुआ कि अगले दिन भीड़ इकट्ठी हो गई; और उस ने उन से सीधी बात की, और जो बातें उस ने उन्हें सिखाई या, उन से इन्कार किया; और मसीह, और पवित्र आत्मा की शक्ति, और स्वर्गदूतों की सेवा को स्वीकार किया।
31 और उस ने उन से स्पष्ट कहा, कि वह शैतान की शक्ति से बहकाया गया है।
32 और उस ने नरक, और अनन्तकाल, और अनन्त दण्ड के विषय में कहा।
33 और उस ने कहा, मुझे भय है कि कहीं मैं ने अक्षम्य पाप न किया हो, क्योंकि मैं ने परमेश्वर से झूठ कहा है; क्योंकि मैं ने मसीह का इन्कार किया, और कहा, कि मैं ने पवित्र शास्त्र की प्रतीति की है; और वे सचमुच उसकी गवाही देते हैं।
34 और क्योंकि मैं ने परमेश्वर से इस प्रकार झूठ बोला है, मुझे बड़ा भय है कि कहीं मेरी दशा भयानक न हो जाए; परन्तु मैं परमेश्वर के सामने अंगीकार करता हूं।
35 और ऐसा हुआ कि जब उसने इन बातों को कह लिया, तो वह और नहीं कह सका; और उसने भूत छोड़ दिया।
36 और जब भीड़ ने यह देखा, कि उस ने ये बातें उस समय की हैं, जब वह भूत को त्यागने पर है, तो वे बहुत चकित हुए; इतना अधिक, कि परमेश्वर की शक्ति उन पर उतरी, और वे हार गए, कि वे पृथ्वी पर गिर पड़े।
37 अब, हे याकूब, यह बात मुझे अच्छी लगी; क्‍योंकि मैं ने अपके पिता से जो स्‍वर्ग में था, यह बिनती की थी, क्‍योंकि उस ने मेरी दोहाई सुन ली, और मेरी प्रार्थना सुन ली।
38 और ऐसा हुआ कि लोगों के बीच शांति और परमेश्वर का प्रेम फिर से बहाल हो गया; और उन्होंने पवित्र शास्त्र में खोजबीन की, और इस दुष्ट की बातें फिर न सुनीं।
39 और ऐसा हुआ कि लमनाइयों को पुनः प्राप्त करने और सत्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए कई उपाय किए गए; परन्तु यह सब व्यर्थ था: क्योंकि वे
युद्धों और रक्तपात में प्रसन्न; और वे अपने भाइयों, हम से सदा की बैर रखते थे।
40 और वे अपके अपके अपके अपके अपके हाथ से ढूंढ़ते रहे, कि हम को नित्य नाश करें;
41 इसलिए, नफी के लोगों ने परमेश्वर और उनके उद्धार की चट्टान पर भरोसा करते हुए, अपनी सेनाओं, और अपनी सारी शक्ति के साथ उनके विरुद्ध दृढ़ किया; इसलिए, वे अभी तक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले बने।
42 और ऐसा हुआ कि मैं, याकूब, बूढ़ा होने लगा; और नफी की अन्य पट्टियों पर इन लोगों के रखे जाने का अभिलेख, इसलिए, मैं यह घोषणा करते हुए कि मैंने अपनी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार, यह कहते हुए लिखा है, इस अभिलेख को समाप्त करता हूं,
43 कि समय बीतता गया, और हमारा जीवन भी ऐसा बीत गया, मानो हम ने स्वप्न देखा है, कि हम एकाकी और गम्भीर लोग होकर यरूशलेम से निकाले गए पथिक हैं;
44 क्लेश में, और जंगल में जन्मा, और अपने भाइयोंसे बैर रखा, जो युद्ध और विवाद का कारण बने; इसलिए, हमने अपने दिनों का शोक मनाया।
45 और मैं याकूब ने देखा, कि मुझे शीघ्र ही अपक्की कब्र पर जाना है; इसलिए, मैंने अपने पुत्र एनोस से कहा, ये पट्टियां लो ।
46 और जो बातें मेरे भाई नफी ने मुझे दी थीं, उन्हें मैंने उसे बताया; और उसने आज्ञाओं को मानने का वचन दिया।
47 और मैं इन पट्टियों पर अपके लेखन को समाप्त करता हूं, जिन पर लिखा हुआ छोटा है;
48 और मैं पाठक को विदा करता हूं, इस आशा से कि मेरे बहुत से भाई मेरे वचन पढ़ेंगे। भाइयों, अलविदा।

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